उत्तराखंड में नैनीताल हाई कोर्ट ने सीमेंट फैक्ट्री एसोसिएशन और तीन अन्य कंपनियों की उस संशोधन प्रार्थना पत्र को खारिज कर दिया, जिसमें कोर्ट के आदेश को संशोधित करने का अनुरोध किया गया था। कोर्ट ने एडवोकेट दुष्यंत मैनाली की जनहित याचिका पर राज्य में सीमेंट उत्पादन करने वाली फैक्ट्रियों द्वारा प्लास्टिक बोरों के इस्तेमाल पर रोक और अन्य प्लास्टिक पैकेजिंग के उत्पादों पर रोक लगाते हुए पंद्रह दिनों में राज्य प्रदूषण बोर्ड में रजिस्ट्रेशन करवाने की बात कही थी।
7 जुलाई 2022 को हाई कोर्ट ने राज्य में सिंगल यूज प्लास्टिक पर पाबंदी की बात कहते हुए कहा था कि ये कंपनियां अपना ईपीआर प्लान बनाकर सेंट्रल पोर्टल पर अपलोड करें। उल्लेखनीय है कि सीमेंट की बोरियां प्लास्टिक के रेशे से बनी होती हैं, जो ड्रेनेज सिस्टम को चोक करती हैं और कुछ स्थानों पर प्लास्टिक के बोरों में रेता भरकर दीवार भी बना देते हैं, जो पर्यावरण के लिए हानिकारक है।
कोर्ट के इस आदेश में संशोधन करने के लिए मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति विपिन सांघी, न्यायमूर्ति मनोज जोशी की खंडपीठ में उद्योपतियों की ओर से जाने माने वकील मनु सांघवी और राजीव नैय्यर उपस्थिति हुए थे। उनके द्वारा ये तर्क भी दिया गया कि सरकार की नियमावली को दिल्ली हाई कोर्ट में भी चुनौती दी गई है क्योंकि सीमेंट कंपनियों की अन्य इकाईयां अन्य राज्यों में भी हैं। उन्होंने प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड में पंजीकरण की छूट में मांग करते हुए कहा कि डेटा ऑनलाइन अपलोड नहीं हो पा रहा है, जिस पर कहा गया कि दिल्ली हाईकोर्ट के आदेश को नैनीताल हाई कोर्ट मानने को बाध्य नहीं।
दोनों पक्षों को सुनने के बाद कोर्ट ने संशोधन की मांग करने वाली याचिका खारिज कर दिया और इस मामले की सुनवाई अगली 20 फरवरी को निर्धारित की है।
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