नेताजी सुभाषचंद्र बोस अखण्ड एवं अविभाजित भारत के पहले प्रधानमंत्री थे। आज़ाद हिन्द सरकार कोई प्रतिकात्मक सरकार नहीं थी, अल्प संसाधनों के बावजूद सरकार के पास सभी आवश्यक तंत्र थे। पूर्व की सरकारों ने नेताजी को वह सम्मान नहीं दिया जिसके वो हकदार थे। आजादी के ७५ वर्ष के बाद भी हम नेताजी के सपनों का भारत नहीं बना पाये, वर्तमान सरकार नेताजी के योगदान से भारतीय जनमानस को परिचित कराने एवं उन्हें उनका गौरव दिलाने का निरन्तर प्रयास कर रही है।
उक्त उद्गार रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने भारतीय शिक्षण मण्डल के युवा आयाम एवं रिसर्च फॉर रिसर्जेन्स फाउंडेशन, नागपुर द्वारा गलगोटिया विश्वविद्यालय, ग्रेटर नोएडा में ११ नवम्बर को आयोजित युवा शोधवीर समागम के दौरान व्यक्त किये।
रक्षा मंत्री ने कहा कि आज भारत का स्वाभिमान बढ़ रहा है। हम आत्मनिर्भर भारत के संकल्पना के साथ आगे बढ़ रहे हैं। इसको साकार करने के लिए हमारे पास संसाधन एवं समृद्ध संस्कृति दोनों है। आज भारत के गौरवशाली अतीत को जानने की आवश्यकता है। विशेष रूप से युवाओं के लिए अपनी सांस्कृतिक विरासत से परिचित होना आवश्यक है। वैदिक ज्ञान हमारी सबसे बड़ी धरोहर है। हमें इसे समझना होगा। भारत को श्रेष्ठता के नये अध्याय लिखने हैं तो आधुनिकता एवं आध्यामिकता दोनों को साथ लेकर आगे बढ़ना होगा। इतिहास में हुई त्रुटियों को शोध के माध्यम से ही सुधारा जा सकता है। निश्चित रूप से बौद्धिक मंथन एवं चिंतन का यह शोध समागम महत्वपूर्ण है, एवं नेताजी के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर व्यापक स्तर पर मंथन करने वाला यह देश का पहला आयोजन है।
भारतीय शिक्षण मण्डल के अखिल भारतीय संगठन मंत्री मुकुल कानिटकर ने कहा कि आज का संघर्ष वैचारिक संघर्ष है जिसे शस्त्र की जगह शास्त्र से लड़ा जा सकता है। आज देश के लिए जीने वाले युवाओं की आवश्यकता है।
सुभाष-स्वराज-सरकार अभियान के माध्यम से शोधवीर सेनानी ढूंढने का प्रयास किया गया है। भारत माता को पुनः विश्वगुरु के रूप में स्थापित करने के लिए भारतीय दृष्टि विकसित करनी होगी। हमें आज सोचने की आवश्यकता है कि आज़ादी के ७५ वर्ष होने के बाद भी हम देशभक्ति पैदा करने वाली शिक्षा दे पाये हैं?
अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में भारतीय शिक्षण मण्डल के अध्यक्ष प्रो० सच्चिदानंद जोशी ने कहा कि नेताजी ने भारत की औपचारिक स्वतंत्रता के पूर्व ही भविष्य के भारत की संकल्पना कर लिया था। नेताजी के सपनों का भारत तभी निर्मित होगा जब हम वैचारिक रूप से स्वतंत्र होंगे।
इस समागम के माध्यम से बौद्धिक शोधवीरों को तैयार करने का कार्य होगा, यह समागम भारत के गौरवशाली अनुसंधान परम्परा को दिशा देगा। स्वागत भाषण देते हुए सुनील गलगोटिया ने कहा कि बेहद ख़ुशी है कि भारतीय शिक्षण मण्डल शिक्षा व्यवस्था में बदलाव की तरफ अग्रसर हैं।
राष्ट्रीय शिक्षा नीति इस दिशा में सार्थक कदम है। आज भारतीय ज्ञान को नासा जैसी संस्थाएं भी मानने लगी हैं। आज वैदिक एवं योग को प्रसिद्धि मिल रही है। हमें पुरातन शिक्षा एवं शोध पद्धति को आत्मसात करने की आवश्यकता है।
कार्यक्रम का संचालन करते हुए भारतीय शिक्षण मण्डल के महामंत्री उमाशंकर पचौरी ने कहा कि आज इस सभागार में नेताजी के सपनों को साकार करने वाली तरुणाई विद्यमान है। अतिथियों का स्वागत अमित रावत एवं ध्रुव गलगोटिया ने किया।
इस अवसर पर सांसद महेश शर्मा, राज्यसभा सांसद सुरेन्द्र नगर, जेवर विधायक धीरेन्द्र सिंह, रिसर्च फॉर रिसर्जेन्स फाउंडेशन के निदेशक प्रो० राजेश बिनिवाले, भारतीय शिक्षण मण्डल के अखिल भारतीय सह-संगठन मंत्री बी.आर. शंकरानन्द सहित हजारों की संख्या में विद्यार्थी एवं शोधवीर उपस्थित रहे।
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