पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय ने चंडीगढ़ महापौर चुनाव को चुनौती देने वाली आम आदमी पार्टी की दलील खारिज करते हुए चुनाव को सही ठहराया है। न्यायालय ने भाजपा महापौर सर्बजीत कौर के चुनाव को गैरकानूनी बताने वाली आम आदमी पार्टी की याचिका रद्द कर दी है। आम आदमी पार्टी ने सवाल उठाया था कि महापौर चुनाव में एक फटा वोट स्वीकार किया गया था। इस पर न्यायालय ने कहा कि इसमें कोई विवाद नहीं है कि महापौर पद पर कुल 28 वोट पड़े और उनमें से 27 वैध करार हुए। इसमें भाजपा को 14 और आम आदमी पार्टी को 13 मत मिले। आप ने भाजपा को मिले एक फटे वोट पर आपत्ति जताई थी, लेकिन अदालत ने उसे अस्वीकार कर दिया है।
एक वोट पर टिक का निशान था उसे रद किया गया था। आम आदमी पार्टी की मेयर प्रत्याशी अंजू कत्याल को 13 और भाजपा प्रत्याशी सर्बजीत कौर को 14 वोट मिले। ऐसे में सर्बजीत कौर को विजयी घोषित किया गया। अंजू कत्याल का कहना था कि एक फटे वोट को वैध करार दे दिया गया। न्यायालय ने कहा कि फटे वोट का मुद्दा विमला देवी केस में देखने को मिलता है। उसमें कहा गया था कि ऐसा कोई अधिनियम या चुनावी नियम नहीं है कि वह फटा हुआ वोट न गिना जाए जो पूरी तरह से अलग नहीं है।
वहीं जिस वोट को अवैध मानकर रद किया गया था वह मुद्दा अरिकाला नरसा रेड्डी केस में चर्चित हुआ था। उसमें श्रद्धा देवी केस का भी जिक्र हुआ था। वहीं चुनावी आचार संहिता नियम-1961 में भी मतपत्र पर अंकन और लेखन को लेकर नियम तय हैं।
चंडीगढ़ निगम चुनाव में आम आदमी पार्टी की अंजू कत्याल (13 वोट) भाजपा की सर्बजीत कौर (14 वोट) से हारी थीं। सीनियर डिप्टी मेयर पद पर आप की प्रेम लता (13 वोट) भाजपा के दलीप शर्मा (15 वोट) से हारी थीं और आप के रामचंद्र यादव (14) भाजपा के अनूप गुप्ता (14+1) से हारे थे। महापौर के पद पर कुल 28 मत पड़े थे, जिनमें 1 अवैध करार दिया गया। वरिष्ठ उप-महापौर पद के लिए भी 28 मत पड़े और सभी सही रहे।
चुनाव अधिकारी ने गहनता से उन मतों का निरीक्षण किया था जिन पर गणना अधिकारी ने आपत्ति जताई थी। एक मतपत्र की पिछली तरफ अंकन का निशान था जिसे नियमों के तहत अवैध घोषित किया गया था। महापौर चुनाव पर याची अंजू कत्याल का कहना था कि एक और वोट अवैध था जिसे रद्द नहीं किया गया। अंजू कत्याल और अन्य ने चंडीगढ़ नगर निगम के चुनावों को पंजाब हरियाणा उच्च न्यायालय में चुनौती दी थी।
न्यायाधीश ऋतु बाहरी और निधि गुप्ता की पीठ मामले की सुनवाई कर रही थी। केस में दोनों पक्षों ने उच्च न्यायालय और सर्वोच्च न्यायालय के निर्णयों को आधार बनाया। प्रतिवादी पक्ष ने कहा कि निर्णयों में साफ है कि मतपत्र पर कोई ऐसा अंकन या कुछ लिखा हुआ जो संभवत: वोटर की पहचान बताता हो वह अवैध माना जाएगा। वहीं फटे हुए मतपत्र को अवैध करार नहीं दे सकते क्योंकि ऐसे वोटों की गिनती पर कोई रोक नहीं है।
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