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सहकार की शक्ति : समसामयिक और धर्मकार्य है सहकार

साबरमती संवाद में सहकारिता के बड़े नाम अमूल के एमडी आर.एस सोढ़ी ने सहकारिता को देश की अर्थव्यवस्था के लिए एक महत्वपूर्ण विकास मॉडल बताया

by पाञ्चजन्य ब्यूरो
Nov 5, 2022, 07:08 am IST
in भारत, विश्लेषण, मत अभिमत, बिजनेस, गुजरात, स्वास्थ्य, दिल्ली
कर्णावती में पाञ्चजन्य द्वारा आयोजित साबरमती संवाद में आर. एस. सोढ़ी से बातचीत करते पाञ्चजन्य के संपादक हितेश शंकर]

कर्णावती में पाञ्चजन्य द्वारा आयोजित साबरमती संवाद में आर. एस. सोढ़ी से बातचीत करते पाञ्चजन्य के संपादक हितेश शंकर]

कर्णावती में पाञ्चजन्य के साबरमती संवाद में अमूल के प्रबंध निदेशक आर.एस. सोढ़ी ने सहकारिता के विभिन्न पहलुओं को सामने रखा और बताया कि कैसे देश के विकास में सहकार की महत्वपूर्ण भूमिका है। ईमानदारी, सत्यनिष्ठा के संस्कार को सहकार का मूल बताते हुए नई पीढ़ी को सहकारिता से जोड़ने की रूपरेखा पेश की

 

कर्णावती में पाञ्चजन्य द्वारा आयोजित साबरमती संवाद में सहकारिता के बड़े नाम अमूल के एमडी आर.एस सोढ़ी ने सहकारिता को देश की अर्थव्यवस्था के लिए एक महत्वपूर्ण विकास मॉडल बताया। उन्होंने कहा कि सहकारिता अर्थव्यवस्था के तीन प्रमुख एस (स्माल फार्मर, स्माल ट्रेडर और स्माल कंज्यूमर) को आपस में जोड़ती है और आय की असमानता को कम करती है और साझा स्वामित्व देती है। सहकारिता का अर्थ है स्रोत, वितरण और उपभोग से जुड़े छोटे-छोटे लोगों को आपस में जोड़ कर सबकी उन्नति। सबको काम भी मिले, शोषण भी न हो, एकाधिकार भी न आए, गुणवत्ता भी बनी रहे। सत्र का संचालन पाञ्चजन्य के संपादक श्री हितेश शंकर ने किया।

चालीस वर्षों से अमूल से जुड़े श्री सोढ़ी ने बताया कि 40 वर्ष पहले अमूल का कारोबार 112 करोड़ रुपये था जो पिछले वर्ष 61 हजार करोड़ रुपये रहा। बीते 20 वर्षों में जो विकास दर रही है, यदि उससे 20-30 प्रतिशत कम मान कर चलें तो भारत की स्वतंत्रता के शताब्दी वर्ष 2047 में अमूल का कारोबार 18 लाख करोड़ रुपये होगा। यह है सहकार की शक्ति। आज डिजिटल, आॅटोमेशन और अन्य प्रौद्योगिकी उपलब्ध है। इनका लाभ उठाते हुए भारत के विकास के लिए विभिन्न क्षेत्रों में छोटे-छोटे कारीगरों को जोड़कर सहकारी संस्था बनाकर विकसित भारत का सपना पूरा किया जा सकता है।

सहकारिता एक संस्कार
श्री सोढ़ी ने कहा कि सहकारिता भी एक संस्कार है। एक-दूसरे पर विश्वास है और दूसरे के भरोसे को पूरा करने का जज्बा है। अमूल के मालिक गुजरात के 36 लाख गरीब किसान परिवार हैं। इससे लाखों महिलाएं जुड़ी हैं। उनका सशक्तीकरण हुआ है। सहकारिता से उनको आत्मनिर्भरता मिली, उनके श्रम को गरिमा मिली, एक बड़ी कंपनी का स्वामी होने से आत्मविश्वास आया।

