महान विभूतियां जीवन को गूढ़ सिद्धांतों की सिर घुमाने वाली गलियों से निकालकर सपाट रास्ते पर लाते हैं। वह एक साथ बहुत सारी चीजों के बारे में बताते चलते हैं। नानकजी ने जितनी यात्राएं कीं, उतनी यात्राएं कम ही लोगों ने की होंगी। लोगों को सूक्तियां थमाकर उनके जीवन को बदलाव की ओर ले जाने वाली क्रांति की मशाल उनके हाथ में थी।
बुद्धि को विवेकपूर्ण, चित्त को स्थिर, व्यक्ति को सत्य और कर्तव्य-आग्रही, राष्ट्र को शौर्य, स्वाभिमान से युक्त करने वाला दर्शन गुरु नानकदेव जी का है। उनके दर्शन में सबके साथ समरस होने का सन्मार्ग है। उनका दर्शन सत्य के लिए लड़ता है, अवगुणों के खिलाफ अड़ता है तो जीवमात्र की सेवा के लिए झुकता भी है। वस्तुत: उनका दर्शन सनातन है, इस भारत भूमि की मिट्टी में पोषित-पल्लवित संस्कृति को प्राणवायु की तरह सहेजते हुए, समाज के आचार-विचार में आई रुग्णता को दूर करते हुए, आडंबरों को मिटाने का उद्घोष करते हुए सबको साथ लेकर चलने वाला दर्शन।
कहते हैं कि इस राष्ट्र को ‘हिंदुस्थान’ नाम भी गुरु नानक जी ने ही दिया था। बात उस समय की है जब बाबर ने भारत पर आक्रमण किया था। तब नानकदेव जी ने बाबर को आक्रांता के तौर पर इंगित करते हुए इस धरती को ‘हिंदुस्थान’ कहकर संबोधित किया था।
खुरासान खसमाना कीआ, हिंदुसतानु डराईआ।
आपै दोसु न देई करता जमु करि मुगलु चडाइआ।
उन्होंने अपनी वाणी में हिंदुस्थान का प्रयोग किया है। बाबर ने जब शैदपुर पर आक्रमण किया, उस समय देश छोटे-छोटे राज्यों-रजवाड़ों में बंटा हुआ था। राजनीतिक रूप से भले ही भारत का कोई संघीय स्वरूप नहीं था, लेकिन आध्यात्मिक व सांस्कृतिक रूप से यह एक था। इसीलिए उन्होंने इसे हिंदुस्थान यानी हिंदुओं का स्थान से संबोधित किया है। इस प्रकार श्रीगुरु नानक देव जी महाराज ने बाबर के जुल्म के विरुद्ध भारत के लोगों में राष्ट्रीय चेतना जगाई।
यह है गुरु नानकदेव और हिंदुस्थान का परस्पर ताना-बाना। खांचों-कुनबों से निकलकर राष्ट्र के स्वाभिमान की ओर उन्मुख होने की प्रेरणा नानक देते हैं। मातृभूमि पर शिकंजा कसते विदेशी आक्रांताओं के विरुद्ध वह खड़े होना सिखाते हैं, बिना किसी भय के, बिना अस्मिता को खोए। देश पर आक्रमण करने वाले बाबर को वह ‘जाबर’ कहने से भी नहीं हिचकते। पूरी प्रखरता और स्पष्टता के साथ अपनी अस्मिता के लिए आक्रांता के सम्मुख खड़े हो जाने का साहस अद्भुत है। वह समकालीन समाज को रास्ता दिखाते चलते हैं।
जैसी मै आवै खसम की बाणी
तैसड़ाकरी गिआनुवेलालो॥
पाप की जंञ लै काबलहु
धाइआ जोंरी मंगै दानु वे लालो॥
सरम धरम छप श्वलोंए
कुडू फिरै परधान वे लालो॥
सच की बाणी नानकु आखै
सच सुणाइसी सचु की बेला।
(गुरुग्रंथसाहिब, 722-23)
ये पंक्तियां गुरुनानक देव जी द्वारा मुगल आक्रांता बाबर के हिंदुस्थान के ऊपर हमले के समय कही गई हैं। उस समय वे पश्चिमी पंजाब के एक गांव सैदपुर (एमनाबाद) में अपने परम शिष्य भाई लालो के घर में रुके हुए थे। ये पंक्तियां भाई लालो को ही संबोधित करके रची गई हैं।
