कोरोना महामारी के दौरान दुनियाभर के देशों में लॉकडाउन लगा था। इससे आनलाइन कक्षाओं का चलन शुरू हुआ। नतीजा यह हुआ कि छोटी उम्र में ही स्कूली बच्चों की मोबाइल तक पहुंच बन गई। इसका एक और दुष्परिणाम यह हुआ कि बच्चों को सोशल मीडिया की लत लग गई और इससे क्या क्या नुकसान हुए हैं वे सबके सामने हैं। 2021 के अंत में सबसे पहले यह साफ हुआ था कि सोशल मीडिया किस हद तक छोटे बच्चों पर नकारात्मक असर डाल रहा है।
अमेरिका में सोशल मीडिया के बुरे नतीजों से स्कूल ही नहीं, अभिभावक तक परेशान हैं। बच्चे मानसिक अवसाद, एकाकीपन और चिड़चिड़े स्वभाव से ग्रस्त पाए जा रहे हैं। वाशिंग्टन के एक स्कूल ने इन सब चीजों का संज्ञान लेते हुए अब सोशल मीडिया कंपनियों को ही कठघरे में खड़ा करने का मन बना लिया है।
अमेरिका में स्कूली बच्चे सोशल मीडिया में इतने गहरे उतर चुके हैं कि अब उनसे पढ़ाई नहीं हो पा रही है। इस चलन के विरुद्ध मोर्चा खोला है वाशिंग्टन के सिएटल पब्लिक स्कूल ने। इस स्कूल ने बच्चों में सोशल मीडिया की बुरी लत पड़ने के लिए बड़ी सोशल मीडिया कंपनियों को जिम्मेदार मानते हुए उनके विरुद्ध मुकदमा दर्ज कराया है। याचिका में स्कूल ने कहा है कि वह अपने शैक्षिक मकसद में पिछड़ रहा है क्योंकि स्कूल के छात्र तनाव, अवसाद तथा अन्य अनेक प्रकार की मानसिक दिक्कतें झेल रहे हैं।
उल्लेखनीय है कि सिएटल की अदालत में दो दिन पहले दायर हुए इस मुकदमे में अल्फाबेट, मेटा (फेसबुक की कंपनी), स्नैपचैट, टिकटॉक और बाइटडांस आदि सोशल मीडिया प्लेटफार्म कंपनियां को कठघरे में खड़ा किया गया है। इन्हें बच्चों में उभर रहे मानसिक रोगों के लिए दोषी ठहराया गया है।
स्कूल ने बच्चों में सोशल मीडिया की बुरी लत पड़ने के लिए बड़ी सोशल मीडिया कंपनियों को जिम्मेदार मानते हुए उनके विरुद्ध मुकदमा दर्ज कराया है। याचिका में स्कूल ने कहा है कि वह अपने शैक्षिक मकसद में पिछड़ रहा है क्योंकि स्कूल के छात्र तनाव, अवसाद तथा अन्य अनेक प्रकार की मानसिक दिक्कतें झेल रहे हैं।
इसी तरह के एक मामले में गत वर्ष भी अमेरिका में स्कूली छात्रों के कई माता—पिताओं ने अदालत का दरवाजा खटखटाया था। उन्होंने भी अपनी तरफ से याचिका दायर की थी जिसमें दर्जनभर सोशल मीडिया कंपनियों पर आरोप लगाया था कि उनकी वजह से बच्चे आत्महत्या जैसा कदम उठा रहे हैं। इसे देखते हुए सिएटल स्कूल का दर्ज किया मुकदमा एक गंभीर सामाजिक समस्या का रेखांकित करता मालूम देता है।
दरअसल पिछले साल फेसबुक की कंपनी मेटा के पूर्व अधिकारी फ्रांसेस हौगेन ने कंपनी के आंतरिक कामकाज से संबंधित दस्तावेज उजागर किए थे। फ्रांसेस ने तब आरोप लगाया था कि मेटा कंपनी अपना आर्थिक फायदा बढ़ाने के लिए सोच—समझकर युवाओं को शिकार बना रही है। इस सनसनीखेज आरोप के सामने आने के बाद अमेरिका के कुछ राज्यों के महाधिवक्ताओं ने अपनी तरफ से इस मामले की गहराई में जाने की कोशिशें कीं।
गूगल की तरफ से एक अधिकारी जोस कास्टानेडा ने ईमेल करके बताया है कि ‘हमने अपने प्लेटफॉर्म पर काफी पैसा खर्च करके इसे बच्चों के लिए सुरक्षित बनाने की कवायद की है। हमारी प्राथमिकता बच्चों की भलाई है।’ उनका कहना था कि ‘फैमिली लिंक’ माता-पिता को ‘रिमाइंडर्स’ लगाने, ‘स्क्रीन टाइम’ सीमित करने और खास तरह के ‘कंटेंट’ को ब्लॉक करने की सुविधा देता है।
दूसरी तरफ फेसबुक की कंपनी मेटा ने फिलहाल इन आरोपों पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी है। मुकदमे में और जिन सोशल मीडिया कंपनियों को कठघरे में रखा गया है, जैसे स्नैपचैट, टिकटॉक आदि, उनकी तरफ से भी स्कूल की कार्रवाई पर कोई जवाब नहीं आया है।
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