दिल्ली से से गाजियाबाद में शुक्रवार को ब्लैक और व्हाइट फंगस का पहला केस मिला है। जिसके बाद स्वास्थ्य विभाग में हड़कम्प मचा हुआ है।यह केस ऐसे समय मे मिला है जब चीन, अमेरिका और जापान समेत कई देशों में बढ़ते कोरोना का कहर है।
हर्ष अस्पताल के संचालक व वरिष्ठ ईएनटी सर्जन बीपी त्यागी ने बताया कि जिस मरीज में ब्लैक और व्हाइट फंगस का केस मिला है, उसकी उम्र 55 साल है।
डॉ. त्यागी ने बताया कि ब्लैक फंगस कोरोना के उन मरीजों में पाया जाता है, जिन्हें बहुत ज्यादा स्टेरॉयड दिए गए हों, जबकि व्हाइट फंगस के केस उन मरीजों में भी संभव हैं, जिन्हें कोरोना नहीं हुआ। ब्लैक फंगस आंख और ब्रेन को सबसे ज्यादा प्रभावित करता है, जबकि व्हाइट फंगस आसानी से लंग्स, किडनी, आंत, पेट और नाखूनों को प्रभावित करता है।
ब्लैक फंगस ज्यादा डेथ रेट के लिए जाना जाता है. इस बीमारी में डेथ रेट 50प्रतिशत के आसपास है। हर दो में से एक व्यक्ति की जान जाने का खतरा रहता है।
ब्लैक फंगस यानी म्युकरमाइकोसिस एक अलग प्रजाति का फंगस है, ये भी ऐसे ही मरीजों को हो रहा है, जिनकी इम्युनिटी कम है। ब्लैक फंगस नाक से शरीर में आता है और आंख और ब्रेन को प्रभावित करता है. लेकिन व्हाइट फंगस यानी कैनडिडा अगर एक बार खून में आ जाए तो वह खून के जरिए ब्रेन, हार्ट, किडनी, हड्डियों समेत सभी अंगों में फैल सकता है. इसलिए यह काफी खतरनाक फंगस माना जाता है।
उन्होंने बताया कि ”व्हाइट फंगस भी जानलेवा है अगर वह हमारे खून या लंग्स में मौजूद है। इस बीमारी का इलाज भी अलग होता है। इसे व्हाइट फंगस इसलिए कहते हैं क्योंकि जब इसे डिटेक्ट करने के लिए टेस्ट करते हैं तो इसमें व्हाइट कलर का ग्रोथ देखा जाता है।
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