प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी के नेतृत्व में भारत का सनातन संस्कृति के स्वर्णिम युग एवं सांस्कृतिक पुनर्जागरण का दौर चल रहा है।
दीपोत्सव पर रोशनी के महासागर में नहाती अयोध्या की भव्यता देखते ही बनती थी। मानो ऐसा लगा “दीपोत्सव के शुभ अवसर पर सरयु तट पर उतरा हो स्वर्गलोक”
आक्रमणकारियों से लेकर सनातन विरोधियों ने मिटाने का किया था बहुत प्रयास लेकिन आज दो सनातनी संतो की मौजूदगी में अयोध्या लिख रहा है एक नया इतिहास
ये मत भूलिएगा कि आप हम और पूरा जगत् साक्षी बन रहा है इस अद्भुत दृश्य का, क्योंकि आपको बहुत कुछ भुलाने की कोशिश और साज़िश की गई।
कभी इतिहास से छेड़छाड़ करके, तो कभी तथ्यों को काल्पनिक बताने का चक्रव्यूह गढ़के!
अतः ये कहना उचित होगा कि कुछ बात तो हैं हमारी सनातन संस्कृति में, जो अनगिनत चोटों के बाद भी मिट नहीं सकी बल्कि दीपक की ज्योति समान और तेज होकर प्रकाशित हुई।
यूपी में वर्ष 2017 में योगी आदित्यनाथ जी के सरकार के गठन के बाद से ही हर साल दीपोत्सव का कार्यक्रम आरंभ हुआ एवं इसकी भव्यता भी इस कदर बढ़ती गई कि इस बार दीप प्रज्वलित के नए कीर्तिमान के साथ विश्व रिकार्ड बनाने में सफल भी रहे और हो भी क्यों ना इस बार अयोध्या के इस दीपोत्सव का साक्षी स्वयं प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी बने जिन्होंने अपने हाथों से प्रभु श्री रामचंद्र जी का आरती किया।
जब से दीपोत्सव का यह भव्य कार्यक्रम शुरू किया गया है, रामलला की नगरी अयोध्या का दीपोत्सव हर साल सफलता की नई कहानी लिख रहा है। परंतु इस बार की दीपावली एक ऐसे समय में आई है, जब भारत ने कुछ समय पहले ही आजादी के 75 वर्ष पूरे किए हैं तथा हम आजादी का अमृत महोत्सव मना रहे है।
मैं पहले भी लेखों में लिख चुका हूँ कि सनातन संस्कृति का यह स्वर्णिम युग का दौर चल रहा है और नरेंद्र मोदी जी सनातन संस्कृति के महत्त्वपूर्ण विचारों “वसुधैव कुटुम्बकम्” अर्थात् पूरा विश्व एक परिवार है तथा “सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामयाः” सभी प्रसन्न एवं सुखी रहे, के इन्हीं मूलमंत्रो के साथ सनातन संस्कृति के संवाहक के रूप में हम सभी का मार्गदर्शिका बन रहे है, तथा समस्त विश्व को सनातन के विचारों से अवगत करवा रहे हैं। लेकिन जिस प्रत्यक्ष का साक्षी आज हम सभी बन रहे है ये सांस्कृतिक पुनर्जागरण इतना आसान नहीं रहा इसके लिए नियति ने कई इम्तिहान लिए और कई इम्तिहान दिए भी गए, किसी ने प्रभु श्री रामचंद्र के लिए हंसते-हंसते अपनी मुख्यमंत्री की कुर्सी तक का त्याग कर दिया तो किसी ने मुख्यमंत्री की कुर्सी पाने के लिए और उस पर बने रहने के लिए कारसेवकों पर गोलियाँ चलवाकर खून की नदियाँ बहाने का काम तक भी किया। क्योंकि ऐसे लोगों का बस एकमात्र उद्देश्य यही था कि किसी भी प्रकार से राम मंदिर का निर्माण होने नहीं देना है, लेकिन “होइहि सोइ जो राम रचि राखा।”
