गोवंश की महत्ता से हम अच्छी तरह परिचित हैं, लेकिन असल में गोसेवा के लिए कितने प्रतिबद्ध हैं, यह विचारणीय है। सच्चे गो सेवक वे लोग हैं, जो अहर्निश नि:स्वार्थ भाव से इस पुनीत कार्य के प्रति संकल्पित हैं। आज गोसेवा के नाम पर पूरे देश में हजारों की तादाद में संस्थाएं हैं। लेकिन मुद्दे की बात यह है कि पूर्ण ईमानदारी और निष्ठा से इस दिशा में कितनी संस्थाएं लगातार कार्य कर रही हैं। इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि बहुत-सी तथाकथित गोसेवा समितियां और संस्थाएं केवल कागजों में ही हैं, सही में उनका कोई अस्तित्त्व नहीं है। ऐसी संस्थाएं गोसेवा के नाम से जनता को लूट रही हैं। ऐसे दिखावटी लोगों की सही पहचान कर, उनको बेनकाब कर, उनके खिलाफ विधिक कार्रवाई करने की आज बेहद जरूरत है; क्योंकि ऐसे गलत लोगों के कारण सच्चे गोभक्तों को भी जनता इन्हीं लोगों की तरह समझने लगती है। इसलिए गोवंश संरक्षण के लिए हमें व्यर्थ के दिखावे, शोर-शराबे, प्रचार आदि से दूर रहकर, सही अर्थों में गोसेवा करने की आवश्यकता है।
हमें यह सदा याद रखना होगा कि गोवंश भारतीय संस्कृति, कृषि और पर्यावरण से जुड़ी अमूल्य सम्पदा है। लेकिन हमारी घोर स्वार्थपरता के कारण यह आज उपेक्षा का शिकार हो रहा है। हम अपने नैतिक कर्त्तव्यों से मुंह मोड़ रहे हैं। यह हमारे आत्मिक पतन को दर्शाता है। जबकि देश के विभिन्न राज्यों की सरकारें और गोसेवा से जुड़ी प्रतिष्ठित संस्थाएं इस दिशा में अनेक योजनाएं चला रही हैं। सभी की साझा जिम्मेदारियों से ही हम व्यवस्था से इन योजनाओं का ईमानदारी से क्रियान्वयन करवा कर, गोवंश संरक्षण में अपना योगदान दे सकते हैं। हम बहुत ही छोटे-छोटे प्रयासों जैसे कि प्रतिबंधित श्रेणी के प्लास्टिक के निर्माण और उपयोग पर रोक से जुड़े सरकारी कार्यों तथा प्लास्टिक के दुष्प्रभावों के बारे में जनता और पशुपालकों को जागरूक कर, गोवंश के स्वास्थ्य सुरक्षा को और कारगर बना सकते हैं, जिससे पॉलीथिन नष्टीकरण, गौ, मृदा और पर्यावरण संरक्षण की दिशा में जारी विभिन्न प्रयासों को और गति मिलेगी।
अभी कुछ माह पूर्व गोवंश में त्वचा से जुड़ी लम्पी बीमारी (एल॰एस॰डी॰) से देश में हजारों की संख्या में गोवंश असमय काल के गाल में समा गया। इस बीमारी ने एक बार तो गोवंश के अस्तित्त्व पर बड़ा संकट उत्पन्न कर दिया। ऐसे विकट समय में सच्चे गोसेवक, चिकित्सक और विभिन्न संस्थाओं ने बड़ी हिम्मत से लगातार गोसेवा करते हुए, उनके लिए टीके, औषध और अन्य वांछित सुविधाएं उपलब्ध करवाकर, अनुकरणीय कार्य किए। जिसके परिणामस्वरूप अब गोवंश को लम्पी बीमारी से काफी राहत मिल रही है। गोवंश पर आए इस संकट से हमें सच्चे गोभक्तों की पहचान हो गई। गोवंश की सुरक्षा और संरक्षण के लिए आज देश में गोतस्करी, हत्या आदि पर पूर्णत: प्रतिबंधित की जरूरत है। इस दिशा में सभी गोभक्तों को समवेत स्वर में आवाज को और मुखर करने की जरूरत है। समय की मांग है कि पशु क्रूरता से जुड़े आपराधिक मामलों में समय पर सही कार्रवाई और जांच हो। प्रायः ऐसे मामले कई वर्षों से विभिन्न न्यायालयों में लम्बित हैं। उनकी उचित पैरवी नहीं होने, पर्याप्त साक्ष्यों के अभाव आदि कारणों से दोषियों को सख्त सजा नहीं मिल पाती है। देश के गोपालकों और इससे सम्बद्ध विभिन्न संस्थाओं को इस दिशा में ठोस प्रयास करने होंगे।
गोअत्याचारियों को सजा मिलने से निश्चित रूप से गोअपराधों पर अंकुश लगेगा। यह सुखद बात है कि आज गाय को ‘माता ‘के दर्जें के लिए राष्ट्रीय स्तर पर पुरजोर तरीके से आवाज़ उठ रही है। लेकिन इस कार्य के लिए गोसेवा से जुड़े सभी कार्यकर्ताओं और संस्थाओं को एकजुट होकर, सरकार से कानून बनाने की मांग लगातार की जानी चाहिए। जिससे इस दिशा में किए जा रहे प्रयास रंग ला सके। गोवंश संरक्षण के लिए युवा पीढ़ी को गोसंस्कृति, उनके महत्व के बारे जागरूक करने के लिए गोसाहित्य को स्कूली पाठ्यक्रमों में उचित स्थान देना चाहिए। इस कार्य में गोवंश से संबद्ध पत्र-पत्रिकाओं की भी बहुत ही महत्त्वपूर्ण भूमिका रहती है। युवा पीढ़ी को इससे जुड़ी शैक्षिक संस्थाओं, पवित्र स्थानों, तीर्थ स्थलों, गोशालाओं आदि का भ्रमण करवाया जाय। आज गो संस्कृति, चिकित्सा, आयुर्वेद सहित विभिन्न विषयों के अध्ययन-अध्यापन के लिए पर्याप्त विश्व-विद्यालय और कॉलेज खोलने की भी दरकार है, ताकि विद्यार्थियों को इस दिशा में शिक्षण-प्रशिक्षण, शोध, प्रबंधन आदि के अवसर मिल सके। इससे युवा पीढ़ी को पशुपालन, डेयरी और गो उत्पाद से जुड़े विभिन्न श्रेणी के उद्योगों में रोजगार मिल सकेगा।
टिप्पणियाँ