हाई कोर्ट के निर्देश पर उत्तराखंड प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने प्लास्टिक वेस्ट मैनेजमेंट एक्ट के तहत राज्य के 1724 उद्योगों की एनओसी निरस्त कर दी है। उद्योगपति इस आदेश से परेशान हैं और वे भी हाई कोर्ट से लेकर सुप्रीम कोर्ट में अपना पक्ष रखने जा रहे हैं।
उत्तराखंड में प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने प्लास्टिक मैनेजमेंट एक्ट 2016 के तहत दी गई उद्योगों को एनओसी रद्द कर दी है। इस आदेश से 1724 उद्योगों में तालाबंदी की नौबत आ गई है। इनमें सबसे ज्यादा 754 दवा बनाने की इंडस्ट्री हैं। जिनकी दवा का 18 देशों को निर्यात होता है। करीब 8000 करोड़ की निवेश वाली ये औद्योगिक इकाइयां एक दम सदमे में हैं। भारत में दवा उत्पादन का 24 प्रतिशत हिस्सा उत्तराखंड से पूरा होता है।
फार्मा उद्योगपतियों की एसो. के प्रमुख अनिल शर्मा ने कहा कि जब हमने उद्योग लगाए थे तो एनओसी ली थी अब उनमें चार बार संशोधन कर दिए हैं, जिसमें हमारी कोई राय नहीं ली गई। हम कुल पांच प्रतिशत प्लास्टिक केवल पैकेजिंग में इस्तेमाल करते हैं और सरकार कहती है कि प्लास्टिक को नष्ट करने अथवा री-साइकिल करने के उपकरण लगाए, जोकि न्याय संगत नहीं है। आज हम यदि नए मानकों में काम करते हैं तो हमारी औद्योगिक लागत दो गुनी हो जाएगी। इससे हमारे मूल्यों में लागत में वृद्धि हो जाएगी और हम दुनिया के बाजार में टिक नहीं पाएंगे।
उल्लेखनीय है कि उत्तराखंड की फार्मा इंडस्ट्री दुनिया के देशों के साथ-साथ बहु राष्ट्रीय दवा कंपनियों के लिए उत्पादन कर दवा सप्लाई करती है। बहरहाल दवा उद्योग से जुड़े कारोबारी इस मुद्दे पर हाई कोर्ट से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक अपनी लड़ाई लड़ने का मन बना चुके हैं। इस मामले में उत्तराखंड सरकार भी हाई कोर्ट के आदेश का पालन कर रही है। साथ ही वे उद्योगपतियों में बढ़ रही नाराजगी को लेकर भी चिंतित है और वो बीच का रास्ता निकालने के लिए विधिक राय ले रही है।
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