चीन की शरारतों और षड्यंत्रों का अंतरराष्ट्रीय स्तर पर खुलासा होता ही रहा है, लेकिन एक ताजा अध्ययन ने भारत के संदर्भ में एक चौंकाने वाला तथ्य सामने रखा है। इसने बताया है कि चीन ने एलएसी पर इसलिए घुसपैठ की थी जिससे उसका वहां हमेशा के लिए कब्जा हो जाए।
यह हैरान करने वाली बात सामने आई है नीदरलैंड्स के रक्षा विशेषज्ञों के एक अध्ययन में। विषय पर नॉर्थवेस्टर्न यूनिवर्सिटी, नीदरलैंड्स की तकनीकी यूनीवर्सिटी और नीदरलैंड्स डिफेंस एकेडमी की साझी जांच का विषय था ‘हिमालय में बढ़ता तनाव: भारतीय सीमा पर चीन की घुसपैठ का भू-स्थानिक विश्लेषण’। इस अध्ययन के अंतर्गत गत 15 वर्षों में घटे घटनाक्रमों के डाटा की मदद से चीन की घुसपैठ का भू-स्थानिक विश्लेषण किया गया था।
जांच से सामने आया है कि विवादित अक्साईचिन इलाके में चीनी दखल बेवजह और यूं ही हो जाने वाली हरकत नहीं थी। वह उल्लंघन अनियोजित और स्वतंत्र घटनाएं नहीं हैं, बल्कि विवादित सीमा क्षेत्र पर हमेशा के लिए कब्जा जमाने की मंशा से रणनीतिक तौर पर सोची—समझी तथा विस्तारवादी रणनीति का हिस्सा थी। अंतरराष्ट्रीय विशेषज्ञों वाले अध्ययन दल ने भारत में चीन से सटी सीमा पर घुसपैठ को लेकर यह अध्ययन किया था।
अध्ययन की कल सार्वजनिक की गई रिपोर्ट में कहा गया है कि संघर्ष को दो स्वतंत्र संघर्षों- पश्चिम और पूर्व—में विभाजित किया जा सकता है। दो संघर्ष मतलब अक्साईचिन और अरुणाचल प्रदेश में हुए संघर्ष। ये दोनों वहां के बड़े विवादित क्षेत्रों के निकट केंद्रित रहे हैं। रणनीति का विश्लेषण बताता है कि पश्चिम में चीन की घुसपैठ रणनीतिक तौर पर सोची—समझी है, जिसका उद्देश्य विवादित सीमा इलाके पर हमेशा के लिए अपना कब्जा जमा लेना अथवा फिलहाल की स्थिति ही बनाए रखना है।
इस अंतरराष्ट्रीय अध्ययन के अंतर्गत भारत के क्षेत्र के तौर पर मान्य क्षेत्रों में सीमा के दूसरी तरफ चीन के सैनिकों की उन क्षेत्रों में किसी भी माध्यम से या पैदल आवाजाही को जांच दल ने ‘घुसपैठ’ माना है। इसके साथ ही ऐसे हर स्थान को एक मानचित्र पर उकेरा गया। इस मानचित्र में 13 घुसपैठ की सबसे अधिक गतिविधि वाले स्थानों को पहचाना गया। ऐसा पिछले 15 साल के डाटा पर शोधकर्ताओं ने नजर डाली और पाया कि हर साल औसत 7.8 बार घुसपैठ की गई थी। यह अलग बात है कि चीनी घुसपैठ को लेकर भारत सरकार का अंदाजा इससे कहीं ज्यादा का है।
भारत और चीन के बीच 3,488 किलोमीटर लंबी वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) को लेकर सीमा विवाद चल रहा है। कम्युनिस्ट चीन अरुणाचल प्रदेश को ‘दक्षिणी तिब्बत’ मानता है और उस पर अपना दावा जताता है, जबकि भारत ने शुरू से ही इसका विरोध किया है। अक्साईचिन लद्दाख में वह बड़ा क्षेत्र है जो फिलहाल चीन के कब्जे में है। वहां भारत सरकार के आंकड़ों के अनुसार, चीन की पीएलए ने 2016 और 2018 के मध्य 1,025 बार भारतीय इलाके में घुसपैठ की थी। तत्कालीन रक्षा राज्य मंत्री श्रीपाद नाइक ने ये आंकड़े नवंबर 2019 में लोकसभा में रखे थे। उन्होंने बताया था कि 2016 में चीनी सेना ने 273 बार, 2017 में 426 बार तो 2018 में 326 बार भारत के क्षेत्र में घुसपैद की थी।
अध्ययन करने वालों में नीदरलैंड की डेल्फ्ट तकनीकी यूनिवर्सिटी, डेल्फ्ट संस्थान के अप्लाइड मेथ विशेषज्ञ जान-टिनो ब्रेथौवर तथा रॉबर्ट फोककिंक, प्रिंस्टन विश्वविद्यालय के स्कूल ऑफ पब्लिक एंड इंटरनेशनल अफेयर्स के केविन ग्रीन, नीदरलैंड रक्षा अकादमी से रॉय लिंडलॉफ, डार्टमाउथ कॉलेज के कंप्यूटर विज्ञान विभाग की कैरोलिन टॉर्नक्विस्ट तथा अमेरिका की नॉर्थवेस्टर्न यूनिवर्सिटी में डिपार्टमेंट ऑफ कंप्यूटर साइंस और इवान्स्टन के बफेट इंस्टीट्यूट फॉर ग्लोबल अफेयर्स के वीएस सुब्रह्मण्यम शामिल रहे।
अध्ययन पर जारी एक वक्तव्य में कहा गया है कि शोध को लिखने वालों ने 2006 से 2020 के बीच भारत के क्षेत्रों में चीनी घुसपैठ के बारे में जानकारी इकट्ठी करके एक नया डाटासेट तैयार किया जिसका विश्लेषण करने के लिए गेम थ्योरी तथा सांख्यिकीय प्रक्रिया का प्रयोग किया गया।
उल्लेखनीय है कि जून 2020 में गलवान में हुई हिंसक झड़प पर भी अध्ययन में नजर डाली गई थी। इस संघर्ष में भारत के 20 बहादुर जवान शहीद हुए थे जबकि चीन के बड़ी संख्या में सैनिक मारे गए थे। रिपोर्ट बताती है कि भारतीय क्षेत्र में चीनी घुसपैठ की खबरें आती ही रहती हैं। दुनिया की सबसे ज्यादा आबादी वाले दो देशों के बीच बढ़ता तनाव वैश्विक सुरक्षा तथा विश्व की अर्थव्यवस्था के लिए खतरा पैदा करता है। क्षेत्र में फौजी कार्रवाइयों का नकारात्मक असर पड़ता है।
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