भारत सरकार ने नागरिकों के मध्य सरकार की जवाबदेही के प्रति जागरूकता पैदा करने के लिए पूर्व प्रधानमंत्री भारत रत्न अटल बिहारी वाजपेयी जी की जयंती को पूरे भारत में सुशासन दिवस के रूप में मनाने का निर्णय वर्ष 2014 में लिया था। सुशासन दिवस को सरकार के लिए कार्य दिवस घोषित किया गया है एवं 25 दिसंबर को उन्हें याद कर उनके द्वारा किए गए कामों के बारे में बात कर अलग-अलग माध्यमों से उन्हें आजादी के बाद सुशासन के एक नूतन परंपरा में जोड़ा जाता है।
सुशासन की अवधारणा भारत के लिए नया नहीं
हालांकि अटल बिहारी वाजपेयी जी ने अपनी नीतियों और नेतृत्व से देश में सुशासन की परंपरा को पोषित किया एवं एक नया आयाम दिया था लेकिन वैसे अगर समझे तो ‘सुशासन’ एक अवधारणा के रूप में वैश्विक मान्यता पिछली सदी के आखिरी दशक में उभरी। हालांकि यह अवधारणा भारत के लिए कभी नई नहीं रही। हमारे सदियों पुराने शास्त्रों और समृद्ध इतिहास की दूरदर्शी विभूतियों ने सदैव सुशासन के प्रतीक के रूप में भारत की कल्पना की है। भगवद्गीता में सुशासन, नेतृत्व, कर्तव्यबोध और आत्मबोध के बहुत सारे संदर्भ हैं जिनकी आधुनिक भारत के संदर्भ में पुनर्व्याख्या भी की गई है। अपने प्राचीन भारतीय राजनीतिक ग्रंथ-‘अर्थशास्त्र’ में कौटिल्य ने इस बात को रेखांकित करते हुए कहा है कि लोगों का कल्याण राजा का सर्वोपरि कर्तव्य था। यहां तक कि महात्मा गांधी जी के ‘सु-राज’ का निहितार्थ भी निश्चित रूप से सुशासन ही था। इस तरह के ज्ञान से प्रेरित होकर ही हम अपने लोकतांत्रिक संस्थानों से जुड़ी राजव्यवस्था और जीवंत अर्थव्यवस्था के सुचारू संचालन को सुनिश्चित करने में सक्षम हुए हैं।
आजादी के बाद सरकारों द्वारा सुशासन सुधारों का केंद्र बिंदु
भारत के आजादी के बाद हुए सुधार के प्रयासों को अगर अध्ययन किया जाए तो समक्ष में आता है की स्वतंत्रता के बाद, सुशासन, शासन सुधारों का केंद्र बिंदु रहा है, लेकिन केवल सिर्फ चर्चाओं में। यह संविधान सभा की बहसों और योजना आयोग जैसे संस्थानों द्वारा तैयार किए गए नीति पत्रों में शामिल था, लेकिन कार्यान्वयन के खराब रिकॉर्ड के साथ विचार कागज पर ही रह गए और खामियाजा हर बार की तरह भारत के गरीब जनता को भुगतना पड़ा, लेकिन वाजपेयी के दूरदर्शी नेतृत्व में, वह बदल गया और शासन में सुधार के प्रयास जनता के जीवन में प्रतिबिंबित होने लगे। वाजपेयी जी ने अपने नीतियों एवं नेतृत्व से इसे अभिसिंचित किया।
अमृत काल में ‘पंच प्रण’ का आधार अटल सुशासन
अमृत काल में जिस ‘पंच प्रण’ के माध्यम से भारत विकसित और आत्मनिर्भर बनने के लिए अग्रसर हो रहा है, उनमें से लगभग सभी प्रण की नींव वाजपेयी जी अपने सुशासन के माध्यम से रख दी थी । उनके द्वारा किए गए प्रयास जैसे भारतमाला, सागरमाला, राष्ट्रीय संपत्ति मुद्रीकरण पाइपलाइन, स्वर्णिम चतुर्भुज, नदियों को जोड़ना अर्ध-न्यायिक केंद्रीय विद्युत नियामक आयोग की स्थापना आदि परियोजनाओं के माध्यम से भारत की अधोसंरचना में मूलभूत सुधार के प्रयासो से भारत को विकसित राष्ट्र बनाने का संकल्प अटल जी के सुशासन में निहित दिखती है।
वाजपेयी जी द्वारा लिए गए साहसिक कदम चाहे वह राम मंदिर आंदोलन को लेकर उनका समर्थन या मई 1998 में किया गया परमाणु परीक्षण हो या 1999 में पाकिस्तान के विरुद्ध लड़ा गया कारगिल युद्ध या इसके अलावा उनके द्वारा चलाई गई सबसे अधिक दलों की गठबंधन की सरकार हो या 13 दिन से लेकर 13 महीना या उसके बाद सफल 5 वर्ष से पूर्व ही चुनाव की घोषणा यह सभी इस बात के प्रमाण हैं की वाजपेयी जी अपने सामर्थ्य पर भरोसा करते थे एवं इस सामर्थ्य को अपने साहसिक पुरुषार्थ के जरिए अपने विरासत पर गर्व करने का आधार प्रस्तुत करते थे।
