विश्व भर में ग्रेगरी कैलेंडर के आरंभ पर जमकर पटाखे चलाए जाएं, लेकिन दीपावली पर पटाखों से प्रदूषण के नाम पर मायूसी का माहौल अनिवार्य कर दिया जाए। इस प्रकार की एकतरफा चिंताएं इस धारणा को पुष्ट करती हैं कि कथित विश्व व्यवस्था औपनिवेशिक मानसिकता में कैद तंत्र जैसा व्यवहार कर रही है।
अपने प्रथम सम्पादक अटल जी की जयंती वैचारिक उत्साह के साथ मनाने के लिए पाञ्चजन्य सागर मंथन ‘सुशासन संवाद’ कार्यक्रम के लिए जब गोवा पहुंचा, तो 24 दिसम्बर की शाम ढलते-ढलते आसमान में तरह-तरह के पटाखे नजर आ रहे थे। स्पष्ट बात थी कि लोग क्रिसमस के जोश में पटाखे चला रहे थे। क्रिसमस एक उत्सव है और उत्सव का उत्साह था। अच्छी बात है। कोई भी उत्सव उत्साह के साथ ही मनाया जाना चाहिए।
लेकिन क्रिसमस के लिए गोवा का उत्साह देखकर मन में सीधा यह प्रश्न कौंधना स्वाभाविक है कि क्रिसमस के लिए, नए वर्ष के लिए, और विभिन्न तरह के अन्य कार्यक्रमों के लिए तो पटाखे निर्बाध चलाए जा सकते हैं, लेकिन जब दीपावली के पर्व पर पटाखे चलाने की बात आती है तो तुरंत तरह-तरह की आपत्तियां और चिंताएं इस तरह जताई जाने लगती हैं, जिनसे उत्सव का उत्साह पक्ष ही फीका पड़ जाता है।
आज दुनिया में जिस नई विश्व व्यवस्था की बात हो रही है, जिसकी आवश्यकता है, उसकी रचना में जी-20 सरीखे मंच और प्रवासी भारतीय समुदाय महती भूमिका निभा सकते हैं। इस नई विश्व व्यवस्था को विश्वपरक होना होगा। यह कुछ विशेष राजधानियों के हितों की चेरी बन कर पूरे विश्व पर स्वयं को नहीं थोप सकती है। सौभाग्य से आज इस पूरे विश्व की बात प्रभावी ढंग से रख सकने में भारत भी समर्थ है और विश्व भर में बसे प्रवासी भारतीय भी। स्वयं विश्व प्रतीक्षा में है। हमें इस युगधर्म का पालन करने के लिए अपना मानस तैयार करना होगा।
कहा जाता है कि दीपावली के पटाखों से पशु डर जाएंगे और पर्यावरण को बड़ी भारी क्षति होगी। तमाम शोध और अनुसंधान यह साबित कर चुके हैं कि दीपावली के पटाखों से प्रदूषण का खास कोई लेना-देना नहीं है- याद कीजिए, आईआईटी द्वारा इस विषय पर किए गए शोध को, जिसे देखने से भी इनकार कर दिया गया था। तो क्या जिद इस बात की थी कि तुम्हारा पर्व हेय है, और बाकी पर्व उत्सव हैं?
लेकिन उससे भी पहले प्रश्न प्रदूषण की चिंता पर आता है। बहुत लोगों ने कहा है, जिसे खारिज कर सकना तार्किक तौर पर संभव नहीं है, कि पर्यावरण को लेकर जो अंतरराष्ट्रीय चिंता जताई जा रही है, वह चिंता इस तरह से रची गई है जिससे कतिपय औद्योगिक देशों में हो रहे पर्यावरण को तो ढांप दिया जाए, लेकिन बाकी देशों के लिए पर्यावरण का मुद्दा खड़ा कर दिया जाए। प्रश्न यह नहीं है कि पर्यावरण की चिंता होनी चाहिए या नहीं होनी चाहिए। निश्चित रूप से होनी चाहिए और जहां तक भारत का संबंध है, भारत के लिए तो यह अपनी संस्कृति और आस्था का प्रश्न है। लेकिन दुखद बात यह है कि पर्यावरण की हो या किसी अन्य बात की चिंता हो, जो विश्व के लिए उपयोगी और आवश्यक हो, वह समान और समरूप होनी चाहिए।
तमाम तरह के अंतरराष्ट्रीय विषयों में यह आसानी से देखा जा सकता है कि कुछ देश अपनी सुविधा और स्वार्थ के हिसाब से दुनिया को हांकने की कोशिश कर रहे हैं। जो गोवा पर्यावरण की दृष्टि से संवेदनशील है, जो तटीय और औषधनिर्माणी क्षेत्र है, वहां पर्यावरण की चिंता न की जाए, विश्व भर में ग्रेगरी कैलेंडर के आरंभ पर जमकर पटाखे चलाए जाएं, उनकी भव्यता का बखान भी विश्व भर में किया जाए, लेकिन दीपावली पर पटाखों से प्रदूषण के नाम पर किसी भी वैज्ञानिक आधार के बिना ही मायूसी का माहौल अनिवार्य कर दिया जाए। इस प्रकार की एकतरफा चिंताएं इस धारणा को पुष्ट करती हैं कि कथित विश्व व्यवस्था औपनिवेशिक मानसिकता में कैद तंत्र जैसा व्यवहार कर रही है। भले ही भारत में भी उन औपनिवेशिक शक्तियों के कुछ मानस-दास उपस्थित हों।
इस विश्व व्यवस्था को बदलना ही होगा। भारत यह बात पुरजोर ढंग से रख रहा है और विश्व को इसे समझना होगा। कई कमजोर देशों के साथ परस्पर सौदेबाजी करके उनकी वास्तविक आपत्तियों को खरीद लेने, धमका कर चुप कर देने का दौर अब लद चुका है। अभी जी-20 शिखर सम्मेलन के लिए इंदौर और दिल्ली में तैयारियां चल रही हैं। आने वाले दिनों में प्रवासी भारतीय दिवस भी मनाया जाना है।
जी-20 की मेजबानी यानी विश्व के प्रमुख देशों का आतिथ्य और औपचारिक नेतृत्व।
प्रवासी भारतीय माने अपने-आप में भारत की विश्वव्यापी सांस्कृतिक उपस्थिति। आज दुनिया में जिस नई विश्व व्यवस्था की बात हो रही है, जिसकी आवश्यकता है, उसकी रचना में जी-20 सरीखे मंच और प्रवासी भारतीय समुदाय महती भूमिका निभा सकते हैं। इस नई विश्व व्यवस्था को विश्वपरक होना होगा। यह कुछ विशेष राजधानियों के हितों की चेरी बन कर पूरे विश्व पर स्वयं को नहीं थोप सकती है। सौभाग्य से आज इस पूरे विश्व की बात प्रभावी ढंग से रख सकने में भारत भी समर्थ है और विश्व भर में बसे प्रवासी भारतीय भी। स्वयं विश्व प्रतीक्षा में है। हमें इस युगधर्म का पालन करने के लिए अपना मानस तैयार करना होगा।
@hiteshshankar
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