पाकिस्तान में उस अहमदी समुदाय को एक बार फिर अपमानित किया गया है जिन्हें सुन्नी पाकिस्तान मुस्लिम ही नहीं मानता। उन्हें वहां हर तरह के खतरे का सामना करना पड़ता है, अनकी जान के लाले पड़े रहते हैं। पाकिस्तान की संसद ने अहमदी समुदाय को गैर—मुस्लिम ठहराया हुआ है। यही वजह है कि इस समुदाय की मस्जिदें और कब्रिस्तान तक सुरक्षित नहीं हैं। ताजा समाचार के अनुसार, पाकिस्तान के हाफिजाबाद जिले में सुन्नी मजहबी उन्मादियों ने अहमदी समुदाय के कब्रिस्तान को निशाना बनाया है और कई कब्रों के साथ तोड़—फोड़ की गई है।
पाकिस्तान में अहमदियों के प्रति बरते जा रहे अपमानजनक रवैए की पोल खोलने वाली इस घटना से वहां के अहमदी हतप्रभ हैं। अल्पसंख्यक अहमदी समुदाय की अनेक कब्रों को जिस तरह से अपमानित किया गया है, उससे सुन्नियों के मन में उनकी प्रति नफरत का अंदाजा लगता है। पंजाब प्रांत में अहमदिया समुदाय के प्रवक्ता आमिर महमूद ने बताया कि लाहौर से लगभग सौ किलोमीटर दूर जिला हाफिजाबाद में प्रेम कोट कब्रिस्तान में अहमदी समुदाय की कब्रों पर लगे पत्थरों को दूषित किया गया है। इस समुदाय के कब्रिस्तान में कई कब्रों के पत्थरों को खुरचकर इस्लामी आयतें लिखी गई हैं। आमिर ने कहा है कि अहमदी कब्रों को इस तरह अपमानित करने वालों ने कब्रों पर ऐसे शब्द लिखे हैं जिनसे समुदाय का अपमान होता है। समुदाय इसे बहुत दुखद घटना मानता है। आमिर दुखी होकर कहते हैं कि इस घटना से यही लगता है कि यहां मरने के बाद भी अहमदी लोगों को राहत नहीं मिल सकती। अहमदी लोग अपनी कब्रों में भी हिफाजत से नहीं हैं। आमिर महमूद ने मांग की है कि अल्पसंख्यक समुदाय अहमदी की कब्रों को दूषित करने वाले लोगों को जल्द से जल्द गिरफ्तार किया जाए।
उल्लेखनीय है कि पंजाब में दूसरे कई अहमदी कब्रिस्तानों में पहले इस तरह की हरकतें की जा चुकी हैं। और दिलचस्प तथ्य यह है कि इसके पीछे एक भी दोषी को आज तक पकड़ा नहीं गया है, न ही किसी पर आज तक कोई मुकदमा चला है। अभी अगस्त माह में पाकिस्तानी पंजाब सूबे में लाहौर से लगभग 150 किलोमीटर दूर फैसलाबाद जिले के चक 203 आरबी मनावाला में अहमदी समुदाय के एक कब्रिस्तान में कुछ कब्रों को कथित तौर पर इसलिए अपमानित किया गया था, क्योंकि उन पर इस्लामी प्रतीक बनाए गए थे।
अहमदी समुदाय पड़ोसी पाकिस्तान में बहुत कमजोर स्थिति में है। उसे अक्सर सुन्नी उन्मादी निशाने बनाते आ रहे हैं। सैन्य तानाशाह रहे जनरल जिया-उल हक ने अपने कार्यकाल में एक कानून बनाकर अहमदियों के लिए अपने को मुसलमान कहना अथवा इस्लाम को अपना मजहब बताना दंडनीय अपराध बना दिया।
इससे पहले साल 1974 में पाकिस्तानी संसद ने इस समुदाय को गैर-मुस्लिम करार दे दिया था। उसके दस साल बाद, उनके अपने को मुसलमान कहने तक पर प्रतिबंध लगाया गया था। पाकिस्तान में वे न मजहबी तकरीर दे सकते हैं, न मजहबी यात्रा के लिए सऊदी अरब जा सकते हैं। इन दोनों कामों पर प्रतिबंध लगाया जा चुका है।
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