देवतात्मा हिमालय ने पर्यटकों तथा अध्यात्म प्रेमियों को सदैव अपनी ओर खींचा है। प्रख्यात शिक्षाविद एवं समाजसेवी हिमालय पुत्र के नाम से सुविख्यात डॉ. नित्यानन्द ने हिमालय को ही सेवा कार्य के लिए अपनी गतिविधियों का केन्द्र बनाया था। उत्तराखण्ड राज्य के प्रणेता डॉ. नित्यानंद ने अपना पूरा जीवन ही हिमालय की सेवा में समर्पित कर दिया था, उनके अथक प्रयासों से ही उत्तराखंड राज्य का गठन हो सका था। सन 1991 में उत्तरकाशी में आए भूकंप के बाद उन्होंने गंगा घाटी के मनेरी गांव को अपना केन्द्र बनाया था। उन्होंने वहां 400 से अधिक आवास बनवाए और जीवन के अंत तक शिक्षा, संस्कार और रोजगार के प्रसार के लिए काम करते रहे। उन्होंने आजीवन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सच्चे स्वयंसेवक का कर्तव्य निभाते हुए भावी पीढ़ी के लिए आदर्श प्रस्तुत किया है।
डॉ. नित्यानंद का जन्म 9 फरवरी सन 1926 को आगरा, उत्तर प्रदेश में हुआ था। आगरा में सन 1940 में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के विभाग प्रचारक नरहरि नारायण ने उनका परिचय राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से कराया था। एक समय दीनदयाल उपाध्याय से हुई भेंट ने उनका सम्पूर्ण जीवन ही बदल दिया, जिससे प्रभावित होकर उन्होंने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को माध्यम बनाकर समाज सेवा करने का व्रत ले लिया था। सन 1944 में आगरा से बीए करने के बाद वह भाऊराव देवरस की प्रेरणा से प्रचारक बनकर आगरा व फिरोजाबाद में कार्यरत रहे। नौ वर्ष पश्चात उन्होंने फिर से पढ़ाई प्रारम्भ की और सन 1954 में भूगोल से प्रथम श्रेणी में एमए किया था। जीवन यापन हेतु उन्होंने अध्यापन कार्य किया, परन्तु अधिकांश समय राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को देने के कारण उन्होंने विवाह नहीं किया था। सन 1960 में अलीगढ़ से भूगोल में पीएचडी कर नित्यानंद कई जगह अध्यापक भी रहे। सन 1965 से सन 1985 तक वह उत्तराखण्ड में देहरादून के डीबीएस कॉलेज में भूगोल के विभागाध्यक्ष रहे। नित्यानंद का जन्म तो आगरा में हुआ था, लेकिन उन्होंने अंततः देवभूमि उत्तराखंड को अपनी कर्मभूमि बनाया था।
उन्होंने हिमालय के दुर्गम स्थानों का गहन अध्ययन किया था। पहाड़ का विकट जीवन, निर्धनता, बेरोजगारी, युवकों का पलायन आदि समस्याओं ने उनके संवेदनशील मन को झकझोर दिया था। आपातकाल में नौकरी की चिन्ता किए बिना वह सहर्ष कारावास में रहे थे। उन्होंने आजीवन कहीं कोई घर नहीं बनाया था, सेवानिवृत्त होकर वह पहले आगरा और फिर देहरादून के राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कार्यालय पर रहने लगे थे। नित्यानंद ने एक साधक की तरह मन, वचन और कर्म से समाज की सेवा की थी। उत्तराखण्ड में उन्होंने जिला से लेकर प्रान्त कार्यवाह तक दायित्व का निर्वहन किया था। दिसम्बर सन 1969 में लखनऊ में हुए उत्तर प्रदेश के 15,000 हजार स्वयंसेवकों के विशाल शिविर के मुख्य शिक्षक वही थे, उनका विश्वास था कि संघ स्थान के शारीरिक कार्यक्रमों की रगड़ से ही अच्छे कार्यकर्ता बनते हैं।
20 अक्तूबर सन 1991 को हिमालय क्षेत्र में विनाशकारी भूकम्प आया था, इससे सर्वाधिक हानि उत्तरकाशी में हुई थी। डॉ. नित्यानन्द ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की योजना से वहां हुए समस्त पुनर्निमाण कार्य का नेतृत्व किया था। उत्तरकाशी से गंगोत्री मार्ग पर मनेरी ग्राम में ‘सेवा आश्रम’ के नाम से इसका केन्द्र बनाया गया था। उनकी माता के नाम से बने न्यास को वह स्वयं तथा उनके परिजन सहयोग करते थे। इस सेवा न्यास की ओर से 22 लाख रुपये खर्च कर मनेरी में एक छात्रावास बनाया गया है। उस छात्रावास में गंगोत्री क्षेत्र के दूरस्थ गांवों के छात्र केवल भोजन शुल्क देकर कक्षा 12 तक की शिक्षा पाते हैं। वहां से ग्राम्य विकास, शिक्षा, रोजगार, शराबबन्दी तथा कुरीति उन्मूलन के अनेक प्रकल्प भी चलाये जा रहे हैं। नित्यानंद अपनी पेंशन से अनेक निर्धन व मेधावी छात्रों को छात्रवृत्ति देते थे। नित्यानंद को उत्तरांचल दैवीय आपदा पीड़ित सहायता समिति के गठन का भी श्रेय जाता है, यह समिति बरसों से देश की किसी भी हिस्से में आई आपदा में पीड़ितों की मदद का हरसंभव प्रयास करती है।
