झारखंड के सबसे बड़े अस्पताल राजेंद्र इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंस (रिम्स) आजकल काफी चर्चा में है। ऐसा इसलिए है क्योंकि हाल के कई मामलों में झारखंड उच्च न्यायालय ने रिम्स प्रशासन और झारखंड सरकार को काफी खरी-खोटी सुनाई है। इसके साथ ही कुछ लोग यह भी कहते हैं कि इस अस्पताल की यह स्थिति हो गई है कि अब इसे खुद ही इलाज की आवश्यकता पड़ रही है।
रिम्स में कुव्यवस्था
एक जानकारी के अनुसार रिम्स में प्रतिदिन जितने मरीज पहुंचते हैं उनमें से आधे मरीजों के इलाज की व्यवस्था सही से नहीं हो पाती है। इलाज के लिए उपयोग में आने वाली मशीनें महीनों तक खराब रहती हैं। इस कारण मरीजों को बाहर निजी संस्थानों में इलाज कराना पड़ता है, जो काफी महंगा साबित होता है। आप यह जानकर दंग रह जाएंगे कि रिम्स में सिर्फ एक एमआरआई मशीन है, वह भी पिछले 3 महीने से खराब है। इस कारण संबंधित मरीजों को बाहर एमआरआई करवाना पड़ता है, जिसका खर्च 7000 से 8000 रुपए तक है। ऐसे में गरीब मरीजों का क्या होता होगा, यह कहने की बात नहीं है। मशीनों के साथ-साथ रिम्स के अंदर चिकित्सक, नर्स, दवाइयां और बेड की भी भारी कमी है। उदाहरण के तौर पर न्यूरो विभाग में मात्र 100 बेड हैं, जबकि वर्तमान में 250 से अधिक मरीज भर्ती हैं। इसके साथ ही उस विभाग में मात्र 5 चिकित्सक हैं। अब आप अन्य विभागों की स्थिति का अंदाजा लगा सकते हैं। बता दें कि रिम्स का निर्माण 60 वर्ष पूर्व हुआ था लेकिन आज झारखंड की आबादी पहले के मुकाबले काफी बढ़ चुकी है। उस हिसाब से यहां पर चिकित्सक, नर्स और दवाइयों की उपलब्धता नहीं हो पाती है।
चिकित्सकों के निजी प्रैक्टिस पर भी उच्च न्यायालय ने लगाई फटकार
इन सबके बाद रिम्स के अंदर कई बार यह देखने को मिला है कि मरीजों का सही से इलाज नहीं हो पा रहा है। इसके पीछे कहा जाता है कि वहां के डॉक्टर निजी प्रैक्टिस करते हैं इसीलिए वे लोग चाहते हैं कि मरीज उनके निजी अस्पताल में आएं और अपना इलाज करवाएं। इस पर भी झारखंड उच्च न्यायालय ने रिम्स प्रशासन और सरकार को फटकार लगाते हुए कहा है कि जब सरकार ने निजी प्रैक्टिस करने पर रोक लगाने के लिए समिति बनाई है तो इसके बाद भी वह समिति आखिर कर क्या रही है। अदालत ने यह भी कहा है कि रिम्स का अध्यक्ष एक ऐसे व्यक्ति को होना चाहिए जिसका पूर्ण नियंत्रण रिम्स की सारी व्यवस्था पर हो।
रिम्स में नियुक्तियों पर भी न्यायालय ने उठाया सवाल
अभी हाल ही में झारखंड सरकार और रिम्स प्रशासन की ओर से 467 चतुर्थवर्गीय पदों पर नियुक्ति की जानी थी, लेकिन यह मामला फंस गया है। इस नियुक्ति के विज्ञापन में कहा गया कि वही लोग आवेदन कर सकते हैं जो झारखंड के नागरिक होंगे। मामला उच्च न्यायालय चला गया और नियुक्ति पत्र देने पर रोक लगा दी गई। उच्च न्यायालय ने फटकार लगाते हुए कहा कि नागरिक कभी भी देश का होता है, राज्य का नहीं। इसके साथ ही न्यायालय ने यह भी पूछा कि किस कानून, परिनियम, सर्कुलर या सरकार के किस आदेश के तहत आवेदन मांगा गया है और सभी पद झारखंड के लोगों के लिए कैसे आरक्षित कर दिया?
सूत्रों से यह भी पता चला है कि कई बार रिम्स में नियुक्तियों के लिए विज्ञापन निकाले जाते हैं लेकिन बड़े-बड़े नेता और रिम्स के बड़े-बड़े अधिकारी पैसे लेकर अपने लोगों की नियुक्ति करवा देते हैं। वहीं जो लोग नौकरी के असल हकदार हैं उनकी बलि चढ़ जाती है। वही लोग अंत में न्यायालय की शरण में जाते हैं जिससे नियुक्ति प्रक्रिया प्रभावित हो जाती है। हाल ही में उच्च न्यायालय ने रिम्स प्रशासन को आदेश दिया था कि रिम्स में सभी नियुक्तियां आउटसोर्सिंग के बजाय नियमित होगी। इसके बाद भी रिम्स प्रशासन ने कई नियुक्तियां आउटसोर्सिंग के माध्यम से निकाली। इस पर भी उच्च न्यायालय ने रिम्स प्रशासन से पूछा है कि उनके खिलाफ अवमानना का मामला क्यों नहीं चलाया जाए?
अब देखना यह है कि आने वाले दिनों में उच्च न्यायालय द्वारा लगाई गई फटकार का सरकार और रिम्स प्रशासन पर कितना असर डालता है। आने वाले दिनों में रिम्स प्रशासन अपनी गलतियों को सुधारता है या एक बार फिर से अदालत को खुद संज्ञान लेना पड़ता है।
दस वर्षों से पत्रकारिता में सक्रिय। राजनीति, सामाजिक और सम-सामायिक मुद्दों पर पैनी नजर। कर्मभूमि झारखंड।
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