अयोध्या : चालीस दिन चली थी उच्चतम न्यायालय में बहस, चालीसवें दिन न्यायालय ने कहा - 'बस बहुत हो गया'
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अयोध्या : चालीस दिन चली थी उच्चतम न्यायालय में बहस, चालीसवें दिन न्यायालय ने कहा – ‘बस बहुत हो गया’

सुनवाई के छब्बीसवें दिन मुख्य न्यायाधीश ने इस मुकदमे की डेडलाइन 18 अक्टूबर तय कर दी थी।  40 दिन लगातार सुनवाई चली। 9 नवंबर 2019 को निर्णय आया। 

by लखनऊ ब्यूरो
Nov 9, 2022, 12:11 pm IST
in उत्तर प्रदेश
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राम जन्म भूमि विवाद में मध्यस्थता के सभी प्रयास विफल होने के बाद उच्चतम न्यायालय के तत्कालीन  मुख्य न्यायाधीश, रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली 5 सदस्यीय संविधान बेंच ने रोजाना सुनवाई का फैसला किया। सुनवाई के छब्बीसवें दिन मुख्य न्यायाधीश ने इस मुकदमे की डेडलाइन 18 अक्टूबर तय कर दी थी।  40 दिन लगातार सुनवाई चली। 9 नवंबर 2019 को निर्णय आया।

 सुनवाई पर एक नज़र –  

पहला दिन- निर्मोही अखाड़े ने दावा किया कि वर्ष 1934 से मुसलमानों ने विवादित ढांचे के भीतर कभी प्रवेश नहीं किया। निर्मोही अखाड़े ने यह भी  दावा किया कि  2.77 एकड़ जमीन पर उनका आधिपत्य है।  ढांचे का भीतरी बरामदा और राम जन्म भूमि, कई सौ वर्षों से निर्मोही अखाड़े के आधिपत्य में है। बाहरी बरामदे में स्थित सीता रसोई, चबूतरा, भंडार गृह भी निर्मोही अखाड़े के पास ही है।

दूसरा दिन –  उच्चतम न्यायालय में यह तर्क दिया गया कि भक्तों की आस्था ही अपने आप में प्रमाण है कि विवादित स्थल, भगवान राम का जन्म स्थान है। उच्चतम न्यायालय ने पूछा कि जीसस सरीखे किसी अन्य के जन्म स्थान को लेकर ऐसा विवाद किसी कोर्ट में सुनवाई के लिए लाया गया था। इसके पूर्व उच्चतम न्यायालय ने निर्मोही अखाड़ा से पूछा कि – जब कुर्की की कार्रवाई की गई थी। उसके पहले का कोई ऐसा राजस्व संबंधी रिकार्ड है जिसमे राम जन्म भूमि के कब्जे का उल्लेख हो ? निर्मोही अखाड़ा के अधिवक्ता ने कहा कि “वर्ष 1982 में जो डकैती की घटना हुई थी। उस घटना में यह सब रिकार्ड चले गए।”

तीसरा दिन –  राम जन्म भूमि के मुकदमे की सुनवाई जब इलाहाबाद उच्च न्यायालय में चल  रही थी तब जस्टिस देवकी नंदन इस मामले में पक्षकार बने थे। वह भगवान राम के निकट मित्र के तौर पर पक्षकार बने थे। उच्चतम न्यायालय ने तीसरे दिन पूछा कि- “क्या जन्म स्थान भी वादी बन सकता है?” इस पर रामलला विराजमान के अधिवक्ता के.परासरन ने कहा कि – जन्म स्थान भी वादी हो सकता है।

चौथा दिन –  रामलला विराजमान के अधिवक्ता के. परासरन ने राम जन्म भूमि  के धार्मिक महत्व को उच्चतम न्यायालय के सामने रखा। उन्होंने कहा कि सदियों से वहां पर  पूजा – अर्चना हो रही है।

पांचवा दिन –  इस प्रश्न पर बहस हुई कि विवादित स्थल पर मंदिर था या नहीं था ? राम लला विराजमान के  अधिवक्ता ने कहा कि इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने अपने  निर्णय में यह स्वीकार किया है कि वहां पर मंदिर बना हुआ था।  मंदिर को तोड़कर ही मस्जिद बनाई गई थी। मंदिर के ऊपर मस्जिद का ढांचा  बना दिए जाने से मंदिर की पवित्रता में किसी प्रकार का कोई फर्क नही पड़ता है।

