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शिक्षा का रंग भगवा नहीं तो क्या हो?

वे शिक्षा पद्धति में सुधार करना चाहते हैं ताकि लोग उसमें रोजगार पा सकें, स्वरोजगार।

by WEB DESK
Dec 25, 2022, 08:55 am IST
in भारत, विश्लेषण, शिक्षा
डॉ. मुरली मनोहर जोशी एवं अटल बिहारी वाजपेयी

डॉ. मुरली मनोहर जोशी एवं अटल बिहारी वाजपेयी

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5 जनवरी, 2003 को तत्कालीन केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री डॉ. मुरली मनोहर जोशी के 69वें जन्म दिवस पर नई दिल्ली के विज्ञान भवन में आयोजित समारोह में श्री अटल बिहारी वाजपेयी के संबोधन के अंश –

विज्ञान और प्रौद्योगिकी के बिना हम नहीं चल सकते। लेकिन उसका उपयोग इस तरह से होना चाहिए कि सारा समाज सुखी हो और जो दलित हैं, पीड़ित हैं, निराश्रित हैं, उनको हम आगे बढ़ाने में सहायक हो सकें। शिक्षा का स्वरूप बदलना चाहिए। कभी-कभी मुझे चिंता होती है कि पढ़े-लिखे नौजवान, जो विज्ञान नहीं पढ़ रहे, जो किसी प्रौद्योगिकी से जुड़े हुए नहीं हैं, जो बी.ए., एम.ए. और बी.एसी, एम.एसी, बी. कॉम की उपाधि लेकर निकल रहे हैं, उनको कहां खपाया जाएगा? उन्हें किस तरह से राष्ट्र के जीवन में स्थापित किया जाएगा? यह ऐसा प्रश्न है जिस पर सबको मिलकर विचार करना चाहिए। जोशी जी इसके प्रति जागरूक हैं और वे शिक्षा पद्धति में सुधार करना चाहते हैं ताकि लोग उसमें रोजगार पा सकें, स्वरोजगार।

सरकारी नौकरी के पीछे न दौड़ें, अपने हाथ से कुछ काम करें, हाथ मैले करें। लेकिन सफेदपोश नौजवान इससे बचना चाहता है और इसमें मुझे भविष्य के बारे में आशंकाए दिखाई दे रही हैं। अभी इतिहास में जोशी जी ने जो थोड़े से संशोधन किए, उनको लेकर बावेला मच गया, किसलिए? कहा कि जोशी जी भगवा रंग ला रहे हैं। जोशी जी और कौन-सा रंग लाएं? जोशी जी हरा रंग तो ला नहीं सकते। भगवा तो हमारा रंग है। यज्ञ का रंग है, आहुति का रंग है, बलिदान का रंग है।

इस देश में अपनी अस्मिता को जगाने का जो भी प्रयत्न है, वह इस बात पर निर्भर नहीं करता कि आप किस प्रदेश के हैं, किस वर्ण के हैं या किस जाति के हैं। राष्ट्र अपनी अस्मिता के साथ खड़ा रहे, यह बहुत जरूरी है। और जोशी जी इसके लिए प्रयत्नशील हैं। सर्व शिक्षा अभियान के रूप में उन्होंने एक ऐसा राष्ट्रीय अभियान लिया है, जो सचमुच में 50 साल पहले लिया जाना चाहिए था।

हम छोटी-छोटी बातों पर मतभेद बढ़ा लेते हैं, पर रास्ता भटक जाते हैं।
हर सवाल को चुनाव से जोड़ दिया जाता है, लेकिन यह ठीक नहीं है।

दुनिया में ऐसे भी देश हैं, जहां कोई निरक्षर नहीं है। हम अभी प्रतिशत गिनाते हैं। जोशी जी के जमाने में साक्षरता बढ़ी है, शिक्षा बढ़ी है, इसमें कोई संदेह नहीं है। मगर जो अभी अशिक्षित हैं, निरक्षर हैं उनकी संख्या कितनी है? इसे एक राष्ट्रीय अभियान के रूप में बदलना होगा। व्यक्तिगत प्रयत्नों द्वारा इसमें योगदान दिया जा सकता है। संविधान में संशोधन कर हमने शिक्षा को आधारभूत अधिकार बना दिया, बुनियादी अधिकार बना दिया।

अब अगर कोई लड़का शिक्षा प्राप्त करने के अधिकार से वंचित रहता है, तो वह अदालत में जाकर सरकार के खिलाफ मुकदमा कर सकता है। एक बड़ी भारी जिम्मेदारी शासन ने ली है। हम छोटी-छोटी बातों पर मतभेद बढ़ा लेते हैं, पर रास्ता भटक जाते हैं। हर सवाल को चुनाव से जोड़ दिया जाता है, लेकिन यह ठीक नहीं है। चुनाव आएंगे, चले जाएंगे, लेकिन देश को बनाने का काम, व्यक्ति के निर्माण का काम, राष्ट्र के निर्माण का काम, जिसमें सारे देश को लगाया जाए, इस बात की आवश्यकता है।

Topics: स्वरोजगार।If saffron is not the color of educationthen what is it?अटल बिहारी वाजपेयीसंविधान में संशोधनशिक्षा आधारभूत अधिकारव्यक्ति के निर्माण का कामराष्ट्र के निर्माण का काम
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