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फौज पर ताबड़तोड़ हमले

बलूचिस्तान में चल रहे छापामार संघर्ष में फिलहाल पाकिस्तानी फौज बैकफुट पर

by WEB DESK
Jan 6, 2023, 08:15 am IST
in विश्लेषण
25 दिसंबर को बलूचिस्तान में एक स्थान पर बम धमाके के बाद का दृश्य

25 दिसंबर को बलूचिस्तान में एक स्थान पर बम धमाके के बाद का दृश्य

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बलूचिस्तान में जिन्ना के जन्म दिन पर जिस तरह से सुरक्षाबलों पर एक के बाद एक हमले किए गए, उससे पता चलता है कि ‘कायद-ए-आजम’ के प्रति बलूचों में कितना गुस्सा है

बलूचिस्तान से आजाद होने की चाह के साथ छापामार युद्ध कर रहे बलूचों ने पिछले कुछ दिनों में पाकिस्तानी सुरक्षाबलों को बार-बार निशाना बनाया और उसके कई जवानों को मार गिराया। इन हमलों से दो बातें साफ हो रही हैं। पहली, बलूचिस्तान में चल रहे छापामार संघर्ष में फिलहाल पाकिस्तानी फौज बैकफुट पर है और दूसरी, जिन्ना को लेकर बलूचों के मन में गुस्सा कूट-कूट कर भरा हुआ है।

सबसे पहले बात उन हमलों की जो हाल के दिनों में बलूचों ने किए-
10 दिसंबर: क्वेटा के दक्षिण-पश्चिम में नोशकी नामक स्थान पर बलूच लड़ाकों ने आगा वली नाम के स्थानीय दुकानदार की हत्या कर दी। आगा आईएसआई के लिए काम करता था। उसका मुख्य काम पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी के लिए युवाओं को बहला-फुसलाकर या फिर डरा-धमकाकर काम करने के लिए तैयार करना था। अब तक उसने कई बलूच लड़कियों को ब्लैकमेल करके उन्हें आईएसआई के लिए काम करने को तैयार किया था। इसके अलावा, उसकी मुखबिरी के कारण कई बलूच मारे जा चुके थे और कई लोगों को सुरक्षाबल उठाकर ले गए, जिनका कोई अता-पता नहीं चला। इसलिए आगा निशाने पर था।

इसी दिन केच तहसील स्थित छोटी-सी घाटी बुलैदा के मेनाज इलाके में छिपे आईएसआई के ठिकाने पर बलूचिस्तान लिबरेशन आर्मी (बीएलए) के लड़ाकों ने हमला किया। हमले के समय वहां पाकिस्तानी फौज के भी कुछ जवान थे। इस हमले में तीन जवान घायल हो गए।

जिन्ना के लिए बलूचों में गुस्सा पहले भी था और शायद आगे भी तब तक रहने वाला है, जब तक बलूचों की आजादी की यह लड़ाई किसी अंजाम तक नहीं पहुंचती। इसलिए बलूचिस्तान में जिन्ना को खलनायक के तौर पर देखा जाता है।

13 दिसंबर: खरान में शहरियार नौशेरवानी पर हमला किया गया। शहरियार का भी काम वही था, जो नोशकी के आगा वली का। यानी आईएसआई के लिए स्थानीय लोगों को काम करने के लिए तैयार करना। उसके कारण भी कई लोगों की जान जा चुकी थी और कई लोग लापता किए जा चुके थे।

