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सेल्युलर जेल पहुंचने के 11वें दिन दिनांक 15 जुलाई 1911 को 6 महीने के लिए कोठरी में बंदी की सजा जो 15 जनवरी 1912 में समाप्त हुई
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11 जून 1912 को कागज मिलने के बाद 1 माह के एकांतवास की सजा
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19 सितंबर 1912 को दूसरे का लिखा कागज मिलने के बाद 7 दिन तक खड़ी हाथबेड़ी की सजा
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23 नवंबर 1912 को उनके पास दूसरे का लिखा पत्र मिलनेके बाद 1 माह एकांतवास की सजा
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30 दिसंबर 1912 से 2 जनवरी 1913 तक जेल में भूख हड़ताल
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16 नवंबर 1913 को काम करने से मना करने पर 1 महीने कोठरी में कैद
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8 जून 1914 काम करने से मना करने पर 7 दिन तक हाथ बेड़ियां पहनकर खड़े रहने की सजा
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16 जून 1914 को काम करने से फिर मना करने पर 4 पहीने तक जंजीरों में कैद
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18 जून 1915 को काम करने से नकारने पर 10 दिन बेड़ियां पहनकर खड़े रहने की सजा
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शेष…
ये वो कुछ सजाएं हैं जो 50 साल की सजा पाए वीर विनायक दामोदर सावरकर ने अंडमान की सेल्युलर जेल में भुगती। सावरकर अपने जीवन के 27 साल 1910 से लेकर 1937 तक सेल्युलर जेल या अंग्रेजों की सख्त नजरबंदी में रहे। 1937 के बाद 1942 तक मात्र 5 साल वो हिन्दू महासभा के अध्यक्ष रहे और खराब स्वास्थ्य के कारण 1942 में पहले हिन्दू महासभा अध्यक्ष पद से मुक्त हुए और फिर 1946 में सार्वजनिक जीवन में भी सक्रिए नहीं रहे। लेकिन 27 साल की कैद और केवल पांच साल के राजनीतिक जीवन के बाद भी सावरकर आज उतने ही प्रसांगिक हैं जितने वो शायद अपने जीवन काल में भी नहीं थे।
वंदे मातरम् के रचियता बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय के उपन्यास आनंदमठ और बाद में बंगाल के प्रख्यात विद्धान चंद्रनाथ बसु द्वारा 1892 में लिखे गए “हिन्दू प्राकृत इतिहास’ में “हिन्दुत्व” शब्द का सबसे पहले प्रयोग किया गया था। सावरकर ने इस शब्द को आधार बनाकर अपनी पुस्तक हिन्दुत्व लिखी। आज हिन्दुत्व शब्द या विचारधारा को विरोधी विचार के तौर पर देखने वाली सभी राजनीतिक पार्टियों के लिए बंकिम या चंद्रनाथ आलोचना के पात्र नहीं हैं क्योंकि वामपंथी और कांग्रेसी सत्ता ने बंगाल के जीवन चरित्र को ही बदलकर रख दिया गया। बंगाल से उन्हें राजनीतिक चुनौती का आज से पहले कभी अनुभव नहीं हुआ है लेकिन शेष भारत में आज जो कांग्रेस सेक्युलरिज्म के सामने हिन्दुत्व की सामूहिक शक्ति खड़ी हो रही है, उससे मिल रही लगातर पराजय की खीज वीर सावरकर के नाम पर निकाली जा रही है। जैसे कि स्वयं सावरकर ने कहा था कि उनके विचार 50 साल बाद देश को समझ आएंगे।
नेता या क्रांतिकारी से आप सहमत और असहमत हो सकते हैं। इतिहास ऐसे उदाहरणों से भरा पड़ा है लेकिन वैचारिक भिन्नता को अपमान और उपहास तक ले जाने का काम जो सावरकर के लिए किया जा रहा है वो किसी भी दूसरे महापुरुष के साथ नहीं किया गया। लेकिन आने वाले दिनों में ज्यों ज्यों हिन्दुत्व का प्रभाव बढ़ता जाएगा सावरकर के लिए कांग्रेस का गुस्सा भी बढ़ता ही जाएगा। |
विश्व के किसी भी अन्य स्वतंत्रता सेनानी को ऐसा तिरस्कार, उपहास और अपशब्द नहीं मिले होंगे जो कांग्रेस और कांग्रेस समर्थित दल सावरकर के प्रति दिन रात निकालते हैं। अपने हर नेता को देश पर महापुरुष के तौर पर देश पर थोप देने वाली कांग्रेस रोज सावरकर के प्रति सिर्फ इसलिए अपमाननजक भाषा बोलती है क्योंकि वो विरोधी विचार के थे। सावरकर पर 1937 में सबसे पहले द्विराष्ट्रवाद की बात करने का मिथ्या आरोप लगाया जाता है जबकि 1932 के गोलमेज सम्मेलन में रहमत अली “अभी नहीं तो कभी नहीं” लिखकर Pakistan Declaration के पर्चे बांट रहे थे। इससे पहले उत्तरपाड़ा के अभिभाषण के अंत में महर्षि अरबिंदों ने सनातन धर्म को ही अपनी राष्ट्रीयता बताया था या सर सैयद उससे भी पहले अलग इस्लामिक राष्ट्र की बात कर चुके थे लेकिन क्योंकि ये सब लोग राजनीतिक चुनौती नहीं है इसलिए सावरकर के नाम पर झूठ मढ़ दिया जाता है।
ऐसे ही सावरकर की कथित माफीनामे पर बात की जाती है जबकि सच्चाई ये है कि पूरे अंग्रेजी कालखंड में अगर सबसे कठोरतम सजा अंग्रेजों ने किसी को दी हैं तो वो सावरकर बंधु हैं जिन्हें 25 साल और 50 साल काला पानी की सजा थी। जब कांग्रेस के नेता गोलमेज सम्मेलन में हिस्सा लेने लंदन जाया करते थे तब सावरकर रत्नागिरी में नजरबंदी काट रहे थे और उन्हें रात्नागिरी शहर से एक कदम भी बाहर रखने की इजाजत नहीं थी। जब गांधी जी के ‘बम की पूजा’ लेख के जवाब में क्रांतिकारी ‘बम का दर्शन’ लिख रहे थे तब सावरकर भगत सिंह, राजगुरू और सुखदेव के बलिदान पर अंग्रेजों से छिपकर अपनी सुप्रसिद्ध कविता लिख रहे थे जो पुणे और महाराष्ट्र के दूसरे हिस्सों में प्रभात फेरियों में गाई जाती थी।
किसी भी नेता या क्रांतिकारी से आप सहमत और असहमत हो सकते हैं। इतिहास ऐसे उदाहरणों से भरा पड़ा है लेकिन वैचारिक भिन्नता को अपमान और उपहास तक ले जाने का काम जो सावरकर के लिए किया जा रहा है वो किसी भी दूसरे महापुरुष के साथ नहीं किया गया। लेकिन आने वाले दिनों में ज्यों ज्यों हिन्दुत्व का प्रभाव बढ़ता जाएगा सावरकर के लिए कांग्रेस का गुस्सा भी बढ़ता ही जाएगा।
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