आकाश सक्सेना रामपुर विधानसभा से चुनाव जीत गए. उन्होंने आज़म खान के गढ़ को ध्वस्त कर दिया. वर्ष 2017 में भाजपा की सरकार बनने के बाद आकाश सक्सेना ने आज़म खान के खिलाफ मोर्चा खोला. आजम खान द्वारा की गई अनियमितताओं की शिकायत उन्होंने रामपुर जिला प्रशासन और फिर शासन में की. शासन के आदेश पर आकाश सक्सेना की शिकायतों का संज्ञान लिया गया. आज़म खान के खिलाफ जांच शुरू हुई. उसके बाद आज़म खान के नित नए मामले उजागर होने शुरू हो गए. आकाश सक्सेना ने ही शिकायत की और सारे प्रमाण दिए जिसके आधार पर अब्दुल्ला आजम खान के दो जन्म प्रमाण पत्र का मामला उजागर हुआ. इस मामले में आज़म खान और उनकी पत्नी को जेल जाना पड़ा. आकाश सक्सेना की जीत के साथ ही आज़म खान का राजनीतिक गढ़ भी ध्वस्त हो गया. भारतीय जनता पार्टी की रामपुर सीट पर पहली बार भाजपा की विजय पर योगी आदित्यनाथ ने सभी को बधाई दी है.
आकाश सक्सेना की शिकायत पर गिराया गया था उर्दू गेट
पूर्व मंत्री आज़म खान ने रामपुर में इस उर्दू गेट को गलत तरीके से बनवाया था. उस समय नियम के विरुद्ध इस गेट की ऊँचाई को काफी कम कर दिया गया था ताकि उस रास्ते से कोई भी भारी वाहन जौहर विश्वविद्यालय की तरफ ना जाने पाए. इस उर्दू गेट के बन जाने से उस मुख्य मार्ग पर भारी वाहनों का आवागमन पूरी तरह बंद हो गया था. उर्दू गेट की ऊँचाई कम करने की असल वजह कुछ और ही बताई जाती है. इस मामले के शिकायत कर्ता एवं भाजपा नेता आकाश सक्सेना कहते हैं ” जब भी कभी बवाल हो तो पुलिस और पी.ए. सी के भारी वाहन जौहर विश्वविद्यालय में ना जाने पाए इसलिए गेट की ऊँचाई को कम कर दिया गया था.” गेट की ऊँचाई कम होने से भारी वाहनों को काफी लंबा रास्ता तय करना पड़ रहा था जिसकी वजह से जाम लग रहा था. इस उर्दू गेट की शिकायत की गयी थी. इसकी जांच कराई गयी. जांच कराने में दो वर्ष का समय लगा. जांच में यह गेट पूरी तरह नियम विरूद्ध पाया गया. इसलिए जिला प्रशासन ने इसे ध्वस्त करा दिया.
आज़म खान के बेटे एवं विधायक अब्दुल्ला का दो जन्म प्रमाण पत्र
पूर्व नगर विकास मंत्री आज़म खान, उनके पुत्र और उनकी पत्नी पर जनपद रामपुर के थाना ‘गंज’ में कूटरचना और जालसाजी करने के आरोप में एफ.आई.आर. दर्ज कराई गई. रामपुर जनपद के भाजपा नेता आकाश सक्सेना ने इस मामले को उठाया कि आजम खान और उनकी पत्नी ने जालसाजी करके अपने पुत्र अब्दुल्ला आज़म खान का दो जन्म प्रमाण पत्र बनवाया था. दोनों जन्म प्रमाण पत्रों को अलग –अलग जगह पर उपयोग करके अनैतिक लाभ लिया गया. शिकायत पर शासन ने जांच के आदेश दिए थे. प्रारम्भिक जांच में आरोप प्रथमदृष्टया सच प्रतीत होने पर तीनों लोगों के खिलाफ आई.पी. सी. की धारा 420, 467 एवं 468 के अंतर्गत मुकदमा पंजीकृत किया गया.
उल्लेखनीय है कि वर्ष 2012 से 2017 तक आज़म खान, सपा सरकार में नगर विकास मंत्री थे. सपा के शासनकाल में ही आजम खान की पत्नी प्रोफ़ेसर तंजीम फातमा, समाजवादी पार्टी के टिकट पर राज्यसभा सांसद निर्वाचित हुई. वर्ष 2017 के विधानसभा चुनाव में आज़म खान और उनके पुत्र अब्दुल्ला आज़म खान ने रामपुर जनपद की अलग –अलग विधानसभा सीट से सपा के टिकट पर चुनाव लड़ा और निर्वाचित हुए.
जौहर विश्वविद्यालय में अनैतिक लाभ देने के लिए अब्दुल्ला आज़म खान का दो जन्म प्रमाण पत्र बनवाया गया. फर्जी जन्म प्रमाण पत्र मंत्री पद का दुरूपयोग करते हुए आज़म खान ने बनवाया था. दोनों जन्म प्रमाण पत्रों में जन्म स्थान अलग – अलग दर्शाया गया था . एक जन्म प्रमाण पत्र 28 जून 2012 को नगर पालिका परिषद रामपुर से बनवाया गया था . इसमें जन्म स्थान रामपुर दर्शाया गया जबकि दूसरा जन्म प्रमाण पत्र 21 जनवरी 2015 को नगर निगम लखनऊ से बनवाया गया. नगर निगम लखनऊ से जारी हुए जन्म प्रमाण पत्र में एक निजी अस्पताल का प्रमाण पत्र लगा हुआ था . पहला जन्म प्रमाण पत्र जो रामपुर नगर पालिका परिषद् से जारी किया गया था , उसी के आधार पर विधायक अब्दुल्ला आज़म खान ने अपना पासपोर्ट बनवाया था .