आगे की तारीखों पर बढ़ने से पहले, इन दो हमलों से निकलने वाले संकेतों की बात। बलूचों को धीरे-धीरे इस बात का अंदाजा होने लगा था कि अगर उन्हें छापामार लड़ाई जीतनी है, तो उसे सबसे पहले स्थानीय आबादी में आईएसआई और पाकिस्तानी फौज की सेंधमारी को रोकना होगा। क्वेटा के राजनीतिक कार्यकर्ता रियाज बलोच कहते हैं, ‘‘लड़ाई मैदान में कम और दिमाग में ज्यादा लड़ी जाती है। खास तौर पर छापामार लड़ाई तो ऐसी ही होती है। इस लिहाज से यह बात शर्तिया कही जा सकती है कि वक्त के साथ बलूचों की रणनीति बेहतर हुई है और वे अब अंधाधुंध हमले की जगह वैसे हमले ज्यादा कर रहे हैं, जिनका असर ज्यादा हो।’’

15 दिसंबर: केच के कोलवाह में काध होटल के पास पाकिस्तानी सैन्य वाहन को आईईडी विस्फोट से उड़ाया दिया गया, जिसमें तीन सैनिक मारे गए और तीन घायल हो गए। इसी दिन कलात में एक सुरक्षा चौकी पर ग्रेनेड से हमला किया गया, जिसमें दो सैनिक घायल हुए।

16 दिसंबर: बलोच लिबरेशन आर्मी के लड़ाकों ने फौज के लिए रसद ले जा रही एक गाड़ी को खूबसूरत बोलन दर्रे में आईईडी विस्फोट से उड़ा दिया। इस हमले में दो सैनिक घायल हो गए।

19 दिसंबर: पंजगुर में पाकिस्तान फौज का बड़ा शिविर है और बीएलए के लड़ाकों ने इस पर हैंड ग्रेनेड फेंके, जिसमें दो सैनिक घायल हो गए।

20 दिसंबर: बलूच लड़ाकों ने पाकिस्तानी फौज की एक गाड़ी पर हैंड ग्रेनेड से हमला किया, जिसमें तीन सैनिक घायल हो गए। इस हमले में ग्रेनेड गाड़ी के भीतर फेंका गया था।

ये हमले दो बातों की ओर इशारा कर रहे हैं। पहला, बलूच अब दुश्मन को केवल हथियारों से नहीं मार रहे, बल्कि उन्हें मिलने वाली मदद को काटने की कोशिश भी कर रहे हैं। और दूसरा, वे वैसे हमले कर रहे हैं जो फौज में दहशत पैदा करें। केच के दरजी मेंगल कहते हैं, ‘‘मुझे नहीं लगता कि पंजगुर का हमला उस आर्मी बेस पर किया गया कोई गंभीर हमला था। यह शायद एक ऐसा हमला था, जिसका मकसद वहां सैनिकों की चौकसी और दूसरे इंतजाम को देखने का रहा हो। अगर संकेत देखें तो आने वाले समय में इस छावनी पर कोई बड़ा हमला देखने को मिल सकता है।’’

वहीं, क्वेटा के फिरोज बलोच कहते हैं, ‘‘पिछले 10-15 दिनों में बलूचों ने जितने हमले किए हैं, उनमें खास तौर पर वैसी गाड़ियों को निशाना बनाया गया है जो फौज के लिए रसद और मदद लेकर जा रही थीं। शायद लड़ाके यह चाहते हों कि फौज में इस तरह की भूमिका निभा रहे फौजियों में खौफ पैदा हो।’’

हाल के दिनों में बलूचों के निशाने पर खास तौर पर वे लोग रहे हैं, जो फौज की मदद करते रहे हैं। मेंगल कहते हैं, ‘‘कुछ दिन पहले बलूचों ने पाकिस्तानी फौज के खासमखास शेख सलीम तगापी को खेरान के हाजी इब्राहीम चंगेजी इलाके में उसके घर में घुसकर मार डाला था। इसमें उसके चार और साथी मारे गए थे। यह बलूचों की एक बड़ी कार्रवाई थी, क्योंकि तगापी फौज का बेहद करीबी था और पिछले एक दशक से वह बलूचों के लिए सिरदर्द बना हुआ था। जाहिर है, बलूच अब अंधाधुंध नहीं, बल्कि बहुत सोच-समझकर हमले कर रहे हैं।’’

