देश के अलग-अलग इलाकों से बीते कुछ समय में दर्जनों ऐसी घटनाएं प्रकाश में आई हैं, जिनमें जिहादियों ने बर्बरता की सीमा पार की। श्रद्धा के 35 टुकड़े किए गए तो कहीं किसी लड़की को जलाकर, उसके स्तन काटकर और सिर तन से जुदा कर मार डाला गया। इस राक्षसी मनोवृत्ति पर उत्तर प्रदेश के पूर्व पुलिस महानिदेशक डॉ. विक्रम सिंह का कहना है कि पुलिस को ऐसी कड़ी कार्रवाई करनी चाहिए कि वह एक उदाहरण बन जाए। पाञ्चजन्य संवाददाता अश्वनी मिश्र ने उनसे इन घटनाओं के पीछे की मानसिकता, कारण आदि पर विस्तृत बात की। प्रस्तुत हैं बातचीत के प्रमुख अंश:—
गिरिजा टिक्कू से लेकर श्रद्धा, रूपाली, अंकिता, निकिता, मनीषा, तो दूसरी तरफ उमेश कोल्हे और कन्हैयालाल। हत्या की इन सभी घटनाओं में जिहादियों ने निर्ममता की हद पार की है। किसी को आरे से काटा गया तो किसी की नाक, कान, गला, सिर, पैर और यहां तक कि स्तन तक को काट डाला गया। इस बर्बर मानसिकता को आप कैसे देखते हैं?
निश्चित ही ये सभी हत्याएं जघन्यता की श्रेणी में आती हैं इन सभी घटनाओं ने देश को हिलाकर रख दिया है। मैं मानता हूं कि इसके पीछे चिंतन की जरूरत है। ऐसी घटनाएं एक मनोरोग और कुत्सित मनोवृत्ति का परिणाम होती हैं। एक कुशल विवेचक का यह कार्य होता है कि हत्यारे की आंख के पीछे जाकर देखे कि उसके दिमाग में क्या चला है। हत्या कोई भी हो, बुरी है। चाकू से लेकर आग्येनास्त्र द्वारा तक। लेकिन शव को टुकड़े करने, आरे से चीरने, अंग-भंग करके क्षत-विक्षत करने के पीछे एक प्रतिशोध, आक्रोश, मानसिक विकलांगता का लक्षण दिखाई देता है। क्या दिमाग की वायंिरंग इस तरह से हुई है कि एक नजीर बनाकर हत्या करें? क्योंकि मुगल काल को देखें तो उसमें सजा-ए-मौत मौत सिर्फएक सजा की तरह नहीं दी जाती थी। हाथी से कुचलवाकर, आग से जलाकर, कढ़ाह में तल करके, दीवार में चुनवाकर सजा दी जाती थी। वे चाहते तो फांसी चढ़ाकर सजा दे सकते थे, लेकिन वे ऐसा नहीं करते थे। उनके सलाहकार बताते थे कि ऐसी सजा दी जाए जिससे लोग थर्रा जाएं। सजा नजीर बने। आज भी वही कुत्सित मानसिकता चली आ रही है, इसलिए चिंता का विषय है। मेरा पुलिस विभाग और मनोविज्ञानियों को परामर्श है कि वे अपराधियों की इस मनोवृत्ति के पीछे जाएं और पता लगाएं कि ऐसी निर्मम मानसिकता के पीछे क्या तत्व हैं। इनके दिमाग में कौन जहर भर रहा है।
लव जिहाद, जमीन जिहाद, कन्वर्जन या फिर मजहब का कोई विरोध करे या प्रेम पाश में ना फंसे तो उसके टुकड़े-टुकड़े कर दो, उसे जला दो, उसके 35 टुकड़े कर दो। कोई इतना निर्दयी कैसे हो सकता है?
