एक ओर जहां दुनियाभर के रक्षा विशेषज्ञों के बीच आतंकवाद को वैश्विक स्तर पर काबू करने के तरीकों और नीतियों पर विभिन्न मंचों पर मंथन चल रहा है, वहीं दूसरी ओर 2014 के बाद पहली बार ऑस्ट्रेलिया में आतंकवाद के खतरे को ‘संभावित’ की श्रेणी में रख दिया गया है। पहले वहां आतंकवाद के खतरे का स्तर ‘संभाव्य’ था।
कैनबरा से आए एक समाचार ने रक्षा विशेषज्ञों को विस्मय—मिश्रित हैरानी में डाल रखा है। वह समाचार यही है कि ऑस्ट्रेलिया में अब आतंकवाद उतने ‘खतरनाक’ स्तर पर नहीं रहा है। ऐसी स्थिति 2014 के बाद से पहली बार बनी है, जब आतंकवाद के खतरे का स्तर संभाव्य अथवा ‘प्रॉबेबल’ माना गया था और उसके बाद से अभी तक सरकार की रक्षा नीतियां इसी स्तर को ध्यान में रखकर बनाई जाती रही हैं। लेकिन अब ये संभावित या ‘पॉसिबल’ हो गया है।
उल्लेखनीय है कि ऑस्ट्रेलिया की मुख्य गुप्तचर एजेंसी ने इस बदलाव के बारे में प्रेस को जानकारी दी है। ऑस्ट्रेलिया के प्रतिरक्षा गुप्तचरी संगठन के महानिदेशक माइक बर्गेस का कहना है कि पश्चिम एशिया में हुई लड़ाई में इस्लामिक स्टेट गुट की पराजय तथा अल-कायदा के बेअसर हुए प्रोपेगेंडा की वजह से वे पश्चिमी देशों के युवाओं को अपने आतंकी मंसूबों से नहीं जोड़ पाए हैं, यह तथ्य आतंकवाद के खतरे की गंभीरता के घटने का बड़ा कारण बना है। उनके अनुसार इसी वजह से ऑस्ट्रेलिया में चरमपंथियों की तादाद में कमी आई है।
हालांकि माइक बर्गेस ने अपनी बात में यह भी जोड़ा कि इसका यह मतलब नहीं निकालना चाहिए कि खतरा खत्म हो गया है। उनका कहना था कि इस बात की आशंका अब भी ज्यों की त्यों है कि अगले एक साल के अंदर देश में किसी आतंकवादी के हाथों किसी की जान चली जाए। बर्गेस मानते हैं कि बीते कुछ सालों में ऑस्ट्रेलिया में ‘कट्टर राष्ट्रीयता और चरम दक्षिणपंथी विचारधारा में बढ़ोतरी देखने में आई है।
ऑस्ट्रेलिया की मुख्य गुप्तचर एजेंसी के महानिदेशक ने पिछले वक्त में झांककर बताया कि देश में 2014 में जब आतंकवाद के खतरे को ‘संभावित’ की बजाय ‘संभाव्य’ किया गया था उसके बाद से अब तक देश में 11 आतंकवादी हमले हो चुके हैं। इसके साथ ही 21 आतंकवादी मंसूबों को अंजाम तक नहीं पहुंचने दिया गया।
यहां एक बात गौर करने वाली है। जहां आतंकवाद का बढ़ता व्याप नए नए क्षेत्रों को प्रभावित करता जा रहा है और अंतरराष्ट्रीय जिहादी गुट आपस में शैतानी साठगांठ करके सभ्य समाज के लिए नासूर बनते जा रहे हैं, वहीं ऑस्ट्रेलिया में आए इस बदलाव को किस नजर से देखा जाए। रक्षा विशेषज्ञ इस बात की तह में जा रहे हैं कि अगर उस देश की सुरक्षा एजेंसियों ने आतंकवाद का फन कुचलने के लिए अगर कोई पद्धति अपनाई है तो क्या उसे अन्य स्थानों पर अपनाया जा सकता है?
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