गुरुजी कहते हैं, ‘हे लालो! जैसा ज्ञान मुझे उस खसम (परमपिता परमात्मा) की ओर से आ रहा है वैसा ही ज्ञान मैं तुम्हें दे रहा हूं। ये जो आक्रांता (बाबर) है, यह काबुल की ओर से पाप की बारात लेकर आया है। यह अत्याचार द्वारा वधू के रूप में भारत-भूमि का कन्यादान मांग रहा है। इस समय शर्म और धर्म दोनों ही कहीं छुप गए हैं और चारों ओर असत्य की प्रधानता है। नानक सच (सत्य) की वाणी बोल रहा है और सच की इस बेला में सच ही सुनाएगा।
नानक के लिए समाज में कोई छोटा-बड़ा नहीं था, कोई विशेष ग्राह्य और कोई त्याज्य नहीं था। वह आराम से सभी से संवाद करते थे। यही कारण है कि उन्होंने समाज के खांचों को तोड़कर मानव को एक स्तर पर लाने का प्रयत्न किया। मुस्लिम समुदाय से उनका विशद् संवाद रहा। सभ्यताओं के सिद्धांत के दायरे में जो बातें होती हैं, कहा जा सकता है कि उसमें सबसे ज्यादा प्रखरता के साथ संवाद गुरु नानकदेव ने ही किया। चाहे वह काबा वाली घटना हो, जहां काबा की ओर पांव करके सोने पर उन्हें टोका गया कि आखिर वे अल्लाह की ओर पैर करके कैसे सो सकते हैं। इस पर नानकदेव का उस व्यक्ति से अनुरोध करना कि उनके पैर वह उधर कर दे जिधर अल्लाह न हो और फिर उस व्यक्ति का नानक के पैर को घुमाना और हर दिशा में काबा का दिखना, अपने आप में गूढ़ दर्शन को सहज तरीके से समझाने की विधा थी।
नानकदेव की महान सूक्ति है-कीरत करो, नाम जपो और वंड छको। यानी बस अपना कर्म करो। ईश्वर का नाम जपो और सांझा करके खाओ। इससे आसान सूत्र भला क्या हो सकता है? कर्म कैसा हो, इसकी भी उन्होंने अलग-अलग जगहों पर व्याख्या की है, जिसका मूल भाव यही है कि कर्म न्यायसंगत और तर्कसंगत हो। यह कर्म आपकी वैयक्तिक, पारिवारिक, सामाजिक, राष्ट्रीय और प्राणी मात्र के प्रति जिम्मेदारियों का निर्वहन भी है। तमाम गूढ़ नीति सिद्धांतों को निचोड़कर नानकदेव ने सेवा का मंत्र थमाया। आज भी जिस शहर में गुरुद्वारा है, यह कह सकते हैं कि अगर किसी व्यक्ति में वहां चलकर जाने की सामर्थ्य है तो वह भूखा नहीं सो सकता।
गुरु नानक जी ने जपुजी साहिब की रचना की, जिसे रवीन्द्रनाथ टैगोर ने ‘गण गीता’ कहा। इसमें जीवन जीने का सार है। इसमें अध्यात्म से लेकर जीवन व्यवहार तक सब कुछ है। यह पूरा का पूरा दर्शन है जो मनुष्य, प्रकृति और जगत निर्माता के परस्पर संबंधों को रेखांकित करता है। इसी कारण इसे दूसरी गीता भी कहा जाता है। अर्थात् नानक का दर्शन धर्म यानी धारण करने योग्य का दर्शन है, कर्म का दर्शन है। उचित-अनुचित का दर्शन है। यह मनसा, वाचा, कर्मणा के लिए सीमाएं भी खींचता है, लेकिन सब सहज स्वीकार्य तरीके से। सूत्रबद्ध जीवन मंत्रों का उनकी दर्शन पोटली समाज-देश के हर कोने के लिए है।
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