25 दिसंबर: बलूचिस्तान में नौ जगहों पर विस्फोट किए गए। इनमें से तीन क्वेटा में, दो तुरबत में किए गए। इनके अलावा कोहलू, कलात, खुजदार और हुब में भी विस्फोट किए गए। इन हमलों में 10-12 जवान घायल हो गए। 25 दिसंबर का हमला खास इसलिए है कि यह पाकिस्तान बनाने में बड़ी भूमिका निभाने वाले मोहम्मद अली जिन्ना का जन्मदिन था। पूरा पाकिस्तान जहां पूरे उत्साह से जिन्ना का जन्मदिन मना है, वहीं बलूचों के लिए यह दिन गुस्से का होता है। क्यों? क्योंकि मोहम्मद अली जिन्ना, जो हिंदुस्थान की आजादी से पहले कलात के खान के वकील हुआ करते थे, ने ही कलात का केस लड़ा और यह साबित किया था कि कलात एक स्वतंत्र इलाका है। फिर इसी जिन्ना ने पाकिस्तान के बनने के बाद बलूचिस्तान पर हमला करके उस पर कब्जा कर लिया था। इसलिए बलूचिस्तान में जिन्ना को खलनायक के तौर पर देखा जाता है।

‘‘कुछ दिन पहले बलूचों ने पाकिस्तानी फौज के खासमखास शेख सलीम तगापी को खेरान के हाजी इब्राहीम चंगेजी इलाके में उसके घर में घुसकर मार डाला था। इसमें उसके चार और साथी मारे गए थे। यह बलूचों की एक बड़ी कार्रवाई थी, क्योंकि तगापी फौज का बेहद करीबी था और पिछले एक दशक से वह बलूचों के लिए सिरदर्द बना हुआ था। जाहिर है, बलूच अब अंधाधुंध नहीं, बल्कि बहुत सोच-समझकर हमले कर रहे हैं।’’

राजनीतिक कार्यकर्ता जायद बलोच कहते हैं, ‘‘बलूचिस्तान की अवाम जिन्ना को कभी माफ नहीं कर सकती। उसकी वजह से एक ऐसा मुल्क गुलाम बन गया, जो भारत के बंटवारे के पहले ही आजाद था। यानी जब पाकिस्तान का वजूद भी नहीं था, बलूचिस्तान तब से एक आजाद मुल्क था। बलूचों की लड़ाई इसी बात को लेकर तो है। इसलिए बलूचों के लिए जिन्ना एक धोखेबाज शख्स था, जिसने उसी के साथ गद्दारी की, जिसका उसने नमक खाया।’’

जिन्ना के लिए बलूचों का जो यह गुस्सा है, वह पहले भी था और शायद आगे भी तब तक रहने वाला है, जब तक बलूचों की आजादी की यह लड़ाई किसी अंजाम तक नहीं पहुंचती। इसलिए यह कोई ऐसा कारक नहीं जो आगे की रणनीति पर कोई असर डालता हो। लेकिन हाल के हमले जरूर बलूचों की बदली हुई रणनीति की ओर इशारा कर रहे हैं।

ऐसा लगता है कि बलूचों ने अपनी छापामार लड़ाई को अब और धार देने की पूरी रणनीति तैयार कर ली है और उनका उद्देश्य पाकिस्तानी फौज के मनोबल को तोड़ना है, उन्हें घेरकर और कमजोर करके मारना है। वैसे, पिछले एक साल के दौरान बलूचों के हमले में एक बात जरूर दिखी है कि उन्होंने उन लोगों को चुन-चुनकर मारा है, जो निर्दोष बलूचों पर हमलों के लिए जिम्मेदार रहे। अब लगता है इसी रणनीति का दूसरा हिस्सा शुरू हो चुका है।

Topics: क्वेटा के फिरोज बलोचबलूचों की आजादीकायद-ए-आजम’आईईडी विस्फोटपाकिस्तानी फौज
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