निस्संदेह आपने अगर घर में कोई जानवर पाला है, तो आप उसे डंडे तक से नहीं मारते। अगर कभी ऐसा करने की सोचते भी हैं, तो हाथ अपने आप रुक जाते हैं। लेकिन किसी को चाकू से काट डालना, टुकड़े करना अकल्पनीय है। अगर किसी तथाकथित प्रेमी ने तथाकथित प्रेमिका के टुकड़े-टुकड़े किए तो ऐसों को हत्यारा कहना तो छोटा शब्द होगा, ये कू्रर, कुत्सित मनोवृत्ति के राक्षस हैं, दानव हैं। लेकिन ऐसे दानव के दिमाग को बनने में समय लगता है। इसके दिमाग की प्रोग्रामिंग कैसे हुई? यह मैं नहीं कहूंगा, लेकिन आज पूरी दुनिया जानती है कि इन दिमागों में जहर कैसे भरा जाता है। इसके अलावा हमें हमारा कानून ये अधिकार देता है कि स्वेच्छा से हम कहीं भी, किसी भी मत-मजहब को अपना सकते हैं। लेकिन डरा-धमकाकर कोई कन्वर्जन नहीं करा सकता। ये गैरकानूनी है और ऐसे लोगों का स्थान सलाखों के पीछे है। मैं मानता हूं कि आज इन सभी विषयों की गहनता से जांच करना बहुत जरूरी है। यह संक्रमण का काल है। हम देखते हैं कि एक बहुत बड़ा वर्ग हमारे समाज में ऐसी घटनाओं को लेकर मूक दर्शक बना रहता है। वह चिन्हित करने या सजा देने की वकालत की बात छोड़िए, वह उलटे पीड़िताओं के बारे में अनर्गल और आलोचनात्मक टिप्पणी करता है। ऐसे लोग सवाल उठाते हैं कि उनकी ओर से ही गलती हुई होगी। मेरा सवाल है कि लव जिहाद में कोई लड़की फंसती है, और जब वह विरोध करती है तो उसके ऊपर तेजाब फेंक दिया जाता है, मार दिया जाता है, तो इसमें उसकी गलती कैसे हुई? समाज को भी इन विषयों पर आलोचनात्मक टिप्पणी देने से बचना चाहिए और इन घटनाओं की संजीदगी समझते हुए विरोध दर्ज कराना चाहिए। दूसरी तरफ पुलिस को बिल्कुल भी मूक दर्शक बनकर नहीं बैठना चाहिए। उसे तथ्यों को चिन्हित करके, 30 दिन के अंदर विवेचना पूर्ण करके, प्रत्येक राज्य में फास्ट ट्रैक कोर्ट में मामले को चलाकर, राज्य और जिलों में शीर्ष पांच मामलों में मौत की सजा कराएं। ऐसा होते ही अपराधियों के हौसले पस्त
हो जाएंगे।
इस्लामी देशों ने जो चीजें छोड़ दीं, उन्हें हमारे देश में लादने की वकालत चलती है, उसे प्रगतिशीलता बताया जाता है, फैशन और गर्व के रूप में प्रस्तुत किया जाता है। जो काम सऊदी अरब में प्रतिबंधित हो गया, उसकी वकालत हमारे देश में की जाती है। इसके पीछे कठमुल्ला हैं
आज दिन-प्रतिदिन इस्लामी कट्टरता के साथ निर्ममता बढ़ती जा रही है। इसके पीछे आप क्या कारण देखते हैं?
इस कट्टरता और निर्ममता के पीछे तुष्टीकरण की राजनीति है। यह राजनीति देश को पीछे की ओर ले जा रही है। मजे की बात है कि इस्लामी देशों ने जो चीजें छोड़ दीं, उसे हमारे देश में लादने की वकालत चलती है, प्रगतिशीलता बताया जाता है, उसे फैशन और गर्व के रूप में प्रस्तुत किया जाता है। जो काम सऊदी अरब में प्रतिबंधित हो गया, उसकी वकालत हमारे देश में की जाती है। इसके पीछे कठमुल्ला हैं जो दिमाग में जहर भर रहे हैं। जिन्हें कोई नहीं पूछता था, वह फूलों की माला पहनकर टीवी चैनलों के स्टूडियों में बैठकर अनर्गल प्रलाप करते हैं। यह सब बंद होना चाहिए। जहर फैलाने वालों पर लगाम लगानी चाहिए। इनका महिमामंडन बंद होना चाहिए। ये जहां फुटपाथ के थे, उन्हें वहीं रहने दें। इनकी दुकानें बंद करनी चाहिए। वोट की राजनीति किसी के हक में नहीं है। ना ही किसी दल के और ना ही किसी संप्रदाय के। हमारा देश एक स्वस्थ लोकतांत्रिक देश है। यहां सबको पर्याप्त आजादी है। लेकिन संविधान इसकी इजाजत बिल्कुल नहीं देता कि आप किसी का गला रेत दें, उस पर तेजाबफेंक दें।
अब सामान्य ही नहीं, अच्छे पढ़े-लिखे और यहां तक कि मनोविज्ञानी तक जिहादियों की फितरत को समझ नहीं पा रहे। श्रद्धा की हत्या के आरोपी आफताब ने इसे साबित किया है। इस शातिरपन को आप किस नजरिए से देखते हैं?
आज आफताब की हकीकत सबके सामने है। उसने जो कुकृत्य किया है, उसके लिए शब्द ही नहीं हैं। देखिए, हमारी बेटियां बड़ी मासूम हैं। जब तक विश्वासघात होता है, तब तक देर हो जाती है। आज बच्चियों को यह बताने की जरूरत है कि लव जिहाद एक वास्तविकता है। समाज में संक्रमण के रूप में यह बीमारी फैलाई जा रही है, जो नादान बेटियों को पाश में ले रही है। इसलिए उन्हें इस सत्य से अवगत कराने की जिम्मेदारी घर और समाज की है। माता-पिता अपनी बेटियों को समझाएं, उन्हें समय दें। दूसरी तरफ पुलिस की जिम्मेदारी है कि जो ‘फुल टाइम लवर्स’ हैं, उनके ऊपर ऐसी कार्रवाई करें कि जैसा एक शायर कहते हैं-ऐसा कहर आया कि आशिक इश्क भूल गया। जब इनका ऐसा इलाज होने लगेगा, अपने आप यह सब बंद होगा।
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