जौहर विश्वविद्यालय के लिए नियम विरुद्ध तरीके से खरीदी गयी दलितों की जमीन
जौहर विश्वविद्यालय , आज़म खान का ड्रीम प्रोजेक्ट था . यह विश्वविद्यालय, मौलाना मोहमद अली जौहर ट्रस्ट द्वारा संचालित है. मौलाना मोहमद अली जौहर ट्रस्ट का रजिस्ट्रेशन, बी-34 दारूल शफा लखनऊ के पते पर कराया गया. आज़म खान, ट्रस्ट के आजीवन अध्यक्ष रहेंगे. आजम खान की पत्नी डॉ तंजीन फातमा ट्रस्ट की सचिव हैं. आज़म खान की बहन निखत अफलाक ट्रस्ट की कोषाध्यक्ष हैं. ट्रस्ट के अन्य सदस्यों में आज़म खान के दोनों बेटों का नाम लिखा हुआ है. ट्रस्ट के सदस्यों का समाज सेवा से कोई ख़ास सरोकार नहीं रहा है. आकाश सक्सेना ने आजम खान के खिलाफ अभियान चलाया. इनकी शिकायत का शासन ने संज्ञान लिया और जांच के आदेश दिए. जांच हुई तो पाया गया कि जौहर विश्वविद्यालय को बनाते समय आज़म खान ने अपने यहां पर काम करने वाले तीन दलितों के नाम पर दलितों के दस भूखंड रजिस्ट्री करवा लिया. यह तो नियम के अनुरूप था मगर इन तीनों अनुसूचित जाति के लोगों ने भूखंड रजिस्ट्री कराने के तुरंत बाद इन दस भूखंडो की रजिस्ट्री , जौहर विश्वविद्यालय को कर दिया. जबकि नियम यह कि दलित की भूमि अगर कोई सामन्य जाति का व्यक्ति खरीदता है तो उसे जिलाधिकारी की अनुमति लेना होता है.
शत्रु सम्पत्ति निष्क्रांत का भी है विवाद
34.19 एकड़ भूमि जो राजस्व अभिलेखों में शत्रु सम्पत्ति निष्क्रांत के तौर पर दर्ज थी. यह शत्रु सम्पत्ति निष्क्रांत भी चकरोड से लगी हुई भूमि थी और सार्वजनिक उपयोग के लिए इस्तेमाल होती थी. इस भूमि को चहारदीवारी बना कर विश्वविद्यालय में मिला लिया गया. जिसकी वजह से आवगमन बाधित हो गया. ऐसी सम्पत्ति जिनके मालिक पाकिस्तान चले गए और उनका कोई भी वारिस हिन्दुस्थान में नहीं था. ऐसी जमीनों को शत्रु सम्पत्ति निष्क्रांत (कस्टोडियन भूमि) माना गया. इस शत्रु सम्पत्ति निष्क्रांत की भूमि को कब्जा कर लिए जाने के बाद आम जनता को मुख्य मार्ग तक पहुंचने के लिए काफी घूम कर जाना पड़ता है . जनपद में सरकारी संपत्तियों से सम्बंधित जो भी विवाद होता है उसमे वाद जिलाधिकारी की तरफ से ही योजित किया जाता है , इसलिए जिलाधिकारी रामपुर ने इस सम्बन्ध में राजस्व परिषद् में वाद दायर किया.
आज़म खान ने सपा शासन काल में चकरोड और नदी के बाढ़ क्षेत्र की जमीन को भी कब्जा करके जौहर विश्वविद्यालय में मिला लिया. आरोप है कि चकरोड की 20.95 एकड़ भूमि , रास्ते की भूमि 30 एकड़ एवं बाढ़ क्षेत्र की ज़मीन को राजस्व रिकार्ड में हेराफेरी करके जौहर विश्वविद्यालय की परिधि में ले लिया गया. सभी नियमों को दर किनार करते हुए आज़म खान के दबाव में चकरोड की जमीन विश्वविद्यालय को दे दी गयी थी और इस चकरोड की भूमि के बदले आज़म खान ने कुछ दूरी पर उतनी ही जमीन का एरिया सरकार को दिया. सरकार को बदले में दी गयी भूमि अनुपयोगी एवं बाढ़ क्षेत्र की थी.
सिंचाई , पर्यटन एवं लोक निर्माण विभाग के बजट को भी जौहर विश्वविद्यालय में खर्च कराया
सिंचाई विभाग का कई करोड़ रूपये जनपद को बाढ़ से बचाने के लिए अवमुक्त किया गया था मगर मंत्री के पद पर रहते हुए आज़म खान ने सिंचाई विभाग के बजट को जौहर विश्वविद्यालय के लिए खर्च करवा दिया. जौहर विश्वविद्यालय के निकट कोसी नदी है, इसी नदी को आधार बनाकर सिंचाई विभाग के बजट का दुरूपयोग किया गया. रामपुर में पर्यटन विभाग के बजट का दुरूपयोग करके जौहर विश्वविद्यालय के भीतर ही एक झील का निर्माण कराया गया. यह झील जौहर विश्वविद्यालय के परिसर में है और किसी जन – सामान्य को अन्दर प्रवेश करने पर रोक लगा दी गई थी.
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