मैं उस दृश्य को देखने के बाद अब तक नहीं भूला जब सुप्रीम कोर्ट का फ़ैसला रामचंद्र जी के पक्ष में आने के बाद उनकी जन्मस्थली पर जाने का सौभाग्य प्राप्त हुआ जिसे कई वर्षों से कोर्ट कचहरी के चक्कर में उलझा कर रखा गया था ताकि वहाँ मंदिर का निर्माण कार्य को कोई गति नहीं मिली। बस दृश्य कुछ ऐसा था कि वहाँ रामलला को एक छोटे से टैंट में रखा गया था। मैंने नम आँखों से देखते हुए बस यही सोच रहा था कि जिनसे भारत समेत संपूर्ण जगत् सुख, संपदा और ख़ुशियाँ माँगते हैं आज उनको ऐसी स्थिति में ला दिया है। लेकिन कहते हैं कि समय का चक्र चलता है और चला भी, जब कुचक्र टूटा तो श्री रामचंद्र की अयोध्या नगरी का पुनः सांस्कृतिक पुनर्जागरण होने लगा और ये कार्य नरेंद्र मोदी जी और योगी आदित्यनाथ जी के प्रयासों से सफल हो पाया।
अयोध्या का इतिहास और अतीत की घटनाएँ काफी उथल पुथल रही है। चाहे मुगल आक्रमणकारियों का हमला झेलना पड़ा हो या फिर सत्ता में बैठे अपने वोट बैंक को संतुष्ट करने के लिए राम विरोधी ताकतों का सामना करने की बात हो ये सब कई बार हुआ बार-बार हुआ और उन विषम परिस्थितियों को सहकर ही आज हम यहाँ तक पहुँचे हैं।
यही नहीं एक दल ने तो केन्द्र सरकार में रहते हुए श्री राम के अस्तित्व को ही नकार दिया था और इसके लिए सुप्रीम कोर्ट तक पहुँच गए थे। एवं हाल में बनी एक पार्टी ने तो विवादित ढाँचे का समर्थन करते हुए राम विरोध में वहाँ जाने तक को नकारने लगे लेकिन इन सभी जटिलताएँ एवं विषम परिस्थितियों का सामना करते हुए, न्यायालय का फैसला रामलला के पक्ष में आने के अंतराल अंततः प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी के कर कमलों द्वारा अयोध्या में भव्य प्रभु श्री राम मंदिर निर्माण की नींव रखी गई।
दीपोत्सव पर किसी ने 15 लाख 76 हजार दीपों का विश्व रिकॉर्ड देखा तो किसी ने त्रेतायुग को अनुभव किया। हर साल की तरह इस साल भी अयोध्या में ऐतिहासिक दीपोत्सव का आयोजन हुआ। विश्व रिकॉर्ड ने आयोजन को और यादगार बना दिया। “प्रधानमंत्री मोदी जी ने अपने संबोधन में कहा कि दीपोत्सव का यह भव्य आयोजन भारत के सांस्कृतिक जागरण का प्रतिबिंब है”
“अयोध्या के दीपोत्सव हमें एक सीख यह भी देती है कि अनेकों असुरी शक्तियाँ और दुर्गम स्थिति का सामना किया लेकिन हमने दीप जलाना नहीं छोड़ा और हर बार हमने ऐसे ही अंधेरे को दूर किया”
संदेश यही था कि अपनी संस्कृति से हम विमुख नहीं हुए बाहरी आक्रमणकारी हो या आंतरिक व्यभिचारी, ने कई तरीक़ों से इन सांस्कृतिक स्थलों को नष्ट करने का प्रयास किया। आक्रांताओ ने कई हमलो को अंजाम दिया लेकिन वो हजारो वर्षों की इस जीवित सर्व-सनातन संस्कृति को नष्ट करने में असफल रहे। आज इस 21 वीं सदी उनकी मंशा, कुकृत्य और नीयत के बारे देश में खुलकर चर्चा हो रही है तथा जिनको इसके बारे में जानकारी नहीं थी आज वो भी इसके बारे में बातें कर रहे हैं और बेरोकटोक खुलकर बोलना ही अपने आप में लोगों में इस विषय पर जागरूकता को दर्शाती है।
हम सब इस बात से भलीभाँति परिचित हैं कि भारतीय संस्कृति के विश्वकोष कहे जाने वाले रामचरितमानस दर्शन, आचारशास्त्र, शिक्षा, समाज सुधार, साहित्यिक, आदि कई दृष्टियों से महत्वपूर्ण है जो व्यक्ति को जीवन मूल्यों का दर्शन एवं गुणों के बारे में बहुत कुछ सिखाती है। लेकिन एक शब्द जो अक्सर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी अपने संबोधन में कहते रहते हैं “सबका साथ” इसकी प्रेरणा भी हमें प्रभु श्री राम से मिलतीं है जिन्होंने रावण का मुक़ाबला करने के लिए सबको साथ लेकर अपनी एक अलग सेना बनाई ये वो लोग थे जिनके पास ना कोई सैन्य क्षमता थी और ना ही कोई युद्ध लड़ने का अनुभव था लेकिन ये सभी संगठित अवश्य थे और साथ एवं विश्वास से लड़कर रावण पर विजय भी पाई। संगठित कार्य ही उत्तम परिणाम के आधार को प्रस्तुत करता है।