छठा दिन – राम लला विराजमान के अधिवक्ता ने कहा कि मंदिर का ढांचा तोड़कर मस्जिद बाबर ने बनवाई या औरंगजेब ने  इस तथ्य को लेकर भ्रम है। विश्व स्तर पर  ऐतिहासिक विवरण का अध्ययन करने से यह स्पष्ट नहीं हो पाता है कि मस्जिद का निर्माण किसने कराया था मगर एक तथ्य पूरी तरह स्पष्ट है कि भगवान राम का जन्म वहीं पर हुआ था। इस विषय को लेकर कहीं पर कोई भ्रम नहीं है। स्कन्द पुराण में लिखा है कि सरयू नदी में स्नान करने से उसी तरह का पुन्य लाभ मिलता है जितना राम जन्म भूमि का दर्शन करने से। उच्चतम न्यायालय ने पूछा कि यह पुराण कब लिखा गया था ? कोर्ट को बताया गया कि यह पुराण महाभारत के समय में लिखा गया था।

सातवां दिन –  राम लला विराजमान के अधिवक्ता सी.एस. वैद्यनाथन ने कहा कि आर्केलाजिकल सर्वे आफ इंडिया की रिपोर्ट में यह बिल्कुल स्पष्ट है कि मस्जिद किसी जमीन पर नहीं बनाई गई थी। खुदाई के पश्चात वहां पर बाल रूप में भगवान राम की मूर्ति पाई गई। इसके अतिरिक्त अन्य देवी-देवताओं की भी मूर्तियां खुदाई में मिलीं।

आठवां दिन – उच्चतम न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश के व्यस्त होने की वजह से आठवें दिन सुनवाई नहीं हुई।

नौवां दिन – राम लला विराजमान के अधिवक्ता ने तर्क दिया कि इलाहाबाद हाईकोर्ट के जज ने अपने फैसले में लिखा है कि मंदिर ढहाकर मस्जिद बनाई गई थी।

दसवां दिन –  जस्टिस डी. वाई. चंद्रचूड़ ने कहा कि  इस बात पर विवाद नहीं है कि भगवान राम का जन्म अयोध्या में हुआ था। विवाद सिर्फ उस जन्म स्थल को लेकर है।

पुजारी गोपाल दास के वरिष्ठ अधिवक्ता रणजीत कुमार ने  कहा कि  इस मुकदमे के वह मूल पक्षकार हैं।  उन्हें जन्म भूमि पर पूजा – अर्चना करने का अधिकार है। इस अधिकार से उन्हें वंचित नहीं किया जा सकता है। मस्जिद बनने के बाद भी पूजा बाधित नहीं हुई थी।  जबकि वर्ष 1934 के बाद से कभी वहां पर नमाज नहीं पढ़ी गई।

ग्यारहवां दिन – इस मुक़दमे के मूल पक्षकार निर्मोही अखाड़ा ने कहा कि उनका दावा स्वामित्व को लेकर नहीं है। उनके अधिवक्ता सुशील कुमार जैन ने कहा कि हम मंदिर की देखरेख वर्ष 1934 से करते आ रहे हैं। हमारा दावा, वहां पर कब्जे को लेकर है। वहां का कब्जा भगवान राम के निकट मित्र को नहीं दिया जा सकता।

बारहवां दिन – निर्मोही अखाड़ा के अधिवक्ता ने कहा कि हमारे द्वारा मंदिर का प्रबन्धन किया जाता है। हम पूजा करने एवं प्रबंधन का अधिकार चाहते हैं। भगवान राम के निकट मित्र की तरफ से दावा वर्ष 1989 में आया था, जबकि निर्मोही अखाड़ा इसके पहले से मंदिर की देखरेख करता आ रहा है। इसलिए यह अधिकार पुजारी को या फिर भगवान राम के निकट मित्र को नहीं दिया जा सकता। उन्होंने यह भी कहा कि तीन गुम्बद वाले आकार के निर्माण को मस्जिद नहीं कहा जा सकता।

तेरहवां दिन – अखिल भारतीय श्री राम जन्म भूमि पुनरुद्धार समिति की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता पी.एन मिश्र ने स्कन्द पुराण एवं अन्य धार्मिक शास्त्रों का हवाला दिया। उन्होंने कहा कि बाबर के अयोध्या आने का कोई विवरण उपलब्ध नहीं है। मीर बाकी जिसे बाबर का सेनापति बताया जाता है। इस नाम के व्यक्ति का भी विवरण कहीं पर नहीं मिलता है।

