मोरबी में पुल टूटने की घटना के बाद 10 मिनट के अंदर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के 200 स्वयंसेवक घटनास्थल पर पहुंचे और एनडीआरएफ और सेना के जवानों के साथ राहत और बचाव कार्य करने लगे
गत 30 अक्तूबर को मोरबी (गुजरात) में मच्छू नदी पर बने पुल के टूटने से 134 से अधिक लोग मारे गए, जबकि 180 से ज्यादा लोगों को बचा लिया गया। इस आपदा से लोगों को बचाने में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के स्वयंसेवकों और अन्य संगठनों के कार्यकर्ताओं ने बहुत ही सराहनीय कार्य किया। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, सौराष्ट्रीय प्रांत के प्रचार प्रमुख पंकज भाई रावल ने बताया कि घटना शाम को लगभग साढ़े छह बजे घटी। उस समय मोरबी विभाग के सह कार्यवाह विपुल भाई घटनास्थाल से कुछ ही दूरी पर थे।
स्वयंसेवकों ने घायलों को अस्पताल तक पहुंचाने में मदद की। स्वयंसेवकों ने जब वहां देखा कि मरीज की अपेक्षा चिकित्सक कम हैं, तो उन लोगों ने नेशनल मेडिकोज आर्गनाइजेशन (एनएमओ) और इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (आईएमए) से जुड़े चिकित्सकों को फोन कर बुलाया। इस कारण घायलों का जल्दी उपचार हो पाया।
उन्होंने घटना के तुरंत बाद संघ के स्थानीय अधिकारियों को जानकारी दी। इसके बाद 10 मिनट के अंदर स्वयंसेवक घटनास्थल पर पहुंच गए। कुछ ही देर में 200 स्वयंसेवक राहत और बचाव कार्य में लगे। इन स्वयंसेवकों ने एनडीआरएफ और सेना के लोगों के साथ लगातार 12 घंटे कार्य किया। इनका नेतृत्व जिला संघचालक ललित भाई, जिला कार्यवाह महेश भाई और विपुल भाई कर रहे थे। इन स्वयंसेवकों ने सबसे पहले डूब रहे लोगों को बचाया। इसके साथ ही शवों को भी नदी से निकाला।
कुछ स्वयंसेवकों ने घायलों को अस्पताल तक पहुंचाने में मदद की। स्वयंसेवकों ने जब वहां देखा कि मरीज की अपेक्षा चिकित्सक कम हैं, तो उन लोगों ने नेशनल मेडिकोज आर्गनाइजेशन (एनएमओ) और इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (आईएमए) से जुड़े चिकित्सकों को फोन कर बुलाया। इस कारण घायलों का जल्दी उपचार हो पाया।
इसी बीच कुछ स्वयंसेवक नदी के किनारे से सड़क तक शवों को लाने में लगे और कुछ उनके लिए रास्ता बनाने में जुटे। सबसे बड़ी समस्या थी कि जैसे-जैसे लोगों को घटना की जानकारी मिलती गई वे लोग घटनास्थल पर पहुंच गए। इस कारण शासन-प्रशासन के सामने बड़ी समस्या खड़ी हो गई। लोगों को संभालना बड़ी चुनौती थी। इस कार्य को भी स्वयंसेवकों ने बहुत ही कुशलता से किया।
स्वयंसेवकों ने अपनों को खोने वालों को सांत्वना दी और शव को घर तक ले जाने की व्यवस्था की। शव को एम्बुलेंस में रखने से पहले सफेद वस्त्र में लपेटने का भी एक बड़ा काम था। इस काम को भी स्वयंसेवकों ने किया। स्वयंसेवकों ने अपने पैसे से कपड़े खरीदकर शवों को लपेटा और उन्हें उनके परिजनों के साथ उनके घर तक पहुंचाया।
स्वयंसेवकों ने मुसलमानों के भी 37 शवों को निकाला और उनके रीति-रिवाज का पालन करते हुए उनके घर तक पहुंचाया। इस कार्य में स्वयंसेवकों को विश्व हिंदू परिषद, बजरंग दल और स्वामिनारायण संस्था के कार्यकर्ताओं का भी बहुत ही सराहनीय सहयोग मिला।
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