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राजनीति की रक्तरंजित राह पर कांग्रेस

दो खबरें आई हैं। एक है, 1984 के सिख नरसंहार पर न्यायमूर्ति एस.एन. ढींगरा नीत एसआईटी की संक्षिप्त रिपोर्ट को सर्वोच्च न्यायालय ने रिकॉर्ड में ले लिया है। दूसरी, 1991 के राजीव हत्याकांड में सजायाफ्ता नलिनी श्रीहरन और आर.पी. रविचंद्रन समेत छह दोषियों की रिहाई का आदेश

हितेश शंकर by हितेश शंकर
Nov 21, 2022, 05:11 pm IST
in भारत, सम्पादकीय, दिल्ली
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https://panchjanya.com/wp-content/uploads/speaker/post-257977.mp3?cb=1669031119.mp3

एसआईटी रिपोर्ट बताती है कि सिख विरोधी दंगों में मामले दर्ज करने में पुलिस ने उदासीनता बरती। राजीव हत्याकांड के मामले में सोनिया गांधी दोषियों की रिहाई के पक्ष में और कांग्रेस विरोध दर्ज कर रही है

 

हाल में दो खबरें आई हैं। एक है, 1984 के सिख नरसंहार पर न्यायमूर्ति एस.एन. ढींगरा नीत एसआईटी की संक्षिप्त रिपोर्ट को सर्वोच्च न्यायालय ने रिकॉर्ड में ले लिया है। दूसरी, 1991 के राजीव हत्याकांड में सजायाफ्ता नलिनी श्रीहरन और आर.पी. रविचंद्रन समेत छह दोषियों की रिहाई का आदेश। एसआईटी रिपोर्ट बताती है कि सिख विरोधी दंगों में मामले दर्ज करने में पुलिस ने उदासीनता बरती। राजीव हत्याकांड के मामले में सोनिया गांधी दोषियों की रिहाई के पक्ष में और कांग्रेस विरोध दर्ज कर रही है। यह वही कांग्रेस है जो रिहाई समर्थक दल के साथ तमिलनाडु में सत्ता भोगती है। ये उलटबांसी क्या है? किसकी आंखों में धूल झोंकी जा रही है?

चितपावनों का नरसंहार
कांग्रेस ऐसे जघन्य कांडों का उपयोग सत्ता के लिए प्रारंभ से ही करती रही है। स्वतंत्रता प्राप्ति के तत्काल बाद महात्मा गांधी की हत्या हुई। बेहद दुर्भाग्यपूर्ण घटना थी। परंतु कांग्रेस ने उसे राजनीति के औजार के रूप में लपक लिया। सुरक्षा में ढिलाई से लेकर तीसरी गोली तक, कई प्रश्न उठे। परंतु कांग्रेस के लिए सच जानना महत्वपूर्ण नहीं था। फलत:, अहिंसा के पुजारी की हत्या के बाद उनके अनुयायियों ने देशभर में हिंसा प्रारंभ कर दी। जगह-जगह हिंदूवादियों को मारा जाने लगा। 31 जनवरी से लेकर 3 फरवरी तक पुणे में चितपावन ब्राह्मणों के खिलाफ हिंसा का जबरदस्त नंगा नाच चला। ये हिंसा और फैली। सांगली, कोल्हापुर, सतारा तक सैकड़ों लोग मारे गए, हजारों घरों-दुकानों को आग लगा दी गई, स्त्रियों से दुष्कर्म हुए।

हत्याकांड की आड़ में कांग्रेस राजनीतिक विरोधियों को निपटाने में जुट गई। हत्याकांड से कोई कड़ी न जुड़ने पर भी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पर प्रतिबंध लगाया। संघ से जुड़े नेताओं को घेरा। यहां तक संघ से जुड़े पंडित दीनदयाल उपाध्याय द्वारा एक पखवाड़े पूर्व प्रारंभ साप्ताहिक पत्र पाञ्चजन्य को भी निशाने पर लिया गया। न्यायालय द्वारा संघ पर से सभी संदेहों, आरोपों को नकारे जाने के बावजूद कांग्रेस आज भी राजनीतिक औजार के तौर पर उक्त हत्याकांड का उपयोग करती है।

गौभक्तों का नरसंहार
कांग्रेस का यह हिंदू विरोधी रुख और सत्ता के लिए रक्तरंजित राह पर चलने की आदत 1966 में गौहत्या विरोधई आंदोलन में भी दिखी। संविधान के अनुच्छेद 48 में गौहत्या पर रोक लगाना राज्य का काम है। इसी मांग को लेकर करपात्री जी महाराज के नेतृत्व में हजारों साधुओं ने 7 नवंबर, 1966 को संसद के सामने प्रदर्शन किया। इंदिरा गांधी सरकार को कानून बनाना था। सरकार ने कानून बनाने की मांगकर्ताओं पर गोली चलवा दी। कई साधु मारे गए। सरकार ने कानून बनाने के बजाय निहत्थे साधुओं के नरसंहार का विकल्प क्यों चुना? इसका उत्तर इस प्रश्न में है कि यह कानून बनाने से कौन लोग, समुदाय प्रभावित होते? तुष्टीकरण की कांग्रेस सरकार की नीति 1986 में शाहबानो मामले में सर्वोच्च न्यायालय तक के निर्णय को पलटने तक चली गई।

