रा.स्व.संघ के सरसंघचालक श्री मोहनराव भागवत रा.स्व.संघ के सरसंघचालक श्री मोहनराव भागवत ने कहा कि पंचमहाभूतों में असंतुलन की विकृतियों से उबरना मानव जाति ही नहीं, बल्कि संपूर्ण विश्व के हित में है। हम जल का अनादर न करें, प्रकृति का सम्मान करें और इसकी सदैव पूजा करें। भारतीय संस्कृति एकात्मवादी है। जल का विषय गंभीर है और हमें इस बात की प्रामाणिकता से लोगों को अवगत कराना होगा। अपने-अपने सामर्थ्य के अनुसार पंचमहाभूतों पर अलग-अलग स्थानों पर कार्य करना और उपाय ढूंढना आवश्यक है। उन्होंने कहा कि भारत विश्व में अनोखा देश है जो जल ही नहीं, पंचमहाभूतों के लिए भी अपनी संस्कृति और ज्ञान के आधार पर कार्य करता रहा है। भारत के लोग जल के लिए तृतीय विश्व युद्ध नहीं होने देंगे।
उन्होंने कहा कि पश्चिमी देशों की नकल से ग्लोबल वार्मिंग और अन्य घटनाएं घटित हुई हैं। मानव विकास की दिशा सही नहीं होना इसके मूल में है। ग्लोबल वार्मिंग कोई बहुत पुरानी समस्या नहीं है। हाल के 300 वर्षों में ही यह संकट के रूप में उभरा है। मानव स्वयं को प्रकृति का अंग न मानकर स्वयं को मालिक समझ बैठा है। उसके इस अज्ञान और अहंकार के कारण ही इस तरह की समस्याएं आज भारत में भी आने लगी हैं। भारतीय परंपराओं के अनुसार, विज्ञान और समावेश के साथ जल, वायु और अन्य पंच तत्वों के स्वाभाविक गुणों का उपयोग करने से इस तरह की समस्याएं कम ही नहीं, बल्कि समाप्ति की ओर होंगी। भारत पुन: विश्व गुरु स्थापित हो, इसके लिए हमें इस दिशा में जनमानस के साथ ही कार्य करना होगा। इस तरह की गोष्ठियां, जिसमें राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय वैज्ञानिक, संत-महात्मा सम्मिलित हुए हैं, निश्चित ही अपने उद्देश्य को प्राप्त करेंगी।
केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया ने कहा कि हम धरती के मालिक नहीं, किरायेदार हैं। संयुक्त राष्ट्र संघ ने पानी को मानव के लिए सबसे बड़ी चुनौती माना है। वेदों में पानी को सबसे महत्वपूर्ण पंचतत्व माना है और नदियों को मां का दर्जा दिया गया है। लेकिन बढ़ती आबादी और जलवायु परिवर्तन ने जल संकट को भी बढ़ाया है। आगर हम नहीं चेते, तो प्रकृति के कहर का सामना करना ही पड़ेगा।
राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण (एनजीटी) के अध्यक्ष न्यायमूर्ति आदर्श गोयल ने कहा कि यह समाज के विषय हैं और समाज को ही इसका रास्ता निकालना चाहिए। नदियों का प्रदूषण लगातार बढ़ रहा है। इतनी निगरानी के बाद भी बिना शोधन किए 80 प्रतिशत नाले का पानी नदियों में डाला जा रहा है। 1985 से 2010 तक 25 वर्ष में प्रदूषण बढ़ा है। लेकिन 2010 से 2020 के बीच यह और तेजी से बढ़ा है। जल को लेकर भारत का दृष्टिकोण पश्चिम से भिन्न है, इस विचार को धरातल पर लाना होगा। इस सत्र में सद्गुरु जग्गी वासुदेव का संदेश वीडियो के माध्यम से साझा किया गया। राजस्थान के 83 वर्षीय रामसिंह बीकाजी ने लोक गीत ‘दल-बादली रो पाणी, कुण तो भरे’ से जल-विमर्श की गीतमय भूमिका बांधी। डॉ. क्षिप्रा माथुर की लिखी जल-संकट और भारतीय दर्शन में जल-पक्ष को रेखांकित करती डाक्यूमेंट्री भी प्रदर्शित की गई।
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