एक कहावत आप लोगों ने सुनी होगी “बिना विचारे जो करै, सो पाछे पछिताय। काम बिगारै आपनो, जग में होत हंसाय॥”। ऐसा ही कुछ झारखंड में भी देखने को मिल रहा है।
प्रदेश में बेरोजगारी चरम पर है, उसके बाद भी सोरेन सरकार नियुक्ति को लेकर जो प्रक्रिया अपना रही है, वह भी अधर में लटक जा रही है। चुनाव से पहले हेमंत सोरेन ने झारखंड की जनता से वादा किया था कि हर वर्ष 5 लाख रोजगार दिलाएंगे। प्रदेश के युवाओं ने उनकी बात पर भरोसा किया और उन्हें सत्ता दे दी। लेकिन ना तो नियुक्तियां निकलीं और ना ही लोगों को रोजगार मिला। पहले से जो नियुक्ति निकली हुई थी उन्हें रद्द कर दिया गया और जो नियुक्तियां सोरेन सरकार में निकाली गई उनमें भी खामियां होने की वजह से उच्च न्यायालय ने रद्द कर दिया।
अब राज्य सरकार द्वारा बनाई गई झारखंड कर्मचारी चयन आयोग ( जेएसएससी) स्नातक स्तरीय परीक्षा संचालन संशोधन नियमावली 2021 को उच्च न्यायालय ने असंवैधानिक बताते हुए निरस्त कर दिया है। यह फैसला मुख्य न्यायाधीश डॉ रवि रंजन एवं न्यायाधीश सुजीत नारायण प्रसाद की खंडपीठ ने 16 दिसंबर को सुनाया है। न्यायालय का कहना है कि यह नियमावली भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14 एवं 16 के प्रावधानों का उल्लंघन है। सरकार की यह नियमावली संवैधानिक प्रावधानों पर खरी नहीं उतरती है इसलिए इसे निरस्त किया जाता है। इसके बाद न्यायालय ने असंवैधानिक करार देते हुए आयोग को नए सिरे से नियुक्ति प्रक्रिया शुरू करने का आदेश दिया है।
आपको बता दें कि इस नियमावली के तहत राज्य के सामान्य वर्ग के लोगों को झारखंड से 10वीं और 12वीं पास होना अनिवार्य किया गया था। अब इस नियमावली के रद्द होने के बाद झारखंड राज्य के बाहर के संस्थानों से मैट्रिक इंटर शिक्षा प्राप्त सामान्य वर्ग के अभ्यर्थी भी जेएसएससी की नियुक्ति प्रक्रिया में शामिल हो सकेंगे। उच्च न्यायालय के इस फैसले से राज्य में 11000 पदों के लिए चल रही नियुक्ति प्रक्रिया रद्द हो गई है। रद्द हुई नियमावली के तहत 15 नियुक्तियों की प्रक्रिया चल रही थी, जिसमें दो के लिए परीक्षा आयोजित हो चुकी थी। इसी बीच उच्च न्यायालय के आदेश से यह सभी नियुक्तियां और प्रक्रिया अब रद्द हो गई हैं। इस फैसले के बाद झारखंड कर्मचारी चयन आयोग ने परीक्षा आयोजन को लेकर जारी किया गया कैलेंडर भी वापस ले लिया है। आयोग ने पत्र जारी करते हुए कहा कि आयोग द्वारा परीक्षा कैलेंडर के माध्यम से आगामी विभिन्न प्रतियोगिता परीक्षा की संभावित तिथियों की घोषणा की गई थी जिसे अपरिहार्य कारणों से विलोपित किया जाता है।
क्या था इस नियमावली में ?
हेमंत सोरेन सरकार ने वर्ष 2021 में झारखंड कर्मचारी चयन आयोग स्नातक स्तरीय परीक्षा संचालन संशोधन नियमावली बनाई थी। इसके तहत सामान्य वर्ग के अभ्यर्थियों को झारखंड के मान्यता प्राप्त शैक्षणिक संस्थान से मैट्रिक और इंटर उत्तीर्ण करना अनिवार्य होता। इसके साथ ही अभ्यर्थी को स्थानीय रीति-रिवाज, भाषा व परिवेश की जानकारी रखना अनिवार्य होता। इस नियमावली में हिंदी व अंग्रेजी भाषा को सूची से बाहर कर दिया गया था और उर्दू को क्षेत्रीय व जनजातीय भाषा को सूची में शामिल किया गया था।
इस आदेश के पारित होते ही रमेश हांसदा एवं अन्य ने झारखंड उच्च न्यायालय में याचिका दाखिल कर राज्य सरकार द्वारा जेएसएससी नियमावली में किए गए संशोधन को गलत बताते हुए इसे निरस्त करने की मांग की थी। याचिका में कहा गया था कि झारखंड सरकार ने नियमावली में जो संशोधन किया है इसके तहत जेएसएससी के द्वारा नियुक्तियों के लिए जारी विज्ञापन में कई अभ्यर्थी आवेदन नहीं कर पा रहे हैं इसलिए इस नियमावली को रद्द किया जाना चाहिए।
मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने नियमावली के रद्द होने पर कहा है कि उच्च न्यायालय के इस फैसले को सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती दी जाएगी।
भारतीय जनता युवा मोर्चा के प्रदेश अध्यक्ष किसलय तिवारी ने सोरेन सरकार के इस फैसले पर कहा कि झूठ की इमारत ज्यादा दिनों तक नहीं टिकती। उन्होंने सोरेन सरकार को अहंकारी सरकार बताते हुए कहा कि राज्य की जनता पर जबरन थोपी गई नियोजन नीति को रद्द कर उच्च न्यायालय ने सरकार को आईना दिखाने का काम किया है। न्यायालय के इस फैसले से प्रदेश के युवाओं का मनोबल बढ़ा है इसके लिए उन्होंने न्यायालय को धन्यवाद और युवाओं को बधाई दी है।
झूठ की इमारत ज्यादा दिनों तक नहीं टिकती।
माननीय हाई कोर्ट ने आज इस अहंकारी सरकार के द्वारा जबरन थोपे गए नियोजन नीति 2021 को रद्द करते हुए सरकार को आईना दिखाने का काम किया है।
जो सरकार हिंदी को हटाकर भाषा के पेपर में उर्दू जोड़ दे, तो उस सरकार की क्या मंशा रही होगी ये स्पष्ट है।— Kislay Tiwari 🇮🇳 (@kislay_official) December 16, 2022
दस वर्षों से पत्रकारिता में सक्रिय। राजनीति, सामाजिक और सम-सामायिक मुद्दों पर पैनी नजर। कर्मभूमि झारखंड।
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