इस्लामी देशों का संगठन ओआईसी अफगानिस्तान में तालिबान के उस फैसले से नाराज है जिसमें गैर सरकारी संगठनों में महिलाओं को काम करने से रोक दिया गया है। इस्लामी संगठन ओआईसी के महासचिव हिसेन ब्राहिम ताहा ने तालिबान के इस फरमान पर गहन चिंता जताते हुए इसकी भर्त्सना की है। ताहा का कहना है कि यह फैसला तालिबान की महिला विरोधी नीति की एक मिसाल है और अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मारने जैसा है।
इस्लामिक सहयोग संगठन यानी ओआईसी तालिबान के स्थानीय तथा विदेशी गैर-सरकारी संगठनों पर इस तरह का फरमान लादने के विरुद्ध है। इसे संगठन ने ‘खुद को ही नुकसान’ पहुंचाने वाला बताते हुए इसे महिला विरोधी करार दिया है। हिसेन ब्राहिम ताहा ने तालिबान की महिलाओं को बनाई गई नीतियों और महिलाओं से किए जा रहे बर्ताव को लेकर गहन चिंता जताई है। इस संगठन ने पिछले दिनों विश्वविद्यालयों में छात्राओं की शिक्षा पर रोक लगाने के तालिबान के हुक्म की भी भर्त्सना की थी। ओआईसी के ट्वीट में लिखा है कि ‘ताहा ने देश के और अंतरराष्ट्रीय एनजीओ में महिलाओं के काम पर रोक लगाने को ‘आत्मघाती’ और ‘अफगानियों के हितों को नुकसान पहुंचाने वाला’ कहा है।
ओआईसी के महासचिव ने तालिबान से अपील की है कि अपने इस फैसले पर फिर से विचार करें। एक के बाद एक ट्वीट करके ओआईसी महासचिव ने तालिबान से अनुरोध किया है कि वह महिलाओं को समाज से जोड़ने तथा अफगानिस्तान में मानवीय सहायता के कामों का लगातार चलते रहना सुनिश्चित करने का आग्रह किया है।
ओआईसी का कहना है कि तालिबान का यह फैसला असल में अफगानी महिलाओं के हकों को और भी ज्यादा प्रभावित करेगा, यह फैसला तालिबान की जानबूझकर बनाई नीति को झलकाता है। इतना ही नहीं, यह कदम अफगान महिलाओं को उनकी रोजी—रोटी के स्रोतों से काट देगा। और तो और यह कमजोर अफगानियों के हित में राष्ट्रीय तथा अंतरराष्ट्रीय गैर-सरकारी संगठनों द्वारा चलाए जा रहे मानवीय तथा राहत कार्यों पर भी गंभीर असर डालेगा।
उल्लेखनीय है कि पहले खाड़ी देश कतर ने भी महिला कर्मियों को गैर-सरकारी संगठनों में काम न करने देने के तालिबान के फैसले पर चिंता जताई थी। कतर के विदेश विभाग ने बयान जारी करके तालिबान से अपील की थी कि एनजीओ में महिलाओं को काम करते रहने की अनुमति दी जाए।
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