जिन दिनों पृथक राज्य उत्तराखंड आन्दोलन अपने चरम पर था, तो उसे वामपन्थियों तथा नक्सलियों के हाथ में जाते देख उन्होंने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के वरिष्ठजनों को इसके समर्थन के लिए तैयार किया था। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सक्रिय होते ही सभी देशद्रोही भाग खड़े हुए थे। हिमाचल की तरह इस पर्वतीय क्षेत्र को उत्तरांचल नाम भी उन्होंने ही दिया था। केन्द्र में अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार बनने पर अलग राज्य उत्तराखण्ड बना। उन्होंने स्वयं को सेवा कार्य तक ही सीमित रखा था। उत्तरकाशी की गंगा घाटी पहले लाल घाटी कहलाती थी, पर अब वह भगवा घाटी कहलाने लगी है। उत्तरकाशी जिले की दूरस्थ तमसा टौंस घाटी में भी उन्होंने एक छात्रावास खोला था। उत्तराखंड में आयी प्रत्येक प्राकृतिक आपदा में वह सक्रिय रहे। देश की कई संस्थाओं ने सेवा कार्यों के लिए उन्हें सम्मानित किया। उन्होंने इतिहास और भूगोल से सम्बन्धित कई पुस्तकें लिखीं थी। भूगोलवेत्ता एवं समाजसेवी डॉ. नित्यानंद के नाम तथा उनके द्वारा किये कार्यों से सभी परिचित हैं। उन्होंने राजस्थान तथा हिमालय की भौगोलिक समस्याओं पर गहन शोध–चिंतन किया था।
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हिमालय के प्रति अगाध श्रद्धा एवं अनुराग होने के कारण हिमालय के अनेक रहस्यों, भौगोलिक तथ्यों व हिमालय के बहुआयामी परिवेश को उन्होंने अपने अध्ययन का विषय व कार्य क्षेत्र बनाया था तथा संपूर्ण विश्व का ध्यान हिमालय की ओर आकर्षित कराया था। डॉ.नित्यानंद के देश-विदेश के प्रसिद्ध भूगोलवेत्ताओं के साथ बहुत ही अच्छे अकादमिक संबंध रहे। वह हमेशा अपने सहयोगियों व छात्रों को समाज सेवा, शोध कार्य व चरित्र निर्माण पर जोर देते हुए प्रोत्साहित करते थे। उनके शोधपत्र समय-समय पर अनेक राष्ट्रीय, अंतरराष्ट्रीय पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हुए थे। अमेरिका की प्रसिद्ध भौगोलिक संस्था Annals of Association of America Geographers की प्रतिष्ठित पत्रिका में उनका शोधपत्र प्रकाशित हुआ था, यह गौरव विश्व के चुनिंदा विद्वानों को ही प्राप्त हुआ है। The Holy Himalaya a Geographical Interpretation of Garhwal उनकी अनुपम कृति सहित दर्जनों उच्च स्तरीय लेख व पुस्तकें हैं, जिसमें भूगोल के साथ-साथ इतिहास के सम्यक दृष्टिकोण को प्रस्तुत किया गया है।
डॉ.नित्यानंद ने एक अध्येता तथा समाजसेवी के रूप में उत्तराखण्ड के सुदूरवर्ती क्षेत्रों का अनेक बार प्रवास किया तथा स्थानीय युवकों को विकास की दिशा दी। उन्होंने सेवानिवृत्ति के पश्चात संपूर्ण समय रचनात्मक सेवा कार्यों में लगा दिया तथा उत्तराखंड के सुदूर पिछड़े क्षेत्रों को अपना विशेष कार्यक्षेत्र बनाया था। दूर दराज के क्षेत्रों के गरीब छात्रों के लिए माक्टी चकराता, लक्षेश्वर व मनेरी, नैटवाड़, मोरी उत्तरकाशी में छात्रावास स्थापित किये। सन 1991 के उत्तरकाशी भूकंप के बाद उत्तरांचल दैवीय आपदा पीड़ित सहायता समिति द्वारा अंगीकृत सीमांत भटवाड़ी विकासखंड के समग्र विकास के लिए प्रयासरत रहे। गंगोत्री के पावन आंचल में स्थित यह क्षेत्र आज पहाड़ के अन्य स्थानों के लिए प्रेरणा पुंज सिद्ध हो रहा है। वृद्धावस्था में भी वे सेवा आश्रम मनेरी में छात्रों के बीच या फिर देहरादून के राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ कार्यालय पर ही रहते थे। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के जीवनव्रती कार्यकर्ता तथा विश्व प्रसिद्ध भूगोलवेत्ता कर्मयोगी डॉ. नित्यानंद का देहावसान 8 जनवरी सन 2016 को रात्रि 8.30 बजे देहरादून के महंत इंद्रेश अस्पताल में हुआ था।
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