हालत कितनी गंभीर हो चुकी है, इसका पता ‘लोकल सर्किल’ के सर्वेक्षण से चलता है। सर्वेक्षण में 19,000 प्रतिभागियों में से 18 प्रतिशत लोग प्रदूषण संबंधित बीमारियों के सिलसिले में डॉक्टर से मिल चुके थे। 80 प्रतिशत परिवारों का कम से कम एक सदस्य जहरीली हवा का शिकार
पूरी दिल्ली अक्तूबर के चौथे सप्ताह से ही जहरीली हवा की चपेट में रही। राजधानी के तमाम इलाके दीपावली से एक दिन पहले से ही धुंध के साये में थे। यह स्थिति नवंबर के दूसरे सप्ताह तक कमोबेश जारी रही। दिल्ली की पूरी जनता परेशान रही और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल समाधान के बजाय दावे, वादे और दोषारोपण करते रहे।
हालत कितनी गंभीर हो चुकी है, इसका पता ‘लोकल सर्किल’ के सर्वेक्षण से चलता है। सर्वेक्षण में 19,000 प्रतिभागियों में से 18 प्रतिशत लोग प्रदूषण संबंधित बीमारियों के सिलसिले में डॉक्टर से मिल चुके थे। 80 प्रतिशत परिवारों का कम से कम एक सदस्य जहरीली हवा का शिकार हुआ था और लगभग 13 प्रतिशत परिवारों ने प्रदूषण से बचने के लिए दिल्ली छोड़ दी।
अक्तूबर-नवंबर में दिल्ली में प्रदूषण बढ़ जाता है। ऊर्जा एवं स्वच्छ हवा अनुसंधान केंद्र (सीआरईए) की एक शोध रिपोर्ट के अनुसार दिल्ली में वायु प्रदूषण के प्रमुख स्रोतों में उत्सर्जन नियंत्रण प्रौद्योगिकियों की कमी, वाहनों से होने वाले उत्सर्जन और मौजूदा समय में पराली जलाने की घटनाएं प्रमुख हैं।
केजरीवाल की आआपा सरकार जनता को जहरीली हवा से राहत देने के लिए इन मुद्दों पर ठोस काम करने के बजाय दिखावे की घोषणाएं करने, राजनीति करने और विज्ञापन के जरिए अपनी वाहवाही करने में जुटी है। परंतु समस्या के समाधान के लिए आआपा के पास वैज्ञानिक आधार की कोई ठोस योजना नहीं है।
केजरीवाल सरकार प्रदूषण पर रोकथाम के लिए दीपावली पर आतिशबाजी पर पाबंदी लगा देती है। परंतु इस पाबंदी से दिल्ली के प्रदूषण पर कितना असर पड़ता है, क्या इसका कोई वैज्ञानिक आधार केजरीवाल सरकार के पास है?
केजरीवाल सरकार का दावा है कि प्रदूषण पर रोकथाम के लिए उसने 150 इलेक्ट्रिक बसें चलाई, आगे कितनी और इलेक्ट्रिक बसें आएंगी, यह भी बताया गया। परंतु प्रदूषण रोकने में सहयोग न करने का केंद्र सरकार पर आरोप लगाने वाली केजरीवाल सरकार ने छिपाया यह कि केंद्र सरकार की योजना के तहत दिल्ली को 3,000 इलेक्ट्रिक बसें दी जा रही हैं।
याद कीजिए, पिछले वर्ष तक दिल्ली के प्रदूषण के लिए मुख्यमंत्री केजरीवाल पंजाब एवं हरियाणा में पराली जलाए जाने को जिम्मेदार बताते रहे हैं। इसके लिए वे पंजाब की पूर्ववर्ती कैप्टन अमरिंदर सिंह सरकार समेत अन्य पड़ोसी राज्यों को दोषी बताते हुए तमाम ‘आसान’ उपाय बताते रहे। परंतु अब पंजाब में आआपा सरकार बनने के बाद खुद पंजाब में उन उपायों को लागू नहीं कर पा रहे। वहां पराली जलाने की घटनाएं इस वर्ष बढ़ी हैं।
कमीशन फॉर एयर क्वालिटी मैनेजमेंट इन नेशनल कैपिटल रीजन एंड एडजॉइनिंग एरियाज के एक नोटिफिकेशन में बताया गया है कि पंजाब में अब तक (2 नवंबर) पराली जलाने के 21,480 मामले सामने आए हैं। जबकि, हरियाणा में कुल 2,249 और उत्तर प्रदेश में 802 मामले ही दर्ज किए गए हैं।
मुख्यमंत्री केजरीवाल पंजाब की पूर्ववर्ती कैप्टन सरकार समेत अन्य पड़ोसी राज्यों को दोषी बताते हुए तमाम ‘आसान’ उपाय बताते रहे। परंतु अब पंजाब में आआपा सरकार बनने के बाद खुद पंजाब में उन उपायों को लागू नहीं कर पा रहे।
पंजाब की आआपा सरकार की लापरवाही को छिपाने के लिए दिल्ली के पर्यावरण मंत्री गोपाल राय का आरोप है कि पंजाब सरकार को पराली नहीं जलाने के लिए किसानों को नकद प्रोत्साहन देने में केंद्र ने मदद नहीं की। पर केंद्रीय पर्यावरण मंत्री भूपेंद्र यादव बताते हैं कि फसल अवशेष प्रबंधन के लिए केंद्र सरकार ने बीते पांच साल में पंजाब को 1,347 करोड़ रुपये दिए। राज्य ने 1.20 लाख मशीनें खरीदीं, लेकिन इनमें 11,275 मशीनें गायब हो गर्इं। पिछले साल 212 करोड़ रुपये खर्च ही नहीं किए गए। इस साल केंद्र ने मशीनों के लिए 280 करोड़ रुपये दिए।
दिल्ली के प्रदूषण पर आआपा की पूरी पोल खुल जाने पर अब केजरीवाल ने पंजाब में भगवंत सरकार के नए होने की ढाल ली है। वे बिहार, उत्तर प्रदेश, हरियाणा और राजस्थान के कुछ शहरों में वायु प्रदूषण के आंकड़ों की आड़ में दिल्ली में प्रदूषण की जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ने की कोशिश करते दिख रहे हैं।
जब वायु प्रदूषण जैसे कारण से जनता की जान सांसत में हो तो सरकार को गंभीरता से ठोस उपाय करने चाहिए जिनका वैज्ञानिक आधार हो। मात्र राजनीति के लिए घोषणाएं, दावे और दोषारोपण बहुत दिनों तक नहीं चल सकता। पराली जलाने पर रोकथाम के लिए केंद्र से मिली मदद का उपयोग करते हुए हरियाणा और उत्तर प्रदेश ने इन घटनाओं में 50 प्रतिशत तक कमी कर ली है। यह मदद पंजाब को भी मिली है।
पंजाब सरकार को इसका सदुपयोग करते हुए जमीनी काम करना होगा। दिल्ली सरकार को भी आतिशबाजी पर पाबंदी जैसे शोशे छोड़ने के बजाय परिवहन बेड़े में अधिकाधिक इलेक्ट्रिक बसों को शामिल करने, औद्योगिक नियमन और सड़कों को सुधारने पर ध्यान केंद्रित करना होगा।
@hiteshshankar
टिप्पणियाँ