आज अखिल भारतीय साहित्य परिषद राजस्थान द्वारा जयपुर में कथाकार सम्मेलन आयोजित किया गया। इस कार्यक्रम का विषय” कथा लेखन: चुनौतियां और दायित्व “रहा। कथाकार सम्मेलन में पूरे राजस्थान से चुने हुए 60 कथाकार उपस्थित हुए। प्रातः 10:00 उद्घाटन सत्र में सर्वप्रथम मां भारती एवं सरस्वती के समक्ष दीप प्रज्वलन कर कार्यक्रम का उद्घाटन किया गया।
इस सत्र की अध्यक्षता डॉ कमला गोकलानी, अजमेर एवं मुख्य अतिथि के रुप में प्रमोद कुमार गोविल, जयपुर रहे। सरस्वती वंदना शिवराज भारतीय नोहर द्वारा प्रस्तुत की गई। मंच संचालन डॉ केशव शर्मा जयपुर द्वारा किया गया।
स्वागत वक्तव्य एवं प्रास्ताविकी के रूप में डॉ अन्नाराम शर्मा ने विगत वर्षों में भारतीय समाज में विभिन्न प्रकार के भेद चाहे वह लिंगभेद हो, दलित भेद युवा-वृद्ध द्वंद, दलित-सवर्ण द्वंद को प्रचारित करने के लिए विशेष विचार से प्रभावित साहित्यकारों द्वारा किए गए कृत्य से अवगत करवाया तथा बताया कि आज आवश्यकता प्रकार के भेद को समाप्त करने के लिए हमें साहित्य लिखा जाना चाहिए।
विशिष्ट वक्ता प्रो श्रीमती कैलाश कौशल एवं राजेंद्र शर्मा मुसाफिर ने भी अपने वक्तव्य प्रस्तुत किए। प्रथम तकनीकी सत्र का संचालन विष्णु शर्मा हरिहर, कोटा द्वारा किया गया। इस सत्र की अध्यक्षता हनुमान सिंह राठौड़ ,समाज चिंतक एवं साहित्यकार द्वारा की गई एवं विशिष्ट वक्ता के रूप में शिवराज भारतीय, शारदा शर्मा, जयपुर, मनीषा आर्य सोनी, बीकानेर रहे।
अध्यक्षीय भाषण में हनुमान सिंह राठौड़ बताया कि कथाओं का लेखन वर्तमान परिपेक्ष्य में भारतीय संस्कृति एवं परंपराओं को दृष्टिगत रखते हुए किया जाना चाहिए। आपने बताया कि पूर्व में साहित्यकारों द्वारा एक विशेष विचारधारा स्थापित किया गया। साथ ही विशेष शब्द जैसे यथार्थवाद, अतियथार्थवाद आदि शब्द गढ़कर आम भारतीय जन को दिग्भ्रमित किया गया। इन लोगों ने इस प्रकार का साहित्य लेखन किया कि इससे हमारे संस्कृति एवं परंपराओं को एवं हमारे साहित्य को धूमिल किया जा सके। इनके साहित्य से इस प्रकार का भ्रम उत्पन्न हुआ कि आम भारतीय संस्कृत भाषा से आये शब्द को ठीक से समझ नहीं आते परंतु अरबी फारसी शब्द ठीक से आमजन के समझ में आता है।
पाश्चात्य संस्कृति से प्रभावित अनेको लेखकों ने इस प्रकार का साहित्य रचा कि इससे भारत का गौरव और वैभवशाली परंपरा का ज्ञान हमारी पीढ़ी को नहीं हो पाया परंतु साथ ही उन्होंने इस प्रकार के साहित्य को प्रचारित किया कि माय बॉडी इज माय चॉइस एवं अश्लील भाषा का प्रदर्शन करना और उस पर तालियां बजाना इस प्रकार के साहित्य से हमारी पीढ़ियों पर क्या प्रभाव रहेगा। इस पर वर्तमान में प्रत्येक राष्ट्रीय विचार से ओतप्रोत साहित्यकार को चिंतन करना है। साथ में ही यह भी कहा की पुरातन ग्रंथों पर वर्तमान वातावरण को दृष्टिगत रखते हुए लिखना चाहिए। आपने बताया कि महाराणा प्रताप का निर्माण उनके पिता ने नहीं करके उनकी माता जयवंती ने किया साथ ही शिवाजी का निर्माण उनकी माता जीजाबाई ने किया अर्थात आपने बताया कि हमारी संस्कृति में नारी को इसीलिए पूज्य माना गया है कि वह व्यक्ति को कर्मनिष्ठ बनाने के साथ-साथ शक्तिवर्धक बनाने वाली होती है। जबकि एक विशेष विचारधारा वाले लोग नारी विमर्श उत्पन्न करते हैं।
खेसारी सबको छोड़ देती है तकनीकी सत्र जिसका विषय आज की कहानी रहा का मंच संचालन मोनिका कोड बीकानेर ने किया परिचर्चा सहभागी किरण बाला उदयपुर, बसंती पवार, गौरी कांत उदयपुर एवं रतन लाल मेनारिया निंबाहेड़ा रहे।
अध्यक्षीय भाषण देते हुए गोविंद भारद्वाज, अजमेर ने बताया कि वर्तमान में साहित्य इस प्रकार का लिखा जाना चाहिए कि वह समाज को जोड़ने वाला हो। इसी सत्र में विभिन्न जिज्ञासाओं को प्रस्तुत किया गया जिनका समाधान हनुमान सिंह जी राठौड़ द्वारा किया गया। अंतिम सत्र समारोप के रूप में आयोजित किया गया। जिसका संचालन आशा शर्मा, जयपुर ने किया।
इस समारोह के मुख्य अतिथि विजय जोशी, कोटा एवं विशिष्ट वक्ता के रूप में इंजी. आशा शर्मा, बीकानेर, सुधा आचार्य, बीकानेर राजाराम स्वर्णकार बीकानेर डॉ केबी भारतीय कोटा रहे, जबकि प्रो नंद किशोर पांडे ने अध्यक्षता की।
अध्यक्षीय भाषण देते हुए प्रो पांडे ने बताया कि के साहित्यकारों को अब इस प्रकार की कहानियां लिखी जानी चाहिए कि जिसमे पर्यावरण विमर्श, सागर विमर्श और हिमालय विमर्श सम्मिलित हो। अखिल भारतीय साहित्य परिषद राजस्थान के क्षेत्रीय संगठन मंत्री डॉ विपिन चंद्र का सानिध्य रहा। अंत में धन्यवाद ज्ञापन परिषद के प्रदेश कोषाध्यक्ष इंद्र कुमार भंसाली द्वारा दिया गया। बैठक का समापन कल्याण मंत्र द्वारा किया गया।
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