देश में हाल के दिनों में जितनी भी बड़ी घटनाएं हुई हैं, उनके पीछे एक संगठन नहीं, बल्कि पूरी चौकड़ी का हाथ था। इसमें कट्टरपंथी इस्लामिक संगठन, ईसाई मिशनरीज, नक्सली और एक समूह शामिल है
भारतीय राजनीति में अनेक बदलाव आए हैं। एक नागरिक के नाते हमारी आकांक्षाएं भी बदली हैं। अब बिजली, पानी, सड़क, शिक्षा और स्वास्थ्य जैसे मुद्दे लगभग नहीं रहे। अगले एक दशक में रोजगार भी मुद्दा नहीं रहेगा। लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि भारतीय राजनीति मुद्दा विहीन हो जाएगी। आने वाले समय में आंतरिक सुरक्षा एक बड़ा मुद्दा होगा। इसे अभिजात वर्ग तक सीमित नहीं करके इसे आमजन का मुद्दा बनाना होगा। साबरमती संवाद-2022 में आंतरिक सुरक्षा मामलों के विशेषज्ञ बिनय कुमार सिंह ने ये बातें कहीं।
बिनय कुमार ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के हाल के एक बयान का जिक्र किया, जिसमें उन्होंने कहा था कि गुजरात में अगर भाजपा की सरकार नहीं होती, तो यह नक्सलियों का बहुत बड़ा अड्डा बन जाता। यह बात उन्होंने चुनाव और गुजरात में अपना अस्तित्व तलाश रही एक पार्टी के संदर्भ में कही थी। जिक्र पॉपुलर फ्रंट आफ इंडिया (पीएफआई) का है, जिसे हाल ही में प्रतिबंधित किया गया है। यह कट्टरपंथी इस्लामिक संगठन समाज सेवा का छद्म आवरण ओढ़ कर आतंकी गतिविधियां चला रहा था।
पीएफआई जैसे संगठन भारतीय संविधान के नरम प्रावधानों का इस्तेमाल करते हैं और ‘लीगल डेमोक्रेटिक फ्रेमवर्क’ में काम करते हुए दिखना चाहते हैं। पाकिस्तान स्थित आतंकी संगठन जमात-उल-दावा भी यही करता है। सरकार व राष्ट्र से प्रेम करने वाले 2047 तक देश को विकसित राष्ट्र बनते देखना चाहते हैं, दूसरी तरफ पीएफआई जैसे संगठन हैं, जो 2047 तक भारत को तोड़ने के मंसूबे पर काम कर रहे हैं।
पीएफआई कहीं नक्सली संगठनों तो कहीं ईसाई मिशनरी के साथ काम कर रहा था। हालांकि मिशनरीज के साथ पीएफआई के संबंध खराब थे। इस गिरोह के लोग पूजा पंडाल की समितियों, आरडब्ल्यूए सहित अलग-अलग संगठनों, सरकारी सेवाओं में भी घुसपैठ कर रहे हैं ताकि सफाई कर्मचारी संघ का हिस्सा बन सकें
उन्होंने कहा कि 2004 में भाकपा माओवादी और पीपुल्स वार गु्रप, जो एक-दूसरे को देखना भी पसंद नहीं करते थे, एक हो गए। विलय के बाद 2007 में इनका दृष्टि-पत्र ‘स्ट्रैटेजी एंड टैक्टिक्स आफ इंडियन रिवोल्यूशन’ आया, जिसमें जिसमें संगठन के काम करने के तौर-तरीकों में बदलाव व अर्बन पर्सपेक्टिव आफ अर्बन एरियाज यानी शहरी क्षेत्रों का, शहरी परिप्रेक्ष्य का जिक्र है। अर्बन नक्सल की परिकल्पना यहीं से आई। इसमें ‘टैक्टिकल यूनाइटेड फ्रंट’ का भी जिक्र है, जो उन संगठनों, अर्बन नक्सली व देश विरोधी समूहों का गठजोड़ है। यह भारत सरकार को अपना शत्रु मानता है।
इसमें पीएफआई और ईसाई मिशनरीज भी हैं। देश में हाल के दिनों में जितनी भी बड़ी घटनाएं हुई, उनमें कोई एक संगठन नहीं, बल्कि पूरी चौकड़ी शामिल थी। इस चौकड़ी में कट्टरपंथी इस्लामिक संगठन, ईसाई मिशनरीज, नक्सली और एक समूह शामिल है, जो तीनों संगठनों के न्यूनतम साझा कार्यक्रम का समर्थन करता है। इनमें कानून से जुड़े पेशेवर, सांस्कृतिक कार्यकर्ता, कथित बुद्धिजीवी और पत्रकार आदि शामिल हैं।
पीएफआई कहीं नक्सली संगठनों तो कहीं ईसाई मिशनरी के साथ काम कर रहा था। हालांकि मिशनरीज के साथ पीएफआई के संबंध खराब थे। इस गिरोह के लोग पूजा पंडाल की समितियों, आरडब्ल्यूए सहित अलग-अलग संगठनों, सरकारी सेवाओं में भी घुसपैठ कर रहे हैं ताकि सफाई कर्मचारी संघ का हिस्सा बन सकें। इनका उद्देश्य कोचिंग संस्थानों या विश्वविद्यालयों में नेटवर्क खड़ा करना है। कुल मिलाकर 2007 में नक्सलियों ने जो एजेंडा तय किया था, ये उसी पर चल रहे हैं।
केजरीवाल सरकार में मंत्री रहे राजेंद्र पाल गौतम ने जो कहा उसके पीछे ‘ग्लोबल इकोसिस्टम’ काम कर रहा है। गौतम ने बुद्धिज्म की आड़ में बौद्ध व हिंदुत्व के बीच खाई बनाने का प्रयास किया। अमेरिका के कैलिफोर्निया से शुरू जाति को लेकर भारत को कठघरे में खड़ा करने के प्रयास की यह दूसरी कड़ी है। गौतम की पार्टी की शुरुआत ही विदेशी वित्तपोषण से हुई। एनजीओ का विदेशी तंत्र लगातार भारत के विरुद्ध साजिशें रचता है। इस नेता का करियर भी वहीं से शुरू हुआ है। ये खालिस्तान का समर्थन करते हैं और इनके संबंध पीएफआई जैसे आतंकी संगठनों से भी हैं, जिनका एजेंडा ही भारत विभाजन है।
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