श्रद्धा की हत्या पर चुनिंदा चुप्पी

श्रद्धा की हत्या शैतानी कुकर्म की एक ऐतिहासिक घटना होने के साथ-साथ इस बात का प्रमाण भी है कि भारत जैसे लोकतांत्रिक देश में वोट बैंक की राजनीति है, इसलिए मजहबी आधार पर चयनित घटना का ही विरोध किया जाता है।

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फिरोज बख्त अहमद

एक कट्टरपंथी मुस्लिम द्वारा हिंदू युवती की निर्मम हत्या पर सेकुलर, कांग्रेसी, वामपंथी धड़ा चुप है।  अवार्ड वापसी गैंग, लुटियन गैंग, मोमबत्ती गैंग, खान मार्केट गैंग, जेएनयू गैंग की यह चुनिंदा चुप्पी खतरनाक है

आफताब पूनावाला द्वारा श्रद्धा की निर्मम और विचलित करने वाली हत्या पर पूरे देश में उबाल है। लेकिन जैसा अक्सर होता आया है, एक चुनिंदा वर्ग और समुदाय में सन्नाटा है। श्रद्धा की हत्या शैतानी कुकर्म की एक ऐतिहासिक घटना होने के साथ-साथ इस बात का प्रमाण भी है कि भारत जैसे लोकतांत्रिक देश में वोट बैंक की राजनीति है, इसलिए मजहबी आधार पर चयनित घटना का ही विरोध किया जाता है।

बीते कुछ वर्षों के दौरान देशवासियों ने देखा है कि किस प्रकार से अवार्ड वापसी गैंग, लुटियन गैंग, मोमबत्ती गैंग, खान मार्केट गैंग, जेएनयू गैंग सड़क पर उतर आते हैं। शाहीन बाग में दादियां आदि सड़क जाम, चक्का जाम कर देती हैं, लेकिन आज सब के सब नदारद हैं।

कांग्रेसी, वामपंथी, सपा, बसपा, तृणमूल कांग्रेस के नेता कहां हैं? कहां हैं ओवैसी बंधु, तौकीर रजा खान और जामिया मिल्लिया इस्लामिया के छात्र? कहां हैं वे जालीदार टोपियां जो समय-समय पर सरकार के विरुद्ध सड़क पर उतरती हैं? क्यों सबको सांप सूंघ गया है? क्या श्रद्धा उनकी बहन-बेटी नहीं थी?

आफताब से पहले फरीदाबाद में तौसीफ ने दिन-दहाड़े निकिता तोमर, शाहरुख और नईम ने दुमका व रांची में 12वीं कक्षा की छात्रा की हत्या की थी। इसी तरह, दक्षिण में अशरीन सुल्ताना ने एक हिंदू युवक बी. नागराजू से विवाह किया था, लेकिन बाद में उसके भाई ने नागराजू की हत्या कर दी थी। ये कैसे मुसलमान हैं? क्या यही इस्लाम है?

सच्चाई तो यह है कि न तो ये सच्चे मुसलमान हैं और न ही यह सच्चा इस्लाम है। ये सब इस्लाम और मुसलमानों के नाम पर धब्बा हैं। यह भी एक सच्चाई है कि न तो ऐसे लोग इस्लाम को जानना-समझना चाहते हैं, न ही कुरान या हदीस पढ़कर उसे समझना चाहते हैं, बल्कि किसी कट्टरपंथी मुल्ला-मौलवी की तकरीर और उसके आचरण को ही सर्वोपरि मानते हैं।

 

लव-जिहाद रोकने या मदरसों को आधुनिक बनाने की दिशा में उत्तर प्रदेश, असम और मध्य प्रदेश की सरकारें भी प्रयास कर रही हैं। जरूरत है कि मुस्लिम समुदाय के बच्चे कुरान की वास्तविक शिक्षा के साथ-साथ आधुनिक शिक्षा ग्रहण करें, ताकि वे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सपनों का भारत बनाने में अपना योगदान दे सके। हदीस भी कहती है, ‘हुब्बूल वतनी निसफुल ईमान’ यानी आधा ईमान राष्ट्रभक्ति होता है।

जाने-माने शिक्षा व भाषाविद् डॉ. प्रदीप कुमार जैन कहते हैं कि जिस तरह बकरे और मुर्गी को काटा जाता है, आफताब ने उसी निर्ममता से श्रद्धा की काटकर हत्या की। बचपन से उसने यही सब देखा-सीखा और घटना को अंजाम दिया। चाहे आफताब हो, तौसीफ हो या कफील, जो 2007 में गाड़ी में विस्फोटक लेकर ग्लासगो हवाईअड्डे में घुस गया था, हिंदू लड़कियों या बेगुनाह लोगों की हत्या कर रहा है। समस्या यह है कि शिक्षित मुस्लिम युवाओं तक इस्लाम का संदेश ही नहीं पहुंच रहा है। इसके कारण इस्लाम और मुसलमान, दोनों की साख को बट्टा लग रहा है। इस्लाम में एक निरपराध व्यक्ति की हत्या का मतलब है पूरी मानवता की हत्या!

8वीं सदी में प्रसिद्ध इमाम घजाली गजाली ने कुछ आतंकी घटनाओं को देखकर कहा था, ‘‘यदि यदि मुसलमान आतंकवाद को समाप्त नहीं करेंगे तो आतंकवाद उन्हें समाप्त कर देगा।’’ लेकिन इस बात पर किसी ने ध्यान नहीं दिया। इस प्रकार की हिंसक और आपराधिक घटनाओं से इस्लाम और मुसलमान बदनाम हो रहे हैं, भले ही वे संस्कारी और राष्ट्रवादी क्यों न हों।

जहां तक लव-जिहाद का संबंध है, 90 प्रतिशत मामलों में देखा गया है कि एक मुस्लिम युवक द्वारा किसी गैर-मुस्लिम लड़की से निकाह के बाद लड़का या उसके परिजन लड़की पर कन्वर्जन के लिए दबाव डालते हैं। यह सरासर गैर-इनसानी और गैरकुदरती है। जबरन कन्वर्जन पर रोक लगनी चाहिए।

कुल मिलाकर मुसलमानों को कट्टरता की जंजीरें तोड़नी होंगी। लव-जिहाद रोकने या मदरसों को आधुनिक बनाने की दिशा में उत्तर प्रदेश, असम और मध्य प्रदेश की सरकारें भी प्रयास कर रही हैं। जरूरत है कि मुस्लिम समुदाय के बच्चे कुरान की वास्तविक शिक्षा के साथ-साथ आधुनिक शिक्षा ग्रहण करें, ताकि वे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सपनों का भारत बनाने में अपना योगदान दे सके। हदीस भी कहती है, ‘हुब्बूल वतनी निसफुल ईमान’ यानी आधा ईमान राष्ट्रभक्ति होता है।
(लेखक मौलाना आजाद राष्ट्रीय उर्दू विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति हैं)

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