जिस वीर ने अल्पायु में हिंदू धर्म की खातिर अपने पिता का शीश बलिदान होते हुए देखा, फिर जंगलों में छुपकर अस्त्र-शस्त्र का प्रशिक्षण लिया और औरंगजेब के खिलाफ गुरिल्ला युद्ध लड़ा। ऐसे महान योद्धा दशम गुरु गोबिंद सिंह ने हिंद रक्षक होने का खिताब पाया।
मुस्लिमों के अत्याचार के खिलाफ शुरू किए धर्म युद्ध में गुरु गोबिंद सिंह जी महाराज के चार बच्चों ने भी अपना बलिदान दिया। भारत के इतिहास में ऐसा कोई दूसरा धर्म युद्ध नहीं लड़ा गया, जिसमें ऐसी वीरता के किस्से हो। सनातन हिन्दू धर्म की रक्षा के लिए गुरु गोबिंद सिंह जी ने जो महाबलिदान दिया जो युगों-युगों तक याद रहेगा।
हिंदू धर्म की रक्षा की खातिर अपने चारों साहिबजादों और माता गुजरी का बलिदान सम्पूर्ण राष्ट्र के लिए गर्व की बात है। 10 लाख सैनिकों के सामने चमकौर के मैदान में हुए युद्ध के दौरान बारी-बारी से उनका बलिदान किया गया। 22 दिसंबर 1704 को गुरु गोबिंद साहिब के बड़े साहिबजादे अजीत सिंह और फिर जुझार सिंह बलिदान हुए। 27 दिसंबर 1704 में गुरुगोबिंद सिंह के दो साहिबजादे जोरावर सिंह और फतेह सिंह को इस्लाम कबूल न करने पर सरहिंद के नवाब ने उन्हें जिंदा दीवार में चुनवा दिया।
भारत में आज हिंदू सनातन धर्म यदि जीवित है तो वो गुरु गोबिंद द्वारा स्थापित खालसा पंथ की वजह से है। गुरु गोबिंद सिंह द्वारा बनाई गई सशस्त्र खालसा सेना में हिंदू धर्म के वंचित समाज के योद्धाओं को पंज प्यारो के रूप में चुना गया, जिन्होंने धर्म युद्ध के अपने सैन्य अभियान में हर हिंदू के घर से बड़े लड़के को सिख यानी खालसा पंथ की शिक्षा दीक्षा देकर शामिल किया।
सिख, हिंदू धर्म रक्षक के रूप में जाने जाते रहे थे और आगे भी जाने जाते रहेंगे। चार साहिबजादों की वीरता बलिदान की समृति में मोदी सरकार ने 26 दिसंबर को वीर बाल दिवस के रूप में मानने का दिन घोषित किया है।
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