काशी-तमिल संगमम उत्तर और दक्षिण के साझे मूल्यों व साझी संस्कृति से आम जनमानस को रूबरू करा रहा है। भारत सरकार के शिक्षा मंत्रालय की इस अनूठी पहल में भाषा, साहित्य, प्राचीन ग्रंथों, दर्शन, अध्यात्म, संगीत, नृत्य, नाटक, योग, आयुर्वेद से लेकर हस्तकला, हस्तशिल्प जैसे तमाम अन्य विषयों पर भी संवाद व विमर्श हो रहा है। विभिन्न सांस्कृतिक प्रस्तुतियों ने इस विमर्श को और आगे बढ़ाया। तमिलनाडु से आर सुधाकर के निर्देशन मे कलाकारों ने स्टेज तथा जनता के मध्य आकर कोकलीकट्टई के माध्यम से शिव-पार्वती लीला का प्रदर्शन किया।
कार्यक्रम के मुख्य अतिथि जयंती एस. रवि (आईएएस), सचिव, ऑरोविले फाउंडेशन, पुदुच्चेरी, ने कहा कि काशी तमिल संगमम उत्तर और दक्षिण की संस्कृतियों के बीच एक सेतु का कार्य कर रहा है। हिन्दी व तमिल भाषाओं में अपने संबोधन में उन्होंने महामना की बगिया काशी हिन्दू विश्वविद्यालय का आभार व्यक्त करते हुए कहा कि बीएचयू में इन दो महान संस्कृतियों के संगम के आयोजन का महान कार्य बखूबी हो रहा है।
सांस्कृतिक प्रस्तुतियों में निवेदिता स्कूल, वाराणसी, की छात्राओं ने सुजाता गुप्ता के निर्देशन मे कजरी गीत “पिया मेहंदी मंगा द मोतिझील से ” तथा अन्य लोकगीतों का गायन प्रस्तुत किया। उत्तर प्रदेश की इस लोकविधा को सावन के महीने में विशेष रूप से गाया जाता है। तमिलनाडु की नीलगिरी पहाड़ियों से आये टोडा जनजातीय समाज के कलाकारों ने जनजातीय गायन प्रस्तुत किया। अपनी प्रस्तुति का समापन कलाकारों ने वन्देमातरम के साथ किया।
शहनाई ढोलल व नृत्य के माध्यम से किये गए इस प्रस्तुतिकरण से सभी दर्शक झूम उठे। इसके अलावा बालागुरुनाथन के निर्देशन मे नाट्य मंजरी पर भारतनाट्यम का प्रदर्शन किया गया, साथ ही साथ जी मणिकन्दन की टीम द्वारा पम्बईवाद्यम का प्रदर्शन किया गया। कार्यक्रम की समाप्ति करुणकुली श्री आर. गणेशन द्वारा तमिल लोक गीतों के द्वारा भगवान शिव की आराधना से की गयी।
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