झारखंड सरकार की लापरवाही से राज्य में बिजली की भारी कटौती हो रही है। कारोबारी परेशान हैं और इस ठंड में बिजली न मिलने से आम जन—जीवन भी प्रभावित है।
झारखंड सरकार प्रदेश के विकास के लिए रोज नई—नई योजनाएं और बड़े-बड़े वादों की घोषणाएं करती है,लेकिन वे सब वादे और योजनाएं धरातल पर कहीं नजर नहीं आती हैं। किसी भी उद्योग को चलाने के लिए सबसे जरूरी चीज बिजली होती है। लेकिन इन दिनों राज्य में बिजली का भारी संकट है। इस कारण कई उद्योग बंद हो गए हैं, जबकि कई घाटे में जा चुके हैं। कई उद्योगपति पलायन का मन बना चुके हैं। यही कारण है राज्य में बेरोजगारी और बढ़ गई है।
आपको बता दें कि झारखंड में पिछले दो महीने से रांची, जमशेदपुर, धनबाद, बोकारो आदि शहरों में रोजाना 4 से 6 घंटे की बिजली कटौती की जा रही है। इस वजह से राज्य के 18,000 से अधिक लघु और कुटीर उद्योग प्रभावित हो रहे हैं। कई उद्योगों को जनरेटर का इस्तेमाल करना पड़ रहा है, जिससे उनकी उत्पादन लागत कई गुना बढ़ चुकी है।
उद्योगपति विजय मेवाड़ के अनुसार उन्हें हर महीने तकरीबन 4,00,000 रुपए बिजली बिल चुकाना पड़ता था और अब करीब 5,00,000 रुपए का डीजल खरीदना पड़ रहा है। यानी उनके प्रतिष्ठान में उत्पादन लागत बढ़ गई है। उस हिसाब से उन्हें अपने उत्पादन का मूल्य नहीं मिल रहा है और वे घाटे में काम कर रहे हैं।
एक आंकड़े के अनुसार राज्य में प्रतिदिन 25 से 26 सौ मेगावाट बिजली की मांग है, लेकिन इसकी तुलना में लगभग 500 मेगावाट बिजली कम मिल रही है। कम बिजली मिलने की सबसे बड़ी वजह है केंद्रीय उपक्रमों का झारखंड के ऊपर बड़ी रकम का बकाया होना। रांची के कोकर, नामकुम, तुपुदाना, ओरमांझी, नगड़ी सहित कई जगहों पर 2,000 से अधिक उद्योग चल रहे हैं, जिन्हें बिजली संकट की वजह से काफी नुकसान उठाना पड़ रहा है। यह नुकसान हर माह तकरीबन 150 से 160 करोड़ रुपए का बताया जा रहा है। इतना ही नहीं, उद्योग—धंधे में लिप्त लोगों का कहना है कि यही स्थिति रही तो इन उद्योगों में काम करने वाले तकरीबन 60,000 कामगारों के समक्ष भी रोजगार का संकट पैदा हो सकता है।
झारखंड के कई प्रमंडलों की यही स्थिति है। उत्तरी छोटानागपुर के कई इलाकों में दामोदर वैली कॉरपोरेशन (डीवीसी) के माध्यम से बिजली प्रदान किया जाता है, लेकिन यहां भी डीवीसी पर 200 करोड़ रुपए के बकाया होने की वजह से बिजली कटौती की जा रही है। दक्षिणी छोटानागपुर के इलाकों में रांची को छोड़कर लोहरदगा और अन्य इलाकों में 15 घंटे ही बिजली मिल पा रही है। वहीं संथाल परगना प्रमंडल में 250 मेगावाट से अधिक की बिजली की आवश्यकता है, लेकिन यहां भी लगभग 100 मेगावाट बिजली ही मिल पा रही है। इस वजह से देवघर, पाकुड़, गोड्डा, साहिबगंज आदि जिलों में मात्र 14 से 15 घंटे ही बिजली मिल पा रही है। कोल्हान क्षेत्र में भी सरायकेला खरसावां में 12 से 16 घंटे की बिजली मिलती है, जबकि आदित्यपुर औद्योगिक क्षेत्र राज्य का सबसे महत्वपूर्ण क्षेत्र माना जाता है। यहां पर तकरीबन 1000 औद्योगिक इकाइयां हैं। नियमित बिजली न मिल पाने के कारण इन्हें भी करोड़ों का नुकसान उठाना पड़ रहा है।
लघु उद्योग भारती के झारखंड प्रदेश महामंत्री विजय चापरिया ने कहा कि बिजली विभाग जिस तरह से बिजली कटौती कर रहा है उस हिसाब से आने वाले दिनों में कई उद्योग— धंधे बंद हो जाएंगे। आज कई उद्योग करोड़ों रुपए के घाटे में चल रहे हैं। इससे राज्य के राजस्व को भी नुकसान हो रहा है और राज्य के विकास में भी बाधा उत्पन्न हो रही है।
यह तो रही उद्योग—धंधों की बात। अब ठंड बढ़ गई है और इसमें घरेलू बिजली की खपत भी बढ़ गई है। आम लोग भी बिजली कटौती से परेशान हैं।
इस मामले पर भाजपा नेता बाबूलाल मरांडी ने झारखंड सरकार पर निशाना साधते हुए कहा कि जब से हेमंत सोरेन के नेतृत्व में सरकार बनी है लोग तभी से बिजली के लिए तरस रहे हैं। रोजगार देने का वादा करने वाली सरकार अब लोगों की रोजी-रोटी छीनने में लगी है। हेमंत सोरेन बहानेबाजी छोड़ अपनी जिम्मेदारी निभाएं और निर्बाध बिजली आपूर्ति सुनिश्चित करें।
ये सरकार है या सर्कस?
जहां बिजली, पानी, स्वास्थ्य जैसी बुनियादी जरूरतों के लिए भी लोग तरस रहे हैं।
जब से हेमंत सोरेन के नेतृत्व में सरकार बनी है, लोग बिजली के लिए तरस रहे हैं, पिछले एक महीने से तो बिजली का हाल ऐसा है कि कल कारखाने बंद होने के कगार पर है, रोजगार देने का वादा करने— Babulal Marandi (@yourBabulal) November 28, 2022
दस वर्षों से पत्रकारिता में सक्रिय। राजनीति, सामाजिक और सम-सामायिक मुद्दों पर पैनी नजर। कर्मभूमि झारखंड।
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