चौदहवां दिन – हिन्दुओं की  तरफ से दलील दी गई कि बाबरनामा में इसका कहीं पर उल्लेख नहीं है कि बाबर के सेनापति मीर बाकी ने मंदिर को तोड़कर मस्जिद का निर्माण कराया था।

पन्द्रहवां दिन – इस बात पर बहस हुई कि इस मामले का पता लगाया जाना चाहिए कि बाबर ने अगर मस्जिद का निर्माण कराया था तो निर्माण के बाद विवादित ढांचे  को  ‘अल्लाह’ को समर्पित किया था या नहीं।

सोलहवां दिन –  हिन्दुओं की तरफ से दलील दी गई कि मस्जिद में वजू करने के लिए पानी की टंकी आदि का कोई प्रबंध नहीं था। मस्जिद में तस्वीरें नहीं लगाई जाती हैं जबकि विवादित स्थल पर तस्वीरें लगी हुई थीं।

सत्रहवां दिन – मुस्लिम याचिकाकर्ता  एम. सिद्दीक की तरफ से वरिष्ठ अधिवक्ता राजीव धवन ने कहा कि “1934 में हिन्दुओं ने मस्जिद को तोड़ दिया था। उसके बाद 1949 में अवैध घुसपैठ की और फिर 1992 में मस्जिद को पूरी तरह ध्वस्त कर दिया। अब इनकी मांग है कि इनके अधिकारों की रक्षा की जानी चाहिए।” इस पर पीठ ने कहा  ‘कृपया इन सबमें मत पड़िए। आपके तर्क मुद्दे पर आधारित होने चाहिए।’

अठारहवां दिन – मुस्लिम पक्ष के वरिष्ठ अधिवक्ता राजीव धवन ने कहा कि – बाबरी मस्जिद के अन्दर कोई चमत्कार नहीं हुआ था।  22 – 23 दिसंबर 1949 की रात योजनाबद्ध तरीके से मूर्तियों को ला कर छिपा दिया गया था।

उन्नीसवां दिन – मुस्लिम पक्षकार ने कहा कि निर्मोही अखाड़ा ने स्वामित्व का दावा कभी नहीं किया था। निर्मोही अखाड़ा केवल पूजा का अधिकार चाहता है।

बीसवां दिन – मुस्लिम पक्षकार के अधिवक्ता राजीव धवन ने कहा कि “ निर्मोही अखाड़ा का दावा  है कि वो  बाहरी आंगन में राम चबूतरे पर वर्ष 1855 से पूजा करते आ रहे हैं। राम चबूतरे पर पूजा के अधिकार से उन्हें कभी वंचित नहीं किया गया, लेकिन वहां पर स्वामित्व हमारा था।”

इक्कीसवां दिन – वरिष्ठ अधिवक्ता राजीव धवन ने कहा कि  22- 23  दिसंबर 1949 की रात मस्जिद के गुंबद के नीचे मूर्ति छिपा दी गई थी। यह एक गलत कार्य था। उसके बाद मजिस्ट्रेट ने  यथास्थिति बनाये रखने का आदेश पारित कर दिया।

बाइसवां  दिन – मुस्लिम पक्षकार के वरिष्ठ अधिवक्ता राजीव धवन ने कहा कि उन्हें फेसबुक पर धमकी दी गई है। इस पर उच्चतम न्यायालय ने पूछा कि क्या उन्हें सुरक्षा की आवश्यकता है। इस पर उन्होंने सुरक्षा लेने से मना कर दिया।

तेइसवां दिन – हिन्दुओं की तरफ से यह तर्क दिया गया था कि विवादित स्थल पर वर्ष 1934 के बाद कभी नमाज नहीं पढ़ी गई जबकि मुस्लिम पक्षकारों की तरफ से कहा गया कि वर्ष 1934 से लेकर वर्ष 1949 के बीच  भी नमाज पढ़ी जाती थी।

चौबीसवां दिन – के.एन. गोविन्दाचार्य के अधिवक्ता विकास सिंह ने कहा कि काफी संख्या में लोग इस मुकदमे की सुनवाई को देखना चाहते हैं। सभी लोगों को कोर्ट में उपस्थित रहने की अनुमति नहीं मिल सकती। ऐसे में इस मुक़दमे की सुनवाई लाइव स्ट्रीमिंग होनी चाहिए।

