नवंबर, 1984 में दिल्ली में सिखों को चुन-चुन कर मारा जा रहा था। कांग्रेस सरकार बदले की भावना से काम कर रही थी, कांग्रेसी नेताओं ने लोगों को उकसाया
आज न्यायमूर्ति एस.एन. ढींगरा जो बात कह रहे हैं, वही बात हम पिछले 38 साल से कहते आ रहे हैं। यह बात स्पष्ट है कि 1984 में देश के तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने ही सिखों के कत्लेआम की खुली छूट दी थी। इंदिरा गांधी की हत्या के बाद सिखों के विरुद्ध कत्लेआम शुरू हुआ तो राजीव गांधी ने कहा, ‘‘जब कोई बड़ा पेड़ गिरता है तो धरती हिलती-डोलती है।’’
इसके जरिए उन्होंने एक संदेश दिया और जिनके लिए दिया, वे बेखौफ मार-काट करने लगे। इस मामले को लेकर मैं लंबे समय से लड़ता रहा हूं। यह भी देखा गया कि जो पीड़ित परिवार न्याय के लिए अदालत पहुंचे, उनका और उत्पीड़न किया गया। उनमें से अधिकांश लोग डर गए, पीछे हट गए। लेकिन बहुत-से लोग ऐसे भी थे जो अड़े रहे, लेकिन उन्हें भी न्याय नहीं मिला और गुनहगार बचते रहे।
इस हालात में कत्ल करने वाले की पहचान कैसे होती। न तो पुलिस उनकी पहचान करना चाहती थी और न ही न्यायालय उनके खिलाफ कार्रवाई करना चाहता था। मीडिया उस समय आजाद नहीं था, क्योंकि उस समय सीमित चैनल थे। न्यायमूर्ति रंगनाथ मिश्र चाह कर भी कई चीजों को छुपा नहीं सकते थे। सच, सच होता है। उन्होंने कहा कि साक्ष्य हैं, मुकदमे दर्ज होने चाहिए। वे चाहते तो मुकदमे दर्ज करवा सकते थे, लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया। कह सकते हैं कि उन पर सरकार का दबाव और डर था।
2014 में राजग की सरकार बनते ही एसआईटी का गठन किया गया। इसके बाद सज्जन कुमार अंदर गया। 38 साल बाद कानपुर कत्लेआम के 70 लोग अंदर हुए हैं। पिछले दिनों पटियाला हाउस कोर्ट ने दो लोगों को मौत की सजा सुनाई है। इसलिए अब न्याय की उम्मीद जगी है
इंदिरा गांधी की हत्या के बाद राजीव गांधी दिल्ली पहुंचते हैं। शोर मचना शुरू हो जाता है-‘खून का बदला खून।’ राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह एम्स पहुंचते हैं। उनकी गाड़ी के ऊपर पत्थर मारे जाते हैं। उन्हें वहां से भगाया जाता है। यह सब केवल इसलिए हुआ कि वे सिख थे। यहीं से संकेत मिलता है कि गांधी परिवार क्या चाहता था। गांधी परिवार की तरफ से पुलिस-प्रशासन को निर्देश दिया गया। मतदाता सूची लेकर सिखों के घरों की पहचान की गई। सज्जन कुमार, जगदीश टाइटलर, एचकेएल भगत, कमलनाथ जैसे नेताओं ने लोगों को उकसाया।
ट्रेन भरकर उत्तर प्रदेश से लोगों को बुलाया गया। अचानक केमिकल आ जाता है। फिर कत्लेआम शुरू हुआ। कहीं किसी पुलिस वाले को लगा कि यह तो अत्याचार हो रहा है, तो उसे भी मार दिया गया। एक पुलिस वाले ने कहा था, ‘‘जब मैं सीपी के कमरे में गया तो जगदीश टाइटलर जोर-जोर से चिल्ला रहे थे, कैसे मेरे आदमी को बंद कर दिया?’’ कत्लेआम को देखते हुए आई. के. गुजराल, पतबंत सिंह जैसे लोग तत्कालीन गृह मंत्री पी.वी. नरसिंहाराव के पास गए। सेना दिल्ली छावनी में बैठी है, लेकिन कहा जाता है कि यहां-वहां से मंगाई जा रही है।
कह सकते हैं कि जवाहरलाल नेहरू से लेकर इंदिरा गांधी तक ने उसी प्रकार शासन चलाया, जिस प्रकार औरंगजेब ने चलाया था। औरंगजेब इस भावना के साथ काम करता था कि हम जो चाहें कर सकते हैं। वही सोच इनमें भी थी। इनके अंदर बदले की ज्वाला इस तरह थी कि हमें कोई कैसे बोल सकता है। अगर कोई बोला तो उसको इमरजेंसी के अंदर जेलों में डाल दिया।
मेरे खिलाफ कोई बोला तो बोला कैसे। यही स्थिति राजीव गांधी की भी थी। जब इंदिरा गांधी की हत्या हुई तो गांधी परिवार को लगा कि हमें सिखों को सबक सिखाना है। इसी तरह औरंगजेब के मन में, मियां मीर के मन में आया था। मीर ने कहा था कि हम सिखों को खत्म कर देंगे। टीपू सुल्तान ने कहा था कि कर्नाटक में हिंदुओं कीचार पीढ़ियों को खत्म कर दो। ऐसा तभी होता है जब लगता है कि किसी को खत्म करके ही अपनी सल्तनत को कायम रखा जा सकता है। यही हाल गांधी परिवार का था।
2014 में राजग की सरकार बनते ही एसआईटी का गठन किया गया। इसके बाद सज्जन कुमार अंदर गया। 38 साल बाद कानपुर कत्लेआम के 70 लोग अंदर हुए हैं। पिछले दिनों पटियाला हाउस कोर्ट ने दो लोगों को मौत की सजा सुनाई है। इसलिए अब न्याय की उम्मीद जगी है।
(राज चावला से बातचीत के आधार पर)
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