नेपाल में जैसी कि आशंका थी, अब ठीक उसी के अनुरूप होता दिखने लगा है। एक माओवादी नेतृत्व वाली सरकार के सत्ता की कमान हाथ में लेने के साथ ही चीन ने हिमालयी देश पर अपना शिकंजा कसना शुरू कर दिया है। नेपाल की प्रचंड सरकार के होते अब उसे वैसे भी कोई खटका नहीं रहा है। प्रचंड नेपाल के ही हस्तक माने जाते हैं और विशेषज्ञों के अनुसार, कम्युनिस्ट विचारधारा के अनुसार ही चलते हुए वे चीन को हर तरह की छूट दे सकते हैं। काठमांडू से आया ताजा समाचार यह है कि वहां चीन के विशेषज्ञों का एक दल पहुंचा है, ‘नेपाल—चीन रेल लाइन बिछाने की संभावनाएं तलाशने’ के लिए।
काठमांडू स्थित चीनी दूतावास ने बाकायदा एक बयान जारी करके कहा है कि चीन-नेपाल क्रॉस-बॉर्डर रेलवे के सर्वेक्षण हेतु विशेषज्ञों की टीम काठमांडू पहुंच चुकी है।
चीन अब सिर्फ रेल ही नहीं, बल्कि हर क्षेत्र में नेपाल पर अपनी चलाएगा। हिमालयी राष्ट्र पर अब कम्युनिस्ट चीन के कथित हस्तकों का राज जो है। 27 दिसम्बर को यह चीनी टीम नेपाल-चीन क्रॉस-बॉर्डर रेलवे लाइन के बनने की संभावनाओं पर काम करने काठमांडू पहुंची है।
नेपाल में पुष्प कमल दहल उर्फ प्रचंड के प्रधानमंत्री बनने के दूसरे ही दिन यह चीनी टीम नेपाल में आई है। इससे उन कयासों को बल मिला है कि चीन अब सिर्फ रेल ही नहीं, बल्कि हर क्षेत्र में नेपाल पर अपनी चलाएगा। हिमालयी राष्ट्र पर अब कम्युनिस्ट चीन के कथित हस्तकों का राज जो है। 27 दिसम्बर को यह चीनी टीम नेपाल-चीन क्रॉस-बॉर्डर रेलवे लाइन के बनने की संभावनाओं पर काम करने काठमांडू पहुंची है। 26 दिसम्बर को ही चीन के करीबी कहे जाने वाले कम्युनिस्ट नेता प्रचंड ने उस देश में तीसरी बार प्रधानमंत्री पद की शपथ ली है।
इसके बाद से ही चीनी दूतावास में गहमागहमी बढ़ना भी संकेत करता है कि वहां बड़ा सुकून सा महसूस किया जा रहा है। चीनी दूतावास ने ट्विटर पर लिखा है कि ‘चीन-नेपाल क्रॉस-बॉर्डर रेलवे की व्यावहारिकता के अध्ययन तथा सर्वेक्षण के लिए विशेषज्ञ टीम के मंगलवार को काठमांडू पहुंचने पर मिशन प्रमुख वांग शिन ने उनका स्वागत किया’। चीनी दूतावास के प्रवक्ता का ट्वीट कहता है, ‘यह दोनों देशों के बीच एक खास परियोजना है। चीन सीमा से सटे नेपाल को बदलने की दिशा में यह एक ठोस कदम है’।
नेपाल सीमा पर चीन के कब्जे के स्पष्ट दस्तावेजी सबूत मिलने के बावजूद वह पहले भी नेपाल में परोक्ष दखत देने की कोशिशें करता रहा है। इसी साल फरवरी में नेपाल की संसद ने अमेरिका के बहुचर्चित 500 मिलियन डॉलर के सहायता कार्यक्रम-मिलेनियम चैलेंज कॉरपोरेशन—को स्वीकृति दी थी। तब चीन ने नेपाली नेताओं पर जबरदस्त दबाव डाला था कि अमेरिका को किसी तरह के काम में शामिल न करें, लेकिन देउबा सरकार उस दबाव को अनदेखा करने में कामयाब रही थी।
चीन की प्रतिक्रिया थी कि, अमेरिका को ‘दबदबे की कूटनीति’ करके दूसरे देशों की संप्रभुता को कमजोर नहीं करना चाहिए। विशेषज्ञ मानते हैं कि चीन अपनी महत्वाकांक्षी बेल्ट एंड रोड परियोजना के अंतर्गत ट्रांस-हिमालयी कनेक्टिविटी तथा अन्य बुनियादी ढांचे जैसे कामों के माध्यम से कभी हिन्दू राष्ट्र रहे नेपाल में अपनी जड़ें गहराता जा रहा है।
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