दीपावली का पर्व भारत ही नहीं, दुनियाभर में हर्षोल्लास से मनाया जाता है। विशेष कर इंडोनेशिया जैसे मुस्लिम देश में तो यह पर्व 2,000 वर्ष पूर्व से मनाया जा रहा है। धर्मशास्त्रों के अतिरिक्त भारत आने वाले विदेशी यात्रियों के यात्रा वृत्तांतों में भी इस पर्व का उल्लेख मिलता है।
प्रवासी भारतीयों द्वारा दुनियाभर में यह पर्व मनाया जाता है। नेपाल, श्रीलंका, पाकिस्तान, म्यांमार, थाईलैंड, मलेशिया, सिंगापुर, इंडोनेशिया, मॉरीशस व फिजी में तो यह प्राचीन पारंपरिक उत्सव रहा है। आस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड, केन्या, तंजानिया, दक्षिण अफ्रीका, गुयाना, सूरीनाम, त्रिनिदाद और टोबैगो, नीदरलैंड, कनाडा, ब्रिटेन, संयुक्त अरब अमीरात और संयुक्त राज्य अमेरिका में भारतीय संस्कृति की समझ और भारतीय मूल के लोगों के वैश्विक प्रवास के कारण दीपावली मनाने वाले लोगों की संख्या धीरे-धीरे बढ़ रही है। अब यह सामान्य स्थानीय संस्कृति का हिस्सा भी बनता जा रहा है। मलेशिया, सिंगापुर आदि कई देशों में दीपावली का अवकाश भी होता है। अनगिनत पौराणिक एवं ऐतिहासिक प्रसंगों की उल्लासमय स्मृतियों से जुड़ा दीपावली का पांच दिवसीय प्रकाश पर्व मानव सभ्यता का प्राचीनतम पर्व है।
संपूर्ण वृहत्तर भारत में इंडोनेशिया से अफगानिस्तान तक दीपावली मनाने के अति प्राचीन विवरण मिलते हैं। सुदूर पूर्व में इंडोनेशिया जैसे मुस्लिम देश में इसे कई नामों से मनाने के विवरण मिलते हैं। 7वीं सदी में राजा हर्षवर्द्धन रचित संस्कृत नाटक ‘नागानन्द’ में इसका विवरण कई दिन चलने वाले उत्सव ‘दीप प्रतिपदुत्सव’ के रूप में मिलता है। कश्मीर के इतिहास पर ईसा पूर्व रचित नीलमत पुराण में ‘कार्तिक अमायां दीपमाला वर्णनम्’ पर एक विस्तृत अध्याय है। तीसरी सदी में वात्स्यायन ने यक्षरात्रि नाम से इसका वर्णन करते हुए इसे ‘महा महिमान्य उत्सव’ लिखा है।
चौथी सदी के महाराज दशरथ की माता इन्दुमती पर केंद्रित इंडोनेशियाई संस्कृत नाटक ‘सुमन सान्तक’, जिसका वहां मंचन भी होता रहा है, में महाराज दिलीप से पांच पीढ़ियों यथा रघु, अज, दशरथ और राम के प्रसंगों के साथ राम के अयोध्या लौटने पर दीप प्रज्ज्वलन के इस उत्सव का वर्णन भी मिलता है। भारत में दशरथ की माता, पिता व दादा का कदाचित ही प्रसंग आता है। 10वीं सदी में सोमदेव सूर्य ने अपने संस्कृत ग्रंथ ‘यशस्तिलक-चम्पू’ में इस पर्व पर लोगों द्वारा मकानों की सफाई, विविध मनोरंजक क्रीड़ाओं और जलते दीपों से वृक्षादि बना कर उससे भवनों को सजाने का वर्णन किया है।
इंडोनेशिया में तो यह 2,000 वर्ष पूर्व से मनाया जा रहा है, जहां बाली, सुमात्रा और सुलावेसी, पश्चिमी पापुआ में यह प्रमुख पर्व है। वहां दीपावली के लिए अनुष्ठान 30 दिन पहले शुरू हो जाते हैं। लोग 30 दिन तक व्रत रखते हैं। 30 दिन का यह व्रत आत्मशुद्धि और दीपावली से नई शुरुआत करने के लिए किया जाता है। भारत की ही तरह इंडोनेशिया में 30 दिन में लोग घर की सफाई, सजावट, रंग-रोगन करते हैं और दीये भी जलाते हैं। दीपावली की सुबह स्नान करके सपरिवार मंदिर जाते हैं। रात्रि में पूजन के बाद माता-पिता और बुजुर्गों के पैर छूते हैं। आतिशबाजी भी की जाती है। बहुसंख्य मुस्लिम भी अपने हिंदू पूर्वजों के इस पर्व को मनाते रहे हैं। अब तब्लीगी जमात के दबाव में इस परंपरा को बहुत ही कम लोग निभा पाते हैं।
स्थानीय भाषा में कहते हैं गलुंगन
इंडोनेशिया, कंबोडिया आदि दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों में ईसा पूर्व काल से यह अधर्म पर धर्म की जीत के पर्व के रूप में मनाया जाता है। हिंदू मूल के इंडोनेशिया का 15वीं सदी से कन्वर्जन हुआ है। यहां कुछ क्षेत्रों में स्थानीय भाषा में इस पर्व को ‘गलुंगन’ कहा जाता है। हिंदुओं के सांस्कृतिक केंद्र जावा के योगाकार्ता शहर में प्रम्बनन अर्थात परब्रम्हन मंदिर है, जिसे संजय वंश के शासक रकाई पिकातन ने 850 ई. में बनवाया था। यह मंदिर यूनेस्को की विश्व धरोहर सूची में है। मंदिर में ब्रह्मा, विष्णु और महेश स्थापित हैं। इसी मंदिर का प्राचीन एंफीथियेटर रामायण मंचन के लिए प्रसिद्ध है। यहां के रामायण के मंचन में बड़ी संख्या में मुस्लिम भी सम्मिलित होते हैं। यह विश्व का सबसे लंबे समय से चलने वाला स्टेज शो भी माना जाता है। मुस्लिम समुदाय का मानना है कि ‘हम लोग सिर्फ मुस्लिम नहीं, जवानीज (जावा संस्कृति के वाहक) भी हैं और हम हिंदू-बौद्ध कहानियां सुनकर बड़े हुए हैं।’
क्या कहता है अल बरूनी
इसी तरह, 11वीं सदी में भारत आने वाले मुसलमान पर्यटक अल बरूनी ने लिखा है, ‘‘हिंदुस्थान के घर-घर में इस दिन विष्णुपत्नी लक्ष्मी का पूजन किया जाता है। लोग सुंदर परिधान पहनकर एक-दूसरे से मिलते और पान-सुपारी भेंट करते हैं, देव दर्शनों के लिए मंदिरों में खूब दान देते हैं और रात में चिरागों की रोशनी करते हैं।’’ 15वीं शती में इटली के पर्यटक निकोलाई कांटी ने भी दीपावली की रात को भारत में सर्वत्र मंदिरों और भवनों की छतों पर दीपमाला के प्रकाश का वर्णन किया है। उस काल में नेपाल, म्यांमार, बांग्लादेश, पाकिस्तान व अफगानिस्तान भारत में ही थे।
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