एक तरफ दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल नोटों पर भगवान गणेश और लक्ष्मी जी की तस्वीर लगाए जाने की मांग करते हैं। वहीं दूसरी तरफ आम आदमी पार्टी के नेता हिंदू देवी देवताओं के विरुद्ध विष उगलते नजर आते है।
ताजा मामला AAP नेता राजेंद्र पाल गौतम का ही ले लीजिए अभी कुछ दिन पहले ही राजेंद्र पाल गौतम द्वारा दिल्ली के एक कार्यक्रम में हजारों सनातनियों का बौद्ध पंथ में परिवर्तन कराने का एक वीडियो सोशल मीडिया पर चर्चा में रहा, जिसमें वह हिन्दू धर्म की आस्थाओं का अपमान करते व उन्हें त्याग देने की प्रतिज्ञा दिलवा रहे हैं। जिसके बाद राजेंद्र पाल गौतम को मंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ गया था।
इतना सब होने के बाद भी राजेंद्र पाल गौतम अपनी हरकतों से बाज नहीं आ रहे है। आप नेता राजेंद्र पाल गौतम ने मतांतरण को लेकर एक बार फिर से बड़ा बयान दिया है। उन्होंने कहा है कि हमारा समाज तो बौद्ध बनेगा और ऐसा करने से कोई रोक नहीं पाएगा। राजेंद्र पाल गौतम ने कहा कि बहुजन समाज के लोग 135 करोड़ में से 110 करोड़ हैं। 5-6 वर्षों के भीतर वे सभी बौद्ध धर्म में परिवर्तित हो जाएंगे, जिसके बाद आप देख लीजिएगा कि कौन बहुमत में रहेगा और कौन अल्पमत में।
छद्म बौद्धवाद की आड़ में राजनीतिक लाभ का खेल
दरअसल कम्युनिस्टों द्वारा छद्म रूप से एक नई कौम का निर्माण करने के प्रयत्न एक सदी से चलता आ रहा है। उनके इन कुप्रयासों से एक नई जाति का निर्माण हो रहा है, जो न तो हिन्दू हैं न ही बौद्ध। गौतम द्वारा जो प्रतिज्ञाएं दिलवाई जा रही थीं, उनका बुद्ध के संदेशों से कहीं का लेना-देना नहीं है। उनका आशय इस्लामी व ईसाई ताकतों से धन प्राप्त कर उनके लिए संरक्षण देने वाली कुछ राजनीतिक पार्टियों का जनाधार तैयार करना मात्र ही है।
भगवान बुद्ध एक सनातनी परिवार में जन्मे हिन्दू थे, एक पक्षी का शिकार उनके भाई के द्वारा करने से उनका ह्रदय द्रवित हो गया एवं वैराग्य उत्पन्न हुआ। उन्होंने विलासिता छोड़ सादगी पूर्ण जीवन बिताने का निश्चय किया व सन्यासी हो गए। उनके द्वारा प्रतिपादित सबसे महत्वपूर्ण सन्देश था अहिंसा। बुद्ध ने किसी भी प्रकार की हिंसा को वर्जित किया, परन्तु आज कथित बौद्ध मांस भक्षण करते हैं। यहीं से यह ध्यान में आता है कि वे लोग बुद्ध की शिक्षाओं के कितने समीप हैं।
यदि गौर करेंगे तो पाएंगे कि बुद्ध, महावीर, नानक की शिक्षाएं देश काल व स्थिति के अनुरूप सनातन वेदों व अन्य हिन्दू ग्रंथों व मान्यताओं की ही बढ़ोतरी है. उपरोक्त प्रतिज्ञाएं शत-प्रतिशत हमारी मान्यताओं का ही प्रतिरूप हैं, आठ सौ वर्षों की विधर्मियों की गुलामी ने उसमे कुरीतियों को आश्रय दिया, अन्यथा हम विश्व की सबसे उत्कृष्ट समाज व्यवस्था थे। जन्म से जाति नहीं कुल होता है, वर्ण या लक्षण आपके व्यक्तित्व के लक्षणों पर आधारित होता है। कर्ण भी अंगराज हुआ, मछुवारन के पेट से जन्मे वेदव्यास ब्राह्मण हुए, क्षत्रिय कुल में जन्मे विश्वामित्र ब्राह्मण हुए। जंगल में पैदा हुए हनुमान सेनापति हुए, शबरी संत हुईं, ऐसे असंख्य उदाहरण हैं जो यह सिद्ध करने के लिए उपयुक्त हैं कि जाति जन्म नहीं, कर्म आधारित थी।
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