आजादी के इस अमृतकाल में अमर अयोध्या की अलौकिकता के साक्षी निश्चित ही हम सभी बने हैं और हम उस सभ्यता और संस्कृति की भव्यता को अनुभव कर रहे हैं। बीते दिनों में जिस प्रकार से काशी विश्वनाथ, उज्जैन महाकाल लोक, केदारनाथ, बद्रीनाथ जैसे अन्य तीर्थ स्थलों का लोकार्पण व पुनरूत्थान कार्य एवं इसके विकास योजनाओं से जुड़ी पहल देखी गई, ये कहने में बिल्कुल भी संकोच महसूस नहीं करना चाहिए कि देश के इतिहास में पहली बार ऐसा हुआ है और हो भी रहा है जब देश के प्रधानमंत्री स्वयं देश के तीर्थ स्थलों के निर्माण और पुनरूत्थान में रुचि दिखा रहे हैं। और हो भी क्यों ना ये सनातन संस्कृति की अद्भुत विरासत ही है जिसमें त्यौहार, पर्व और उत्सव के रूप में भारत की व्यापक विविधता, सांस्कृतिक और अध्यात्मिक एकता का अद्वितीय उदाहरण को प्रस्तुत करता है।
हम सब इस बात से भलीभाँति परिचित हैं कि भारतीय संस्कृति के विश्वकोष कहे जाने वाले रामचरितमानस दर्शन, आचारशास्त्र, शिक्षा, समाज सुधार, साहित्यिक, आदि कई दृष्टियों से महत्वपूर्ण है जो व्यक्ति को जीवन मूल्यों का दर्शन एवं गुणों के बारे में बहुत कुछ सिखाती है। लेकिन एक शब्द जो अक्सर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी अपने संबोधन में कहते रहते हैं “सबका साथ” इसकी प्रेरणा भी हमें प्रभु श्री राम से मिलतीं है जिन्होंने रावण और उसकी विशाल सैन्य शक्ति का मुक़ाबला करने के लिए सबको साथ लेकर अपनी एक अलग सेना बनाई ये वो लोग थे जिनके पास ना कोई सैन्य क्षमता थी और ना ही कोई युद्ध लड़ने का अनुभव था लेकिन ये सभी संगठित अवश्य थे और साथ एवं विश्वास से लड़कर लंका पर विजय भी पाई। संगठित कार्य ही उत्तम परिणाम के आधार को प्रस्तुत करता है।
आजादी के इस अमृतकाल में अमर अयोध्या की अलौकिकता के साक्षी निश्चित ही हम सभी बने हैं और हम उस सभ्यता और संस्कृति की भव्यता को अनुभव कर रहे हैं। बीते दिनों में जिस प्रकार से काशी विश्वनाथ, उज्जैन महाकाल लोक, केदारनाथ, बद्रीनाथ जैसे अन्य कई तीर्थ स्थलों के पुनरूत्थान व लोकार्पण कार्य एवं इसके विकास योजनाओं से जुड़ी पहल देखी गई। ये कहने में बिल्कुल भी संकोच महसूस नहीं करना चाहिए कि देश के इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ है और हो भी रहा है। जब देश के प्रधानमंत्री स्वयं देश के तीर्थ स्थलों के निर्माण और पुनरूत्थान में रुचि दिखा रहे हैं। और हो भी क्यों ना ये सनातन संस्कृति की अद्भुत विरासत ही है जिसमें त्यौहार, पर्व और उत्सव के रूप में भारत की व्यापक विविधता, समरसता, सांस्कृतिक और अध्यात्मिक एकता का अद्वितीय उदाहरण को प्रस्तुत करता है।
(विभूति सिंह स्वतंत्र लेखक हैं। ये लेखक के निजी विचार हैं।)
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