इंटरनेट की बढ़ती पहुंच को देखते हुए विभिन्न स्रोतों से मिली जानकारी का सही आकलन करने के लिए इंटरनेट साक्षरता जरूरी, डेटा सुरक्षा पर विधायी ढांचा महत्वपूर्ण
सोशल मीडिया लोगों के बातचीत करने के लहजे, स्वयं को अभिव्यक्त करने के तरीके को बदलकर और उनकी विश्वदृष्टि को आकार देकर हमारे आसपास की दुनिया को बुनियादी रूप से बदल रहा है। यह आम लोगों से जुड़ने और सामाजिक परिवर्तन लाने का एक साधन बन गया है।
सरकार वैश्विक दर्शकों से संवाद करने, संकटकाल में लोगों को नियंत्रित रखने और विभिन्न योजनाओं एवं नीतिगत निर्णयों के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए इसका प्रभावी रूप से उपयोग करती है। हम तीव्र परिवर्तन और तकनीकी विकास के समय में जी रहे हैं, लेकिन यह अपनी अनूठी चुनौतियों के साथ सामने आता है, और सरकार उनसे निपटने के लिए लचीला तंत्र बना रही है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि प्रौद्योगिकी और डेटा नए हथियार बन रहे हैं। उन्होंने कहा कि, ‘लोकतंत्र की सबसे बड़ी ताकत खुलापन है। परंतु हमें निहित स्वार्थी तत्वों को इस खुलेपन का दुरुपयोग नहीं करने देना चाहिए।’ सोशल मीडिया व्यवसाय में कुछ कंपनियों का एकाधिकार होने से, वहां निर्णायक पदों पर बैठे लोग इस पर नियंत्रण रखते हैं कि दर्शकों के सामने कौन सी विचारधाराएं परोसी जाएं।
टेक कंपनियां असंगत सेवा शर्तों लागू करती हैं। अमेरिका में, इस एकाधिकार को तोड़ने के लिए सीनेटरों ने ठोस प्रयास किए हैं। व्हिसलब्लोअर्स ने यह उजागर किया है कि कैसे कंपनियां उपयोगकर्ताओं की सुरक्षा की कीमत पर एल्गोरिथम से अपने मुनाफे को प्राथमिकता देती हैं। ‘फैक्ट चेकर’ भी पक्षपाती हो सकते हैं।
कुछ संज्ञानात्मक पूर्वाग्रह केवल संपर्क में आने से सक्रिय हो जाते हैं और लोग आनलाइन जितने ज्यादा बार किसी विचार को देखते हैं, उसे अपनाने और साझा करने की उतनी ही अधिक संभावना होती है। जनधारणा बदलने के उद्देश्य से होने वाली घटनाएं आमतौर पर चुनाव के आसपास होती हैं।
दूसरा देश अपने रणनीतिक लाभ के लिए नैरेटिव को तोड़-मरोड़ सकता है। उदाहरण के लिए, अमेरिकी सीनेट की खुफिया समिति की एक रिपोर्ट के अनुसार, 2016 के राष्ट्रपति चुनाव में अमेरिका में कलह पैदा करने के लिए विदेशी तत्वों ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म का उपयोग किया था।
फेसबुक की एक आंतरिक रिपोर्ट में पाया गया कि 2020 के राष्ट्रपति चुनाव में सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म के एल्गोरिदम ने पूर्वी यूरोप से किए गए दुष्प्रचार अभियानों को लगभग आधे अमेरिकियों तक पहुंचने में सक्षम बनाया।
अफवाह, गलत सूचना और फर्जी खबरों में जनमत का ध्रुवीकरण करने, हिंसक उग्रवाद और नफरती भाषा को बढ़ावा देने, लोकतंत्र को कमजोर करने और लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं में विश्वास घटाने की क्षमता है।
आईपीसी की धारा 505 के तहत फर्जी खबरों का प्रसार दंडनीय है, परंतु इंटरनेट साक्षरता के बिना इंटरनेट पहुंच में वृद्धि फर्जी खबरों को विश्वसनीय बनाती है। एनसीआरबी के आंकड़ों के अनुसार, पूर्ववर्ती वर्षों के मुकाबले 2020 में फर्जी खबरों और अफवाहों के प्रसार में 214 प्रतिशत की वृद्धि हुई और 1527 मामले दर्ज किए गए। हमलों, हिंसा और अन्य जघन्य घटनाओं के कई वीडियो, अक्सर सांप्रदायिक कोण देते हुए सोशल मीडिया पर व्यापक रूप से साझा किए गए।
5जी के आने से अधिकाधिक लोगों की इंटरनेट तक पहुंच होने के साथ, ग्रामीण वयस्कों से जुड़ना और मीडिया के नए रूपों के बारे में उनकी समझ को सुधारना महत्वपूर्ण है ताकि वे फर्जी खबरों और अफवाहों की पहचान कर सकें। नागरिकों को इंटरनेट पर गोपनीयता और सूचना से संबंधित अपने अधिकारों और जिम्मेदारियों के बारे में सीखना चाहिए।
एक सुरक्षित और कम ध्रुवीकृत इंटरनेट स्पेस बनाने के लिए सबसे बड़ा हस्तक्षेप डेटा सुरक्षा पर एक विधायी ढांचा होगा। यूरोपीय संघ का सामान्य डेटा संरक्षण विनियमन उपभोक्ता डेटा संरक्षण और गोपनीयता में एक महत्वपूर्ण मोड़ है। भारत भी डेटा सुरक्षा के लिए अपना विधायी ढांचा लाने की प्रक्रिया में है।
हाल ही में लागू इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय द्वारा अधिसूचित सूचना प्रौद्योगिकी संशोधन नियम, 2022 का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि इंटरनेट ‘डिजिटल नागरिकों’ के लिए खुला, सुरक्षित और जवाबदेह है। मध्यवर्ती कानूनी रूप से यह सुनिश्चित करने के लिए बाध्य होंगे कि जानबूझकर किसी गलत सूचना का संचार करने वाली सामग्री अपलोड नहीं की गई है। शिकायत अपीलीय समितियों की स्थापना की जाएगी ताकि उपयोगकर्ता अपनी शिकायतों पर मध्यवर्तियों की निष्क्रियता या उनके निर्णयों के खिलाफ अपील कर सकें।
5जी के आने से अधिकाधिक लोगों की इंटरनेट तक पहुंच होने के साथ, ग्रामीण वयस्कों से जुड़ना और मीडिया के नए रूपों के बारे में उनकी समझ को सुधारना महत्वपूर्ण है ताकि वे फर्जी खबरों और अफवाहों की पहचान कर सकें। नागरिकों को इंटरनेट पर गोपनीयता और सूचना से संबंधित अपने अधिकारों और जिम्मेदारियों के बारे में सीखना चाहिए।
मीडिया और सूचना साक्षरता स्कूली पाठ्यक्रम का हिस्सा होना चाहिए। सभी प्रकार के मीडिया द्वारा रिपोर्ट की गई जानकारी को गंभीरता से समझने और उसका आकलन करने में छात्रों को सशक्त बनाने के लिए शिक्षकों को अच्छी तरह से प्रशिक्षित किया जाना चाहिए। इंटरनेट स्पेस को सुरक्षित और भरोसेमंद बनाना हमारी सामूहिक जिम्मेदारी है।
(लेखक भाजपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता और पूर्व केंद्रीय मंत्री हैं।)
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