राजस्थान के बाड़मेर जिले का छोटा सा कस्बा जसोल है, जहां इस वक्त एक घर के बाहर लोगों का तांता लगा हुआ है। इस घर में लगातार णमोकार मंत्र का जाप चल रहा है, और परिवार के सदस्य इनकी सेवा में लगे हुए हैं, वो इसलिए क्योंकि इस घर के बुजुर्ग दंपति ने एक साथ इस संसार को छोड़ने का फैसला लिया है। जैन समाज के इतिहास में ऐसा पहली बार होने जा रहा है, जब ये दंपती अपनी इच्छा से मृत्यु वरण की परंपरा ‘संथारा; को कर रहा है।
जानकारी के मुताबिक, जसोल गांव के रहने वाले 83 साल के पुखराज संकलेचा और उनकी 81 साल की पत्नी गुलाबी देवी ने ‘संथारा’ ग्रहण किया है। जो पूरे इलाके में चर्चा का विषय बना है, दूर-दूर से लोग इस दंपति के दर्शन को लेकर यहां पहुंच रहे हैं। यहां सुबह से रात तक णमोकार मंत्र का उच्चारण हो रहा है, इसी के साथ भजन-कीर्तन भी चल रहा है। क्योंकि ये बात सब जानते हैं, कि इस परिवार के सबसे वरिष्ठ सदस्य इस संसार से एक साथ विदा लेने जा रहे हैं, संसार छोड़ने पर लोगों में दुख का भाव होता है, लेकिन यहां का माहौल दुख से भरा न होकर उत्सव से सराबोर है। क्योंकि जैन समाज में ये माना जाता है, कि ‘संथारा’ से देह त्यागने पर मनुष्य को उत्तम गति मिलती है।
दंपती ने क्यों लिया ‘संथारा’ लेने का फैसला ?
अब हम आपको बतातें हैं, कि इस दंपति ने ‘संथारा’ लेने का फैसला क्यों किया ? दरअसल, 10 साल पहले पुखराज संकलेचा की पत्नी गुलाबी देवी ने उनकी दोहिती के दीक्षा लेने के समय यह तय किया था, कि दस साल बाद वो संथारा लेंगी, जिसके बाद उनके परिवार ने उन्हें ऐसा करने से रोका, वहीं पुखराज संकलेचा के मन में संथारा को लेकर कोई विचार नहीं आया था। इसी बीच 7 दिसंबर 2022 को पुखराज को दिल का दौरा पड़ा। जिसके बाद उनकी तबीयत इतनी खराब हो गई कि उन्हें वेंटिलेटर पर रखा गया, जिसके बाद एक चमत्कार ही समझिए जो 83 वर्ष की आयु में 16 दिसंबर को बिल्कुल ठीक होकर अपने घर वापस लौट आए। जिसके बाद उन्होंने जीवन से विरक्त होने का फैसला लेते हुए, 27 दिसंबर 2022 से अन्न, जल त्यागते हुए, ‘संथारा’ पर रहने का निर्ण लिया। जिसके बाद उन्होंने सुमति मुनि के सान्निध्य में ‘संथारा’ लिया। जिसके बाद उनकी पत्नी गुलाबी देवी ने भी अन्न, जल त्याग कर दिया और 6 जनवरी को आचार्य महाश्रमण ने उन्हें ‘संथारा’ दिलवाया।
ये पहली बार है, जब दंपति ने एक साथ ग्रहण किया संथारा
जैन धर्म के इतिहास में ये पहली बार है, जब पति-पत्नी ने एक साथ ‘संथारा’ ग्रहण किया है। पदयात्रा करते हुए देशभर में भ्रमण करने वाले आचार्य महाश्रमण का मानन हैं, कि ऐसा पहली बार हो रहा है जब एक दंपति पति और पत्नी इस तरह एक साथ संथारा लिया है।
‘संथारा’ क्या होता है ?
‘संथारा’ जैन धर्म में सबसे पुरानी प्रथा मानी जाती है, जैन धर्म में इस प्रकार शरीर त्यागने को बेहद पवित्र कार्य माना जाता है। इस प्रथा के अंतर्गत व्यक्ति को जब लगता है कि उसकी मृत्यु पास है, और उसने जीवन में सबकुछ प्राप्त कर लिया है, तब वह खुद से अन्न-जल त्याग देता है। जैन ग्रंथों में इस तरह से मृत्यु वरण को समाधिमरण, पंडितमरण और संथारा कहा जाता है।
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