पाकिस्तानी फौज के अध्यक्ष पद से विदा होने से ठीक पहले जनरल कमर जावेद बाजवा ने आखिरकार वह सच कबूल कर लिया है जिसे दुनियाभर के रक्षा विशेषज्ञ बताते आ रहे हैं। उन्होंने माना कि दुनिया के देशों में अपनी फौज पर तीर नहीं चलाए जाते जैसे पाकिस्तान में उनकी फौज पर चलाए जाते हैं, उसकी आलोचना की जाती है। जनरल बाजवा ने यह भी खुलकर माना है कि पाकिस्तान में फौज सियासत में दखल देती है। बता दें कि बाजवा 29 नवम्बर को फौज के अध्यक्ष पद से सेवानिवृत्त हो रहे हैं।
यानी जनरल बाजवा ने मान लिया है कि पाकिस्तान का फौजी अमला सियायत में हिस्सेदार रहा है। लेकिन इसके साथ ही चह यह भी कहते हैं कि अब फौज ने फैसला किया है कि वह सियासत में दखल देना बंद कर देगी। दरअसल बाजवा की यह स्वीकारोक्ति शहीद दिवस के कार्यक्रम में उनके भाषण के दौरान आई। बाजवा को इस बात की टीस रही है कि उनकी फौज की पाकिस्तान में जैसी छीछालेदर होती है वैसी दुनिया के किसी देश में उसकी फौज की नहीं होती।
फौज के प्रमुख के नाते संभवत: अपने इस आखिरी भाषण में जनरल बाजवा ने कहा कि कई इलाकों में फौज पर टीका—टिप्पणी की गई और गलत शब्दों का प्रयोग किया गया, जो गलत है। वे कहते हैं कि सियासी दलों और नागरिकों को फौज पर उंगली उठाने का हक है, लेकिन इसके लिए भाषा बहुत ध्यान से प्रयोग की जानी चाहिए।
पाकिस्तान के एक बड़े दैनिक ने अपनी रिपोर्ट में बाजवा को इन शब्दों में उद्धृत किया है—”जल्दी ही मैं फौज से रिटायर हो रहा हूं।…दरअसल शहीद दिवस 1965 के युद्ध में मारे गए सैनिकों के बलिदान के याद के तौर पर हर साल 6 सितंबर को रावलपिंडी में फौज के मुख्यालय में आयोजित होता आया है। लेकिन इस साल बाढ़ में हताहतों के साथ हमदर्दी के तौर पर इस बाद के लिए छोड़ दिया गया था”।
इतना ही नहीं, पद से जा रहे थल सेना प्रमुख जनरल बाजवा ने उस कार्यक्रम में अपने एक बयान से हड़कम्प मचा दिया है कि 1971 की लड़ाई में भारत के सामने सिर्फ 34,000 पाकिस्तानी फौजियों ने हथियार डाले थे। पाकिस्तानी फौज के प्रमुख ने कहा कि पूर्वी पाकिस्तान में संकट फौजी नहीं बल्कि एक सियासी नाकामयाबी थी। उसमें 92,000 नहीं, बल्कि सिर्फ 34,000 फौजी लड़े थे। बाजवा ने कहा कि वे 34,000 लोग 2,50,000 भारतीय फौजियों और लगभग 2 लाख मुक्ति बाहिनी योद्धाओं का मुकाबला कर रहे थे, लेकिन तो भी तमाम दिक्कतों के बावजूद वे बहादुरी से लड़े थे।
टिप्पणियाँ