वडोदरा जिले में एक गांव है चाणसद। यहीं 7 दिसंबर, 1921 को प्रमुख स्वामी जी महाराज का प्राकट्य हुआ। बचपन में इनका नाम था शांतिलाल। माता दीवाली बा और पिता मोतीभाई सत्संग-प्रेमी थे। इस कारण उनके घर संतों का आगमन होता रहता था।
अभी शांतिलाल कुछ ही महीने के थे कि एक दिन शास्त्री जी महाराज उनके घर पहुंचे। उन्होंने बालक शांतिलाल को आशीर्वाद दिया और उनके माता-पिता से कहा कि यह हमारा है। हमें दे दीजिएगा।
कुछ वर्ष बाद ऐसा ही हुआ। 7 नवंबर, 1939 को उन्होंने गृहत्याग कर दिया और साधु बनने के लिए निकल पड़े। 22 दिसंबर, 1939 को अमदाबाद में शास्त्रीजी महाराज ने शांतिलाल को प्राथमिक पार्षदी दीक्षा देकर 10 जनवरी, 1940 को गोंडल में भागवती दीक्षा दी। फलस्वरूप विश्व को नारायणस्वरूपदास स्वामी की भेंट मिली। मात्र दस वर्ष में ही ये अपने गुरु शास्त्रीजी महाराज के प्रिय बन गए।
1950 में इन्हें इस संस्था का प्रमुख बनाया गया। इस तरह इन्हें प्रमुख स्वामी जी महाराज के रूप में जाना जाने लगा। उन्होंने अपनी आध्यात्मिक आभा से दुनिया को प्रभावित किया। उन्होंने 55 से अधिक देशों की यात्रा की और वहां मंदिर बनवाए।
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