सीतामढ़ी मेें ‘रामायण रिसर्च काउंसिल’ द्वारा माता सीता के एक भव्य मंदिर का निर्माण किया जाएगा और वहां उनकी विश्व में सबसे ऊंची प्रतिमा स्थापित की जाएगी। इस मंदिर के लिए भूमि—पूजन अप्रैल, 2023 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी करेंगे।
बिहार का सीतामढ़ी वह स्थान है, जहां माता सीता का इस धरा पर पदार्पण हुआ था। इस तीर्थस्थल को भव्य रूप देने के लिए यहां सीता माता की विश्व में सबसे ऊंची प्रतिमा स्थापित होने वाली है। लगभग 12 एकड़ भूमि में स्थापित की जाने वाली अष्टधातु की इस प्रतिमा के साथ इस पूरे क्षेत्र को शक्तिपीठ के रूप में विकसित किया जाएगा। इसमें प्रतिमा के चारों ओर वृत्ताकार रूप में श्री भगवती सीता माता के जीवन—दर्शन को दर्शाती हुईं 108 प्रतिमाएं भी स्थापित की जाएंगी।
यह जानकारी हरिद्वार में अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री महंत रविंद्रपुरी जी महाराज, निरंजनी अखाड़े के राष्ट्रीय महामंत्री श्री महंत हरि गिरि महाराज एवं जूना अखाड़े के महामंडलेश्वर हिमालयन पीठाधीश्वर स्वामी वीरेंद्रानंद गिरि महाराज ने एक संयुक्त पत्रकार वार्ता में 26 दिसंबर को दी।
इस अवसर पर यह भी बताया गया कि इस पुनीत कार्य हेतु भूमि का चयन कर लिया गया है तथा इसके समतलीकरण का कार्य प्रारंभ हो गया है। श्री महंत रविंद्रपुरी जी महाराज ने कहा कि अखाड़ा परिषद इस पवित्र कार्य के लिए तन—मन—धन से पूरा सहयोग देगी तथा सभी अखाड़े इस पुनीत कार्य के लिए जनसमर्थन भी जुटाएंगे। उन्होंने सभी धर्म—प्रेमी लोगों से हर संभव सहयोग देने की अपील भी की।
श्री महंत हरि गिरी महाराज ने कहा कि मां जगदंबा सीता माता संपूर्ण नारी समाज के सशक्तिकरण, धैर्य, साहस और कर्तव्यनिष्ठा का एक अनुपम और विलक्षण उदाहरण हैं। उनके जीवन—दर्शन का अनुकरण करने से न केवल नारी जाति, अपितु संपूर्ण समाज का हित होगा। उन्होंने कहा कि इस स्थल को शक्ति स्थल के रूप में विकसित करने के लिए देश के सभी 51 शक्तिपीठों के साथ-साथ बाली, श्रीलंका, इंडोनेशिया, श्रीलंका की अशोक वाटिका या ऐसे स्थल जहां जहां सीता जी गई हैं,उन स्थानों से पवित्र जोत, मिट्टी और जल लाया जाएगा। इसके अतिरिक्त जहां माता सीता भूमि में समाई थीं के अलावा केदारनाथ, बद्रीनाथ, काशी, रामेश्वरम, भगवान जगन्नाथ, बांकेबिहारी आदि प्रसिद्ध पौराणिक तीर्थों से भी ज्योति लाई जाएगी।
यह पूरा कार्य ‘रामायण रिसर्च काउंसिल’ के बैनर तले होगा। ‘रामायण रिसर्च काउंसिल’ के संयोजक महामंडलेश्वर श्री महंत वीरेंद्रानंद गिरि ने यह भी बताया कि माता सीता के प्राकट्य स्थल को शक्तिस्थल के रूप में विश्वभर में प्रतिष्ठित किए जाने के साथ-साथ संबंधित स्थल को मातृशक्ति के रूप में स्थापित करना है। यहां पर देश के प्रथम सांस्कृतिक दूतावास का निर्माण भी किया जाएगा। उन्होंने बताया कि माता सीता के मंदिर का वास्तुशिल्प श्री विद्या के अनुरूप होगा, जिसमें सभी देवता तथा रामायण के प्रमुख देवी—देवता अपने अद्भुत रूप में स्थापित होंगे। विश्व के पर्यटकों को आकर्षित करने के लिए अंतरराष्ट्रीय सांस्कृतिक भवन का निर्माण किया जाएगा, जिसमें अन्य देशों से आने वाले पर्यटकों और राजदूतों को उच्चस्तरीय सुविधाएं उपलब्ध कराई जाएंगी। उन्होंने बताया कि माता सीता हमारी संस्कृति और इस ब्रह्मांड की समस्त नारी समाज के लिए प्रेरणा स्रोत हैं। उनके प्राकट्य स्थल सीतामढ़ी से जब उनके संघर्ष, त्याग और आदर्शों का प्रचार—प्रसार होगा तो निसंदेह विश्व में भारत की संस्कृति व दर्शन को नए आयाम प्राप्त होंगे। इसके अतिरिक्त सीतामढ़ी में स्थानीय युवाओं को रोजगार के अवसर भी उपलब्ध होंगे। क्षेत्र का बहुमुखी विकास होगा और विश्व मानचित्र पर सीतामढ़ी की एक विशिष्ट पहचान बनेगी।
महामंडलेश्वर वीरेंद्रानंद गिरी महाराज ने बताया कि रामायण रिसर्च काउंसिल द्वारा श्री सीता विद्यापीठ, श्री सीता स्वयं सहायता समूह, श्री सीता रसोई का भी संचालन किया जाएगा। काउंसिल द्वारा अयोध्या में श्री राम मंदिर के लिए 500 वर्ष तक हुए संघर्ष पर आधारित 1108 पृष्ठ का एक ग्रंथ हिंदी के साथ-साथ 10 अन्य अंतरराष्ट्रीय भाषाओं में प्रकाशित किया जाएगा और 21 से भी अधिक देशों में इसका विमोचन किया जाएगा। उन्होंने बताया कि अप्रैल, 2023 में माता सीता के मंदिर के भूमि पूजन के लिए यशस्वी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी की सहमति मिल चुकी है। भूमि पूजन के साथ ही मंदिर निर्माण का कार्य युद्ध स्तर पर प्रारंभ किया जाएगा।
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