वाजपेयी जी के द्वारा किए गए मानविक प्रयास जैसे कश्मीर की जटिल समस्या को हल करने के लिए प्रसिद्ध वाजपेयी सिद्धांत- इंसानियत, जम्हूरियत और कश्मीरियत (मानवता, शांति और कश्मीरी लोगों की पवित्रता) के लोकप्रिय ज्ञान को प्रतिध्वनित किया, वनवासी मामलों के लिए एक अलग मंत्रालय जैसी योजनाओं और विचारों से समाज के हर वर्ग को छुआ, शहीदों के शवों को उनके घरों में लाने की अनुमति दी ताकि लोग देश के लिए सर्वोच्च बलिदान देने वाले सैनिकों का सम्मान कर सकें, सर्वसम्मति और व्यावहारिकता से वर्ष 2000 में तीन नए राज्यों छत्तीसगढ़, उत्तराखंड और झारखंड को शांतिपूर्ण तरीके से बनाना, जनकल्याणकारी योजनाएं जैसे – राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य कार्यक्रम, सर्व शिक्षा अभियान, प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना, किसान क्रेडिट कार्ड, प्रधानमंत्री आवास,
श्रम संहिता आदि के माध्यम से भारत की एकता और एकजुटता के प्रण का आधार रख दिया था जिसका उद्देश्य देश की विविधता को उल्लास से मनाना, लैंगिक समानता का सम्मान, श्रमिकों का सम्मान है ।
अपने गौरवपूर्ण इतिहास के विरासत को संरक्षित करने एवं अपने पुराने गुलामी की मानसिकता को खत्म करने के लिए भी वाजपेयी जी ने प्रयास किए थे। वाजपेयी बी आर अंबेडकर के विचारों की भविष्यवादी अंतर्दृष्टि और राष्ट्र निर्माण में उनकी भूमिका से गहराई से प्रभावित थे। वाजपेयी और लालकृष्ण आडवाणी के आग्रह पर ही भाजपा द्वारा समर्थित वीपी सिंह सरकार ने 31 मार्च, 1990 को अंबेडकर को भारत रत्न से सम्मानित किया। डॉ. अंबेडकर राष्ट्रीय स्मारक बनाने के लिए आगे आए, वाजपेयी की इच्छा 26 अलीपुर रोड, दिल्ली को विकसित करने की थी, जहां सिरोही, राजस्थान के महाराजा ने 1951 में केंद्रीय मंत्रिमंडल से इस्तीफा देने के बाद अंबेडकर को रहने के लिए आमंत्रित किया था। जिसके कारण परिसर को एक संग्रहालय के रूप में विकसित किया गया जो लोगों को सामाजिक समानता की आकांक्षा के लिए प्रेरित किया, शहरी विकास मंत्रालय ने 14 अक्टूबर 2003 को वाजपेयी की देखरेख में इस निजी संपत्ति के एक्सचेंज डीड पर हस्ताक्षर किए और दिसंबर 2003 में विकास कार्यों का उद्घाटन किया गया, यूपीए शासन ने इस परियोजना को स्थगित रखा। बाद में मोदी सरकार ने इसे डॉ. अंबेडकर राष्ट्रीय स्मारक के रूप में 100 करोड़ रुपये की लागत से विकसित किया और इसे 13 अप्रैल, 2018 को राष्ट्र को समर्पित किया गया।
वाजपेयी ने 21वीं सदी की शुरुआत में कई पहल करके सुशासन की बात की थी और उनके लिए सूचना का अधिकार, ईवीएम मशीन, एपिक मतदाता कार्ड, डीबीटी और जैम जैसे तकनीकी हस्तक्षेप ने संस्थानों में लोगों के विश्वास को मजबूत किया था । “न्यूनतम सरकार, अधिकतम शासन” के मंत्र ने नागरिकों के जीवन को आसान बनाया था यह कुछ ऐसे पहल हैं जिन्होंने पारदर्शिता, जवाबदेही और सुशासन के अन्य आयामों को मजबूत किया था , जिसके माध्यम से नागरिकों को उनके कर्तव्यों से जोड़ा गया जो कही न कही आज अमृत काल के पांचवे प्रण में सम्मिलित है।
संकल्पों के अटल मायने
अमृत काल के इन संकल्पों का लक्ष्य सिर्फ एक ही है वह है भारत पुनः विश्व गुरु बने और सकल विश्व को मार्गदर्शित करें। इन संकल्पों के माध्यम से वर्तमान सरकार अगले 25 वर्षों का ब्लूप्रिंट देने का प्रयास कर रही है और अपने आकांक्षी समाज को संदेश देने का प्रयास कर रही है की आज के समय में विश्व भारत की ओर देख रहा है, इसलिए आज आवश्यकता है की भारत अपने इस अमृतकाल में अपनी असीम सांस्कृतिक विरासत को संरक्षित कर विश्व को मार्गदर्शित करे, जिसका आधार सुशासन के माध्यम से अटल बिहारी वाजपेयी जी ने आज से 20 वर्ष पूर्व रख दिया था। उनकी दूरदर्शिता एवं सकारात्मक दृष्टिकोण ही भारत के आकांक्षाओं को परिलक्षित करेगा।
शेषमणी साहू
( लेखक जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में राजनीति विज्ञान विषय के शोधार्थी है एवं अटल बिहारी वाजपेई जी के सामाजिक राजनीतिक चिंतन पर शोध एवं अध्ययन कर रहें हैं)
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