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होम भारत

श्रद्धेय अशोक सिंहल जी ने जब दिया अपना परिचय

"तुमने जमीन में पड़ी दो-चार इंच चौड़ी दरारें देखीं होंगी, किंतु हिंदू समाज में इतनी चौड़ी दरारें पड़ गई हैं जिनमें हाथी चला जाए"

WEB DESK by WEB DESK
Nov 17, 2022, 08:27 pm IST
in भारत, संघ, श्रद्धांजलि
श्री अशोक सिंहल जी (फाइल फोटो)

श्री अशोक सिंहल जी (फाइल फोटो)

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https://panchjanya.com/wp-content/uploads/speaker/post-257624.mp3?cb=1668697049.mp3

रामजन्मभूमि आंदोलन के सूत्रधार श्री अशोक सिंहल जी का जीवन कर्मज्ञान एवं भक्ति का अदभुत समन्वय था। उनके जीवन पर तीन महापुरुषों का बहुत गहरा प्रभाव था, जिसका वह यदा-कदा उल्लेख किया करते, अपितु उनके संपूर्ण जीवन पर गहराई से दृष्टि डालने पर इन महापुरुषों की स्पष्ट छाप दिखाई पड़ती है।

इनमें प्रथम महापुरुष हैं राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के द्वितीय सरसंघचालक श्रीगुरुजी। अपने संस्मरण में वे सुनाया करते थे कि एक बार वह अपने कानपुर के कार्यकाल में इटावा के सुदूर ग्रामीण क्षेत्र में एक संत से मिलने गए। उन्होंने परिचय पूछा तब अशोक जी को लगा कि शायद महात्मा राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के विषय में न जानते हों, इसलिए उन्होंने कहा कि एक महात्मा हैं गोलवलकर जी, मैं उनका अनुयायी हूं। उन महात्मा ने तुरंत प्रश्न पूछा तुम जानते हो गोलवलकर क्या कर रहे हैं ? अशोक जी ने कहा, महाराज जी आप ही मार्गदर्शन करने की कृपा करें।

उन महात्मा ने जो उत्तर दिया वही अशोक जी के जीवन का केंद्र बिंदु बन गया। उन्होंने कहा, तुमने जमीन में पड़ी दो-चार इंच चौड़ी दरारें देखीं होंगी, किंतु हिंदू समाज में इतनी चौड़ी दरारें पड़ गई हैं जिनमें हाथी चला जाए। गोलवलकर उन्हीं दरारों को भरने का कार्य कर रहे हैं। तुम पुण्यात्मा हो जो उनके साथ लगे हो। अशोक जी ने इसको अपना ध्येय बनाया और विश्व हिंदू परिषद में आने के बाद धर्म संसद एवं श्रीराम जन्मभूमि आंदोलन के माध्यम से संपूर्ण देश के साधु—संतों और हिंदू समाज को संगठित करने का महती कार्य किया।

उनके जीवन को प्रभावित करने वाले दूसरे व्यक्ति थे उनके गुरुदेव श्रीरामचंद्र तिवारी जी। जो वेदों के साधक थे और जिनकी प्रेरणा से अशोक जी के जीवन में संघ के समाज संगठन एवं राष्ट्रजागरण के प्रत्यक्ष कार्य के साथ अध्यात्म की एक आंतरिक धारा भी प्रभावित हो चली, जिसका समन्वय उनके जीवन की अंतिम सांस तक बना रहा।

अशोक जी का जीवन जितना आंदोलनात्मक था उतना ही संरचनात्मक भी था जो उनके बहुआयामी कार्यों से प्रकट होता है। गंगारक्षा, गोरक्षा, अस्पृश्यता निवारण, शिक्षा, स्वास्थ्य संबंधित सेवाकार्य की प्रेरणा, संघ कार्य के साथ ही उस काशी हिंदू विश्वविद्यालय से उन्हें प्राप्त हुई थी जहां पर उन्होंने शिक्षा प्राप्त की। जिसके अधिष्ठाता महामना पंडित मदनमोहन मालवीय जी ने स्वयं इन सभी विषयों पर चिंतन एवं कार्य किया था।

सनातनी, आर्यसमाजी, सिख, बौद्ध और जैन सभी को अपनी—अपनी परंपराओं का पालन करते हुए परस्पर प्रेम और आदर से गूंथने का जो महान कार्य अशोक जी के द्वारा किया गया वह अद्वितीय है। समाज में कोई भी अछूता नहीं है, सब ही भारत माता के सहोदर पुत्र हैं। अशोक जी ने इसे साकार कर दिखाया। उनके जीवन के व्यक्तित्व का यह अदभुत कौशल था कि देश के शीर्षस्थ, संत महात्मा काशी के डोम राजा के घर सहभोज में सम्मिलित हुए।

अशोक जी का जीवन समाज एवं भारत के स्वर्णिम भविष्य के लिए एक प्रकाश स्तंभ है। अंत समय तक उनका सतत सक्रिय जीवन प्रत्येक राष्ट्रभक्त के लिए प्रेरणा स्रोत है। वह श्रीगुरुजी का संस्मरण सुनाते हुए कहा करते थे कि कार्यकर्ता केवल चिता पर विश्राम करता है और उन्होंने अपने जीवन में इसे चरितार्थ कर दिखाया। 17 नवंबर 2015 को शरीर छोड़ने के तीन दिन पूर्व तक एक अनथक कर्मयोगी की तरह वह मां भारती की सेवा में सक्रिय रहे। ऐसे महापुरुष की पुण्य तिथि पर सादर नमन।

Topics: रामजन्मभूमि आंदोलनसरसंघचालक श्रीगुरुजीगोलवलकर जीराष्ट्रीय स्वयंसेवक संघRashtriya Swayamsevak Sanghअशोक सिंहलAshok Sinhal jiintroductionRamjanmabhoomi movementSarsanghchalak Shri GurujiGolwalkar ji
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