सहकारिता से उनको आत्मनिर्भरता मिली, उनके श्रम को गरिमा मिली, एक बड़ी कंपनी का स्वामी होने से आत्मविश्वास आया। यह दायित्व बोध भी आया कि जितने हम इस कंपनी पर निर्भर हैं, उसी तरह भारत के 140 करोड़ लोग हम पर निर्भर हैं। अगर कोई व्यवसाय संस्कार पर आधारित नहीं है तो वह ज्यादा दिन नहीं चलेगा।

यह दायित्व बोध भी आया कि जितने हम इस कंपनी पर निर्भर हैं, उसी तरह भारत के 140 करोड़ लोग हम पर निर्भर हैं। अगर कोई व्यवसाय संस्कार पर आधारित नहीं है तो वह ज्यादा दिन नहीं चलेगा। अमूल में आज जो संस्कार हैं, वो अमूल के संस्थापक श्री त्रिभुवनदास पटेल के दिए हैं और पेशेवर संस्कार डॉक्टर वर्गीज कुरियन ने दिए हैं। सहकारिता के संस्कार में शीर्ष पर है ईमानदारी, सत्यनिष्ठा और अखंडता का संस्कार, अपने उद्देश्य के प्रति अनुशासन, पेशेवराना रुख, ये सब कुछ डॉक्टर कुरियन से सीखा।

अत्याधुनिक प्रौद्योगिकी का उपयोग
अमूल की गाय-भैंसों के स्मार्ट वाच से लैस होने पर श्री सोढ़ी ने बताया कि स्मार्ट वाच से हर गाय-भैंस पर निगरानी करना, उनकी जरूरतों को समझना आसान हो गया है। उन्होंने कहा कि मानव तो प्रौद्योगिकी का उपयोग करता है, वह बोल सकता है, पर पशु, जो बोल नहीं सकते, जिनकी भाषा हम समझ नहीं सकते, उन्हें समझने के लिए उनमें प्रौद्योगिकी का उपयोग ज्यादा है और वही हम कर रहे हैं। उन्होंने डिजिटल प्रौद्योगिकी के संदर्भ में कहा कि जहां जटिलता ज्यादा हो, जहां संख्या ज्यादा हो, जहां रीमोट लोकेशन ज्यादा हो और जहां पारदर्शिता ना हो, वहां डिजिटल प्रौद्योगिकी का उपयोग बढ़ जाता है।

उन्होंने कहा कि सहकारिता में एक बड़ा महत्वपूर्ण पहलू पारदर्शिता का होता है। हमें कुछ छुपाना नहीं है। जब हम किसान से दूध लेते हैं, वो जैसे ही बर्तन में दूध डाला जाएगा, अपने-आप उसका वजन हो जाएगा, उसका फैट, प्रोटीन जांच होकर उसके खाते में पैसा चला जाएगा। उसके बाद एसएमएस आ जाएगा कि आपने कितना दूध दिया। इसी तरीके से किस राज्य के किस गांव में किस मार्ग पर कितना दूध आउटलेट से कितना माल बिका, कितने की जरूरत है, पूरा डेटा स्क्रीन पर होगा। इसलिए किसानों की संस्था को इस तरह की डिजिटल प्रौद्योगिकी को अपनाना किसी मल्टीनेशनल के मुकाबले ज्यादा जरूरी है।

गाय और भैंस के दूध में अंतर है। गाय के दूध में फैट भैंस के दूध के तकरीबन आधा होता है जबकि प्रोटीन लेवल में ज्यादा फर्क नहीं होगा। इसलिए गाय का दूध पाचन, खासकर बच्चों के हिसाब से सही रहता है। उसमें कुछ मिनरल्स, विटामिन भी अलग होते हैं। स्वाद में भारत में लोगों को भैंस का दूध पसंद आता है।

