ब्रज में भक्ति की सत्ता व्याप्त है। यहां की भक्ति में राग से अनुराग, श्रृंगार से समर्पण, प्रेम से पुष्टि और रस में अनुरक्ति है। इन सभी तत्वों का सार रूप है ब्रजराज गोवर्धन का अन्नकूट महोत्सव। जहां राग भी है, समर्पण भी, पुष्टि भी और प्रेम तो अगाध है ही, जिसके माध्यम से साधक आराध्य की सुस्वादु मनुहार करता है।
ज्ञान और वैराग्य से परे ब्रज में भक्ति की सत्ता व्याप्त है। यहां की भक्ति में राग से अनुराग, श्रृंगार से समर्पण, प्रेम से पुष्टि और रस में अनुरक्ति है। इन सभी तत्वों का सार रूप है ब्रजराज गोवर्धन का अन्नकूट महोत्सव। जहां राग भी है, समर्पण भी, पुष्टि भी और प्रेम तो अगाध है ही, जिसके माध्यम से साधक आराध्य की सुस्वादु मनुहार करता है।
अन्नकूट द्वापरयुगीन पौराणिक इतिहास से संबद्ध है, जब देवताओं के राजा इंद्र का मानभंग कर गोविन्द ने अपनी कनिष्ठा अंगुली पर गोवर्धन पर्वत धारण कर ब्रजवासियों की रक्षा की थी। ब्रजवासियों द्वारा सर्वप्रथम गिरिराज का पूजन और आत्मनिवेदन अन्नकूट ही है, जो एक आध्यात्मिक परंपरा के रूप में ब्रज के घर-घर में मनाया जाता है। इसी दिन गिरिराज को ब्रजवासियों ने छप्पन भोग और छत्तीस व्यंजनों का भोग अर्पित कर इंद्रपूजा से विमुख हो गोवर्धननाथ श्रीकृष्ण को ही अपना सार-सर्वस्व स्वीकार कर लिया था।
ये हैं अन्नकूट के विशिष्ट व्यंजन
अन्नकूट में भोजन के सभी छह प्रकार के पदार्थों का समावेश किया जाता है, जिनमें चोस्य (चूसने वाले), पेय (पीने योग्य), लेस्य (चाटने वाले), भोज्य (खाने वाले), भक्ष्य (भक्षण करने वाले) और चव्य (चबाने वाले) पदार्थ होते हैं। इनमें लवण, कषाय, मधुर, तिक्त, कटु और अम्ल प्रकृति के दाल, भात, चटनी, कढ़ी, सिखरन, शर्बत, बाटी, मुरब्बा, बड़ा, मठरी, फेनी, पूरी, खजला, घेवर, मालपुआ, जलेबी, रसगुल्ला, मैसूर, चंद्रकला, रायता, लौंगपूरी, खुरमा, दलिया, बिलसारु, मक्खन, मोहनभोग (हलवा), रबड़ी, मलाई, खीर, मोंठ, फल, सुपारी, इलायची, तांबूल, लस्सी, सीरा, मोदक, शाक, अचार, पापड़ आदि पदार्थ होते हैं।
आज भी ब्रजवासी सामर्थ्य और श्रद्धा के अनुसार दीपावली के दूसरे दिन गोवर्धन पूजन करते हैं, जिसमें घर-घर के प्रांगण में गाय के गोबर से गिरिराज की प्रतिमा बनाई जाती है और उन्हें अन्नकूट का भोग लगाया जाता है। सरल भाषा में कहें तो यह ब्रज का सर्वोपरि महोत्सव है। इसे ब्रजवासियों द्वारा दीपावली की तरह ही उत्साह और उल्लास के साथ मनाया जाता है। इस दिन गोवर्धन परिक्रमा और उसकी परिधि में स्थित सुरभि आदि कुण्डों पर दीपदान महोत्सव अत्यंत दर्शनीय होता है।
गोसंरक्षण का मंत्र
गोवर्धन पूजा या अन्नकूट का यह पर्व गोसंरक्षण से भी जुड़ा है। मानभंग से सहमे इंद्र ने श्रीकृष्ण को प्रसन्न करने के लिए कामधेनु गाय के दुग्ध से उनका अभिषेक कराया और उन्हें गोविन्द को भेंट किया। अत: इस दिन प्रभु को भोग में गोदुग्ध से बने उत्पादों को ही समर्पित किया जाता है जिससे भक्तों को उनकी कृपा निश्चय ही प्राप्त होती है। अन्नकूट महोत्सव का पुष्टिमार्ग में विशेष स्वरूप है। यहां अन्नकूट की सामग्रियों को सखरी, अनसखरी और दूधघर के रूप में विभाजित किया गया है। ब्रजभूमि में अन्नकूट महोत्सव कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा से पूर्णिमा तक, अलग-अलग तिथियों में मनाया जाता है।
अन्नकूट का एक अर्थ अन्न का ढेर भी है। वस्तुत: भात अथवा चावल तथा अन्य सभी कच्ची-पक्की सामग्रियों का विपुल भोग अपने आराध्य को अर्पित किया जाता है। वैसे तो ब्रज में ठाकुरजी को वर्षभर विविध व्यंजन निवेदित किए जाते हैं, किंतु अन्नकूट की पहचान चावल और बाजरा के भात, दही की सिखरन और गड्ड (मिश्रित) की सब्जी से है। वस्तुत: खेती से प्राप्त होने वाले नवधान्य (बाजरा, धान आदि), साग-सब्जियां (मटर, बैंगन, मैथी, बथुआ, बैंगन आदि) और फल (सिंघाड़ा) आदि पदार्थों को विविध सात्विक व्यंजनों के रूप में तैयार कर उन्हें आराध्य को अर्पित किया जाता है, जिससे जीवन में वर्षभर धन-धान्य और ऐश्वर्य बना रहे। वास्तव में अन्नकूट मिलन अथवा मिश्रण के भाव को इंगित करता है। फिर चाहे वह भाव ब्रह्म के जीव से मिलन का हो या फिर अन्नकूट निर्माण विधि और इसे मिश्रित कर खाने के तरीके से।
लोक में गिरिराज पूजा
अन्नकूट का एक शब्द भेद अन्न को कूटना भी है। इस दिन ब्रज के राजस्थान से सटे क्षेत्रों में आटे की बाटियां बनाई जाती हैं, उनसे चूरमा के लड्डू बनाकर उनका गिरिराज को भोग लगाया जाता है। अन्नकूट के प्रसाद को मुक्त हृदय से जनमानस में वितरित करने का विशिष्ट महत्व है। इस दिन गिरिराज की पूजा के साथ ही गोमाता और गोवंश की पूजा भी की जाती है। ल्ल
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