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कन्वर्जन कराया तो खैर नहीं!

30 नवम्बर को ‘उत्तराखंड धर्म स्वतंत्रता (संशोधन) विधेयक-2022’ को ध्वनि मत से पारित कर दिया। राज्यपाल के हस्ताक्षर के बाद इसे राष्ट्रपति की स्वीकृति के लिए भेजा जाएगा

दिनेश मानसेरा by दिनेश मानसेरा
Dec 8, 2022, 07:29 am IST
in भारत, उत्तराखंड
‘उत्तराखंड धर्म स्वतंत्रता (संशोधन) विधेयक-2022’ के पारित होने के बाद मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी

‘उत्तराखंड धर्म स्वतंत्रता (संशोधन) विधेयक-2022’ के पारित होने के बाद मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी

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https://panchjanya.com/wp-content/uploads/speaker/post-259610.mp3?cb=1670464858.mp3

उत्तराखंड की भाजपा सरकार ने लोभ-लालच से कन्वर्जन को रोकने के लिए कानून बनाने की दिशा में बढ़ाया कदम। विधानसभा में पारित विधेयक में हैं कई कड़े प्रावधान

उत्तराखंड विधानसभा ने गत 30 नवम्बर को ‘उत्तराखंड धर्म स्वतंत्रता (संशोधन) विधेयक-2022’ को ध्वनि मत से पारित कर दिया। राज्यपाल के हस्ताक्षर के बाद इसे राष्ट्रपति की स्वीकृति के लिए भेजा जाएगा। उनकी स्वीकृति मिलने पर यह विधेयक कानून बन जाएगा। उल्लेखनीय है कि इससे पहले त्रिवेंद्र सरकार के कार्यकाल में भी ऐसा कानून पारित हुआ था, लेकिन उसमें कुछ खामियों को देखते हुए उसे राष्ट्रपति के पास नहीं भेजा गया था।

विधेयक के पारित होने के बाद मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने बताया कि उत्तराखंड को देवभूमि माना जाता रहा है, किंतु कुछ समय से यहां जनजाति और वंचित समाज के लोगों को लोभ-लालच से कन्वर्ट करने के षड्यंत्र रचे जा रहे थे। उत्तराखंड सीमांत राज्य है। सरकार को राज्य के भविष्य और यहां के लोगों की चिंता है। इसलिए यह कानून बनाया गया है। श्री धामी ने यह भी बताया कि उत्तराखंड के कुछ जिलों में जनसंख्या असंतुलन भी देखा जा रहा है। इसके लिए सरकार सशक्त भू-कानून और समान नागरिक संहिता विधेयक भी जल्दी ही लाने जा रही है।

वहीं भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष महेंद्र भट्ट का कहना है कि ‘धर्म स्वतंत्रता’ कानून की राज्य को सख्त जरूरत थी। इससे लव जिहाद, कन्वर्जन जैसी समस्याओं पर रोक लग सकती है। श्री भट्ट यह भी कहते हैं कि भाजपा उत्तराखंड की संस्कृति के संरक्षण के लिए वचनबद्ध है। ज्योतिष्पीठाधीश्वर जगत्गुरु शंकराचार्य स्वामी श्री वासुदेवानंद सरस्वती महाराज ने विधेयक के पारित होने को ऐतिहासिक बताया और कहा कि अन्य राज्यों को भी ऐसे कानून के लिए पहल करनी चाहिए।

विधेयक के मुख्य बिंदु

  •  जबरन कन्वर्जन को गैर-जमानती अपराध माना गया है।
  •  दोषियों के लिए तीन साल से लेकर 10 साल तक की सजा का प्रावधान। इसके अलावा कम से कम 50,000 रु. के जुर्माने का प्रस्ताव है। पहले विधेयक में सात साल की सजा का प्रावधान था।
  •  दोषी को 5,00,000 रु. की मुआवजा राशि का भुगतान भी करना पड़ सकता है, जो पीड़ित को दी जाएगी।
  •  कन्वर्ट हुए व्यक्ति को पूर्व में मिल रही सुविधाओं जैसे- आरक्षण आदि से वंचित किया जाएगा।
  •  यदि कोई व्यक्ति स्वेच्छा से कन्वर्ट होता है तो उसे जिलाधिकारी के यहां एक माह पूर्व प्रार्थनापत्र देना होगा।
  •  यह विधेयक कन्वर्जन करने वाले लोग या संस्थाओं के ऊपर भी कार्रवाई का प्रावधान करता है।
  •  कन्वर्जन करने वाली संस्थाओं को मिलने वाले देशी-विदेशी चंदे पर रोक लगाएगा।
  • अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, महिला और नाबालिग के कन्वर्जन पर अधिक सजा का प्रावधान है।

सबसे पहले पाञ्चजन्य ने उठाया मुद्दा

पाञ्चजन्य (10 जून,2021) में प्रकाशित रिपोर्ट

उत्तराखंड मेें लोभ-लालच से हो रहे कन्वर्जन और जनसांख्यिक बदलाव के मुद्दे की ओर सबसे पहले पाञ्चजन्य ने राज्य सरकार का ध्यान आकृष्ट किया। अब राज्य सरकार इन समस्याओं पर रोक लगाने के लिए कानून बना रही है।

 

क्यों पड़ी जरूरत
बता दें कि उत्तराखंड के मैदानी जिलों में थारु, जौनसारी, बोक्सा आदि जनजातियां रहती हैं। इनके बीच ईसाई मिशनरियां सक्रिय रहती हैं। इस कारण इन जनजातियों की लगभग 35 प्रतिशत आबादी ईसाई हो चुकी है। इसके साथ ही अनुसूचित जातियों में भी ईसाई मिशनरियां सक्रिय हैं। यही नहीं, देहरादून, हरिद्वार, नैनीताल, ऊधमसिंह नगर और पौड़ी जिले में मुस्लिम आबादी पांव पसार रही है। इस वजह से लव जिहाद के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं।

इन सबको देखते हुए एक कड़े कानून की आवश्यकता थी। उम्मीद है कि राज्यपाल और राष्टÑपति जल्दी ही इस विधेयक को अपनी सहमति देंगे। विधेयक के कानून बनने के बाद इस पहाड़ी राज्य की अनेक समस्याओं का समाधान निकलेगा।

Topics: उत्तराखंडधर्म स्वतंत्रताज्योतिष्पीठाधीश्वरजगत्गुरु शंकराचार्य स्वामी श्री वासुदेवानंद सरस्वती महाराजउत्तराखंड के मैदानी
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