कांग्रेस को सोचना पड़ेगा कि समाज, देश ऊपर है या राजनीतिक लाभ। समाज को बांट कर, समाज के ऊपर वोटबैंक को तुष्ट करने से समाज बिखरेगा, जुड़ेगा नहीं। 74 वर्षों का इतिहास सामने है। रक्तपात पर आधारित राजनीतिक लाभ दीर्घकाल तक नहीं रहने वाला। खामियाजा भुगतना पड़ता है। कांग्रेस भुगत रही है, परंतु आज भी सुधार नहीं दिख रहा। कांग्रेस को सोचना पड़ेगा कि यह नीति उसे कहां ले जाएगी।

सिख नरसंहार
कांग्रेस ने इंदिरा गांधी की हत्या को भी राजनीतिक लाभ का औजार बना दिया। इंदिरा जी की हत्या के बाद 1984 में देश में भड़के सिख विरोधी दंगों में हमलावर कौन थे? वे हिंदू नहीं थे। वे कांग्रेसी गुंडे थे। तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने कार्रवाई के बजाय कहा कि ‘जब कोई बड़ा पेड़ गिरता है तो धरती थोड़ी-बहुत हिलती है।’ सिख नरसंहार से कांग्रेस को कोई फर्क नहीं पड़ा कि कितनी जिंदगियां तबाह हुईं, कितनी महिलाओं की मांग उजड़ गई, कितने बच्चे अनाथ हो गए।

जब इस सिख नरसंहार के दुष्परिणाम कांग्रेस को झेलने पड़े तो भी कांग्रेस ने पश्चाताप के बजाय एक सिख डॉ. मनमोहन सिंह को कठपुतली प्रधानमंत्री बनाकर राजनीतिक लाभ उठाने की कोशिश की। डॉ. सिंह के मीडिया सलाहकार रहे संजय बारू की पुस्तक ऐन एक्सीडेंटल प्राइम मिनिस्टर में ब्योरा है कि उन्हें प्रधानमंत्री बनाकर गांधी परिवार कैसे सत्ता को नियंत्रित करता रहा।

सिखों के घाव नहीं भरे। अभी नवंबर में इंदौर के खालसा कॉलेज में गुरु नानकदेव के प्रकाश पर्व पर कांग्रेस नेता कमलनाथ को सरोपा भेंट करने से सिख समाज आहत है। यह घावों पर नमक छिड़कने के अलावा क्या है? पंजाब के कीर्तनकार मनप्रीत सिंह कानपुरी ने अपना क्षोभ इस तरह जताया कि गुनहगार को सम्मानित करोगे तो कभी इंदौर नहीं आऊंगा। इन्हीं कमलनाथ ने एक मंदिर और हिन्दू देवता के आकार का केक काटा। वह क्या संदेश देना चाहते हैं?

कांग्रेस ने वायनाड में राहुल गांधी की जीत के बाद राजनीतिक हत्याओं के लिए ख्यात केरल को अपना नया गढ़ बनाया है। अब कांग्रेस ने राजनीतिक लाभ के लिए मुस्लिम लीग की राजनीतिक जमीन अपने नाम कराने की योजना बनाई है। इससे केरल में एक नई रक्तरंजित राजनीति शुरू हो रही है।

कांग्रेस को सोचना पड़ेगा कि समाज, देश ऊपर है या राजनीतिक लाभ। समाज को बांट कर, समाज के ऊपर वोटबैंक को तुष्ट करने से समाज बिखरेगा, जुड़ेगा नहीं। 74 वर्षों का इतिहास सामने है। रक्तपात पर आधारित राजनीतिक लाभ दीर्घकाल तक नहीं रहने वाला। खामियाजा भुगतना पड़ता है। कांग्रेस भुगत रही है, परंतु आज भी सुधार नहीं दिख रहा। कांग्रेस को सोचना पड़ेगा कि यह नीति उसे कहां ले जाएगी।

@hiteshshankar

Topics: 1991 के राजीव हत्याकांडSupreme Courtगौभक्तों का नरसंहार1984 Sikh Massacreसिख नरसंहार1991 Rajiv Massacreमहात्मा गांधी की हत्याMassacre of Cow Bhaktsहत्याकांड की आड़ में कांग्रेस राजनीतिकSikh Genocideहिंदू विरोधी रुखMahatma Gandhi's Assassinationसत्ता के लिए रक्तरंजित राहCongress Political in Cover of MassacreAnti-Hindu StanceBloody Road to Power1984 के सिख नरसंहारसर्वोच्च न्यायालय
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