‘पाञ्चजन्य’ अपनी यात्रा के 75वर्ष पूर्ण कर मकर संक्रांति के दिन आज अपनी ‘हीरक जयंती’ मना रहा है। कार्यक्रम का आयोजन दिल्ली के होटल अशोक में किया जा रहा है, जिसमें देशभर के कई दिग्गज शामिल हुए हैं। इस दौरान स्वामी अवधेशानंद जी महाराज ने कहा कि पाञ्चजन्य मूल्यों का रक्षक है। पाञ्चजन्य की आभा कभी क्षीण नहीं हुई। उन्होंने कहा कि अब भारत पूरे विश्व में चिंतन का विषय है। भारत के नागरिक, भारत की हर वस्तु चर्चा में है।
पूरे विश्व में आज भारत की बात हो रही है। संयुक्त राष्ट्र ने कहा कि भारत बोले और हम सुनेंगे। भारत अपनी भाषा में बोले। कुछ दिनों पहले पश्चिमी विश्वविद्यालयों में इस पर चर्चा हो रही थी कि कौन सी संस्कृति पूरे विश्व में तेजी से फैल रही है, बिना कन्वर्जन के पूरे विश्व में छा रही है तो लोगों ने कहा कि वह है भारतीय संस्कृति। वहां यह बात शोध का विषय है। भारत का विचार शोध का विषय है।
उन्होंने भारतीय संस्कृति के गूढ़ तत्व की बात करते हुए कहा कि हमने केवल एक लोक की चिंता नहीं की। भारत पूरे विश्व को ही नहीं, सभी लोकों को अपना परिवार मानता है। जहां-जहां जीवन है उसकी स्वीकारोक्ति भारत द्वारा है। पश्चिम का कहना था कि गॉड पार्टिकल हाथ लगा। वह सर्वभौम है, वह सनातन है। इसकी बात तो हमने बहुत पहले कह दी थी। पूरे पश्चिम में यदि भारत की कोई बात स्वीकार की जा रही है तो वह है पुरुषार्थ, पराक्रम, क्योंकि वह थकेगा नहीं। पश्चिम में ऐसी चर्चा होती है कि कौन ऐसा प्राणी है, जो व्यथित नहीं होता, आहत नहीं होता, विश्वासी है तो वह है भारत का आदमी। भारत का व्यक्ति आर्थिक छल नहीं करेगा, वैचारिक छल नहीं करेगा। पूरा संसार भारत की बात कर रहा है। भारत की औषधियों की, भारत के योग की। वर्ष 2007-08 योग दिवस पर अमेरिका में था। वहां तुलसी, नीम, बबूल, पेटेंट के लिए कोर्ट का चक्कर लगाया जा रहा था।
हमने पूर्णता का पहाड़ा सिखाया है। उसमें कुछ घटाओ तो घटता नहीं। अभाव नाम की कोई वस्तु नहीं होती। अल्पता, रिक्तता कुछ नहीं होती। ये मस्तिष्क की उपज है। हमने पूर्णता का ज्ञान सिखाया। क्योंकि परमात्मा पूर्ण है। जितना परमात्मा पूर्ण है, उतना आप भी हैं। कृष्ण कहते हैं कि तू पूर्ण है।
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