पचीसवां दिन – मुस्लिम पक्षकार ने कहा कि साक्ष्य देकर बताया जाय कि भगवान राम उसी विवादित स्थल पर पैदा हुए थे।

छब्बीसवां दिन – उच्चतम न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश ने  18 अक्टूबर की डेडलाइन तय कर दी। उच्चतम न्यायालय ने कहा कि अगर आवश्यकता हुई तो शनिवार को भी सुनवाई की जा सकती  है।

सत्ताइसवां दिन –  जस्टिस चंद्रचूड़ ने सवाल उठाया कि राम चबूतरे के पास बनी रेलिंग के पास लोग पूजा करने क्यों जाते थे। इस पर वरिष्ठ अधिवक्ता राजीव धवन ने कहा कि किसी गवाह के बयान से स्पष्ट नहीं होता है कि लोग वहां क्यों जाते थे।

अट्ठाईसवां दिन – मुस्लिम पक्षकारों ने कहा कि पूरे देश में वातावरण तैयार करके बाबरी मस्जिद को ध्वस्त किया गया ताकि सच किसी के सामने ना आ सके।

उन्तीसवां दिन- मुस्लिम पक्ष के अधिवक्ता ने कहा कि हिंदू पक्ष की इच्छा है कि मौजूद निर्माण को ध्वस्त कर दिया जाए। इसके बाद वहां पर मंदिर का निर्माण कर दिया जाए।

तीसवां दिन – मुस्लिम पक्ष के अधिवक्ता ने कहा कि केवल विश्वास के आधार पर यह स्पष्ट नहीं होता कि अयोध्या में मंदिर था।

इकतीसवां दिन – एएसआई की रिपोर्ट पर सवाल उठाने पर उच्चतम न्यायालय ने सुन्नी बोर्ड को फटकारा और कहा — वह इस रिपोर्ट पर सवाल नहीं उठा सकते। इस मामले पर ट्रायल कोर्ट में सवाल उठाना चाहिए था।

बत्तीसवां दिन – एएसआई की रिपोर्ट पर उठाया गया। मुस्लिम पक्ष की तरफ से दलील दी गई  कि विवादित ढांचे के नीचे एक ईदगाह हो सकती है।

तैतीसवां दिन – मुस्लिम पक्ष के अधिवक्ता ने एएसआई की रिपोर्ट का उल्लेख करते हुए उसे महज एक विचार बताया और कहा कि इसके आधार पर निर्णय नहीं लिया जा सकता।

चौतीसवां दिन – अयोध्या मामले में  मुस्लिम पक्षकार के अधिवक्ता ने कहा कि  वर्ष 1885 के मुकदमे और अभी के मुकदमे एक जैसे ही हैं।

पैतीसवां दिन –  श्री रामलला विराजमान की ओर से दलीलें दीं गईं। पुरातात्विक खोज में मिली दीवार मंदिर की ही है।

छतीसवां दिन – मुख्य न्यायाधीश के नेतृत्व वाली पांच जजों की पीठ ने रामजन्मस्थान पुनरोद्धार समिति को नया तथ्य रखने से रोक दिया।

सैतीसवां  दिन – मुस्लिम पक्ष ने कहा कि यदि मस्जिद के लिए बाबर द्वारा इमदाद देने के सबूत नहीं हैं, तो राम मंदिर के दावेदारों के पास भी  कहानियों के अतिरिक्त कुछ नहीं है।

अड़तीसवां दिन – मुस्लिम पक्ष की तरफ से कहा गया कि इस मामले में हिन्दू पक्ष से नहीं बल्कि सिर्फ हमसे ही सवाल क्यों पूछा जा रहा  है।

उन्तालीसवां दिन –  मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि साफ कहा कि आज उनतालीसवां दिन है। कल बहस का आखिरी दिन होगा।

चालीसवां दिन – उच्चतम न्यायालय में बहस समाप्त हुई।  उच्चतम  न्यायालय ने कहा, ‘बहुत हो गया।’

Topics: चालीस दिन सुनवाईAyodhya caseRam Mandir verdictforty days hearingउच्चतम न्यायालयSupreme Courtराम मंदिरRam Mandirअयोध्या मामलाराम मंदिर पर फैसला
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