विश्वास और सहकार
श्री सोढ़ी ने कहा कि अमूल ब्रांड के दो पहलू हैं। एक तो यह किसानों की आजीविका का साधन है, दूसरे उपभोक्ताओं का इस पर विश्वास है। उपभोक्ताओं का विश्वास अंधविश्वास की हद तक है। यह लंबे समय में बनता है। अगर आप चालाकी करते हैं तो उपभोक्ता को पता चल जाता है और उसका विश्वास टूटता है। किसानों को अमूल लंबे समय से स्थिर और आकर्षक आय दे रहा है तो उसका भी विश्वास दृढ़ है।

जो लोग इसमें नौकरी कर रहे हैं, कोई अन्य वेंडर हैं और कमा रहे हैं, वे यह सोच कर भी चलते हैं कि हम अपनी आजीविका तो कमा ही रहे हैं, साथ ही एक धर्म का काम भी कर रहे हैं। लाखों-करोड़ों लोग, जिनका कोई सहारा नहीं है, आय का कोई स्रोत नहीं है, हम उन्हें आय का स्रोत दे रहे हैं।

जहां जटिलता ज्यादा हो, जहां संख्या ज्यादा हो, जहां रीमोट लोकेशन ज्यादा हो और जहां पारदर्शिता ना हो, वहां डिजिटल प्रौद्योगिकी का उपयोग बढ़ जाता है। उन्होंने कहा कि सहकारिता में एक बड़ा महत्वपूर्ण पहलू पारदर्शिता का होता है। इसलिए सहकारिता में डिजिटल प्रौद्योगिकी का उपयोग महत्वपूर्ण है।

किसानों की नई पीढ़ी किसानी छोड़ रही है, इन्हें सहकारिता की ओर कैसे उन्मुख करेंगे, इस पर श्री सोढ़ी ने कहा कि इसके लिए सहकारिता को अत्याधुनिक और लाभपरक बनाना होगा। उन्होंने कहा कि आधुनिक प्रौद्योगिकी के साथ सहकारिता में काम करने के लिए आसान शर्तों पर ऋण की उपलब्धता और बेहतर कमाई नई पीढ़ी को आधुनिक समसामयिक व्यवसाय का भान कराती है और भविष्य भी सुरक्षित रखती है। इसके लिए युवाओँ को प्रशिक्षित किया जा रहा है।

डार्क चॉकलेट
डार्क चॉकलेट के क्षेत्र में दुनिया की कंपनियों को पछाड़ने के सवाल पर श्री सोढ़ी ने कहा कि दक्षिण भारत में कोको उत्पादक ज्यादा हैं और कैम्को कोआॅपरेटिव अच्छा काम कर रही है। कैम्को किसानों से उनका पूरा कोको खरीदने के लिए प्रतिबद्ध है, भले अंतरराष्ट्रीय कीमत कुछ भी हो। हमने चॉकलेट में देखा कि दिन-ब-दिन भारत में चॉकलेट की खपत बढ़ रही है पर दिन-ब-दिन उसमें कोको की मात्रा कम होती जा रही है। दूसरी चीज, आज की युवा पीढ़ी का स्वाद संशोधित हुआ है, उनको ज्यादा कोको बेस, कोको कंटेंट वाली चॉकलेट चाहिए।

जो चॉकलेट बाजार के अगुवा थे, वो ज्यादातर चीनी और दूसरी सामग्री हर बार बढ़ाते जा रहे थे। तो हमने वो अंतर देखा और हमने लॉन्च की प्योर डार्क चॉकलेट, 55 प्रतिशत कोको, 75 प्रतिशत कोक, 85 प्रतिशत कोको और 90 प्रतिशत कोको। यह बहुत सफल हुआ क्योंकि स्वाद बहुत बढ़िया था और पैकेजिंग बहुत अच्छी थी। तीसरी, जो भारत में सबसे महत्वपूर्ण मानी जाती है, यह किफायती भी थी। खाने-पीने की चीजों में हमारा अनुभव है कि अगर, स्वाद, पोषण और किफायदी दाम, ये तीन चीजें पा लें तो आपका खाद्य उत्पाद, खाद्य ब्रांड सबसे ऊपर होगा। आपको सफलता मिलेगी।

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