यह पुस्तक कन्वर्जन और उसके पीछे के वास्तविक कारणों को सामने रखती है। श्रुति के अनुसार, पुस्तक लिखने का आशय भी यही है कि कोई और ऐसी गलती न दोहराए और उन कष्टों से न गुजरे, जो उन्होंने और उनके परिवार ने सहन किए हैं।
पुस्तक ‘स्टोरी आफ ए रिवर्जन’ नि:संदेह ओ. श्रुति के जीवन का आईना है। श्रुति ने ‘अज्ञानतावश’ स्वधर्म छोड़कर इस्लाम को अपना लिया था। यह सब कैसे और क्यों हुआ, उसे क्या-क्या सहना पड़ा, वह किन पड़ावों से गुजरी उन्होंने अपनी पुस्तक में यह विस्तार से बताया है। उन्हें कब, कैसे उस गलती का अहसास हुआ? कैसे वह स्वधर्म में वापस आई? यूट्यूब पर उनकी इस दारुण कथा और अनुभवों को 40 लाख से अधिक लोग देख—जान चुके हैं। यह पुस्तक कन्वर्जन और उसके पीछे के वास्तविक कारणों को सामने रखती है। श्रुति के अनुसार, पुस्तक लिखने का आशय भी यही है कि कोई और ऐसी गलती न दोहराए और उन कष्टों से न गुजरे, जो उन्होंने और उनके परिवार ने सहन किए हैं।
मूल रूप से मलयालम में लिखी गई यह पुस्तक उन असंख्य हिंदू लड़कियों की कहानियों का एक झरोखा है, जो लव जिहाद या कन्वर्जन की शिकार होकर इस्लामी कट्टवाद के भयावह जाल में फंस गई। यह निमिषा, अखिला और मेरीन जैसी युवतियों के माता-पिता की दुर्दशा को सामने रखती है। कह सकते हैं कि यह पुस्तक मुस्लिम कन्वर्जन पर लगाम लगाने के लिए एक ताकतवर हथियार साबित हो सकती है।
केरल के कासरगोड नगर के एक ब्राह्मण परिवार की लड़की (लेखिका) अंग्रेजी साहित्य में स्नातकोत्तर कर रही थी। अपनी कहानी में उसने बताया है कि कैसे उसके साथ की छात्राएं और कॉलेज के साथी हिंदू धर्म का उपहास करते थे व इस्लाम को बढ़ा—चढ़ाकर पेश करते थे। हिंदू धर्म के बारे में उनके ऐसे विचारों और इस्लाम की तारीफों ने लेखिका के मन में इस्लाम के प्रति आकर्षण पैदा किया और उसे भी लगा कि ‘उसका धर्म कितना पिछड़ा है।’ इस प्रकार, वह इस्लामी कन्वर्जन के लिए पोन्नानी के इस्लामी केंद्र में जा पहुंची। वहां मजहबी कट्टरपंथियों ने उसे मजहब की पट्टी पढ़ाई और उसके दिमाग में हिंदू धर्म तथा देश के प्रति विष बोया। पुस्तक इस पूरे प्रकरण पर विस्तार से प्रकाश डालती है। इस्लामवादी मौलवी किस प्रकार वहां फुसलाकर, डरा कर या लालच देकर कन्वर्जन करते हैं और कैसे अन्य हिंदू महिलाओं को ऐसी स्थितियों में ला छोड़ते हैं, जहां उनके पास मजहब को अपनाने के अलावा कोई रास्ता नहीं बचता।
कन्वर्जन केंद्र में उसे मजहब से जुड़ी हर चीज की तालीम देने की कोशिश की गई। साहित्य दिया गया, सुनने को सीडी दी गर्इं। उसके दिमाग में यह बैठाया गया कि ‘अल्लाह ही एकमात्र पैगम्बर है और मोहम्मद उसका अंतिम दूत।’ इस्लाम व उसके इतिहास को पढ़ने के बाद लेखिका को लगा कि इस्लाम में उपासना का तरीका कहीं आसान है। इस्लाम कबूलने के बाद उसने नमाज पढ़ना, रोजा रखना सीखा। कपड़े भी मजहबी रीति से पहनने लगी। बिंदी लगानी छोड़ दी। उसके लिए पूजा, मंदिर, प्रसादम्, मंत्र आदि पिछड़ेपन की निशानियां हो गए। मौलवियों ने उसके मन में उसके माता-पिता के प्रति भी नफरत पैदा कर दी, क्योंकि ‘वे काफिर थे’, इसलिए उनसे कोई मतलब न रखने को कहा।
पुस्तक का नाम : स्टोरी आफ अ रिवर्जन
(मैं कैसे इस्लाम में
कन्वर्ट हुई और कैसे
सनातन धर्म में लौटी)
(अंग्रेजी अनुवाद एम. राजशेखर और विशाली शेट्टी)
लेखिका : ओ. श्रुति
प्रकाशक : आर्ष विद्या समाजम बौद्धिकम बुक्स
एंड पब्लिकेशंस त्रिपुनितुरा, एर्नाकुलम
केरल—682301
फोन 0484—2777250
पृष्ठ : 178 मूल्य : 180/= रु.
इधर, मां का रो—रो कर बुरा हाल था। इकलौती बेटी माता-पिता, भाइयों-बहनों से दूर होती गई। पुस्तक में एक जगह बताया गया है कि कैसे इस्लाम के ख्यालों में खोई लेखिका हिंदू परिवार में ‘मन से इस्लामवादी’ होकर रही थी। उसे घर में लगीं भगवान शिव और अन्य देवताओं की तस्वीरों से चिढ़ होने लगी थी। उसने लिखा है कि कैसे उसने एक बार एक मंदिर में शिवलिंग के प्रति अपमानजनक शब्द कहे और मंदिर का अपमान किया था।
पुलिस में शिकायत के बाद उसे कन्वर्जन केंद्र से पावक्कुलम महादेव मंदिर, एनार्कुलम में विश्व हिंदू परिषद के कार्यालय में लाया गया। वहां उसे काफी समझाया गया, फिर लेखिका को आर्ष विद्या समाजम में आचार्य से मिलवाया गया। बस, यहीं से जीवन में बदलाव आना शुरू हुआ। आज वह आर्ष विद्या समाजम की समर्पित कार्यकर्ता है। उसने आचार्य से दीक्षा ग्रहण की। उसके जीवन का एक ही ध्येय है कि कन्वर्ट हुए हिंदुओं को स्वधर्म में वापस लाना।
सही और सकारात्मक रास्ता दिखाने के लिए पुस्तक की लेखिका ओ. श्रुति विश्व हिंदू परिषद, हिंदू एक्य वेदी, आर्ष विद्या समाजम और अपने गुरु आचार्य मनोज का आभार प्रकट करती हं।
—समीक्षा: टी. सतीशन
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