अमेरिका से आई ताजा खबर संकेत दे रही है कि भारत—अमेरिका के बीच द्विपक्षीय व्यापार को और गति मिलेगी। खबर है कि अमेरिका ने भारत का नाम अपनी ‘करेंसी मॉनिटरिंग लिस्ट’ से बाहर कर दिया है। यानी अब उसे भारत की मुद्रा विनिमय नीति पर और अधिक भरोसा हो चला है। यहां बता दें कि पिछले दो साल से अमेरिका ने भारत की विनिमय नीति को शक के दायरे में रखा था। यहां यह जानना भी दिलचस्प होगा कि चीन का नाम अब भी अमेरिका की उस सूची में है यानी चीन की विनिमय नीति पर उसे अभी भी भरोसा नहीं है।
दिलचस्प बात यह है कि अमेरिका ने यह बदलाव किया उससे कुछ ही दिन पहले वहां की ट्रेजरी सचिव जेनेट येलेन नई दिल्ली आई थीं और यहां उन्होंने भारतीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण से भेंट की थी। दोनों के बीच कई महत्वपूर्ण बिन्दुओं पर चर्चा हुई थी।
अमेरिका की ट्रेजरी सचिव जेनेट येलेन के गत दिनों नई दिल्ली आने से पहले अक्तूबर में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण वाशिंगटन के दौरे पर गई थीं। वहां भी उन्होंने येलेन के साथ दुनिया की वर्तमान आर्थिक स्थिति पर विस्तार से चर्चा की थी।
इस वार्ता के फौरन बाद अमेरिकी ट्रेजरी विभाग द्वारा भारत को अपनी करेंसी मॉनिटरिंग लिस्ट से बाहर करना भविष्य की तरफ खास संकेत देता है। अमेरिका किसी देश विदेशी मुद्रा नीति पर संदेह होने पर ही उसे अपनी निगरानी सूची में जोड़ता है।
उल्लेखनीय है कि भारत पिछले दो साल से वहां की इसी करेंसी मॉनिटरिंग लिस्ट में बना हुआ था। लेकिन अब नई स्थिति यह है कि भारत अमेरिका के प्रमुख व्यापारिक साझेदारों की मुद्रा निगरानी सूची से बाहर है यानी भारत की विनिमय नीति पर अब निगरानी की आवश्यकता नहीं रही है यानी अब भारत पर भरोसा बढ़ा है। बता दें कि सिर्फ भारत सहित अमेरिका ने इटली, मैक्सिको, थाईलैंड और वियतनाम को भी अब इस सूची से बाहर कर दिया है। इन सभी देशों को इस सूची से हटाने की पुष्टि ट्रेजरी विभाग द्वारा कांग्रेस को दी गई अपनी द्विवार्षिक रिपोर्ट में की गई है।
ट्रेजरी विभाग द्वारा कांग्रेस को दी गई अपनी उक्त रिपोर्ट में उसने लिखा है कि आज की स्थिति के अनुसार, उसकी करेंसी मॉनिटरिंग लिस्ट में चीन, जापान, कोरिया, जर्मनी, मलेशिया, सिंगापुर और ताइवान जैसे देश शामिल हैं। कहा गया है कि जिन देशों को सूची से हटाया है, उन्होंने लगातार दो रिपोर्ट के लिए तीन में से एक मानदंड को पूरा किया है।
चीन के संदर्भ में रिपोर्ट कहती है कि विदेशी मुद्रा विनिमय को सामने लाने में चीन असफल रहा है, इसकी विनिमय दर तंत्र में पारदर्शिता की बहुत ज्यादा कमी है इसलिए ट्रेजरी के लिए इस देश पर नजर रखने की जरूरत है। यानी चीन अभी भी विदेशी मुद्रा विनिमय और व्यापार के मामले में अमेरिका की नजर में भारत से कमतर है।
उधर अमेरिकी ट्रेजरी सचिव येलेन का कहना है कि दुनिया की अर्थव्यवस्था यूक्रेन के विरुद्ध रूस के युद्ध और उससे पहले कोरोना महामारी की वजह से आपूर्ति और मांग में असंतुलन से जूझ ही रही है। इन दोनों कारणों के चलते ही खाद्य, उर्वरक और ऊर्जा की कीमतें तेजी से बढ़ी हैं। इनका असर यह हो रहा है कि दुनिया में मुद्रास्फीति और खाद्य असुरक्षा में बढ़ोतरी दिखाई दे रही है।
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